Monday, December 31, 2018

जो भी जीया, कुछ छूटा गया



कौशलेंद्र प्रपन्न
जो छूटा उसका विश्लेषण करने का मन करता है। कहां पीछे रहा और कौन का काम क्यों नहीं पूरा कर सका इसका पड़ताल तो होना ही चाहिए। बेंजामिन फें्रक्लीन कहा करते थे, उन्हें अपनी विफलता से सीखने को मिला करती थी। उन्होंने कहीं कहा था ‘‘ विशेषज्ञ अपनी सफलता का जश्न मानने से पहले अपनी असफलता और कहां भूल हुई उसकी समझ विकसित करने में ज़्यादा वक़्त लगाया करते हैं।’’ किन्तु सामान्य लोग अपनी सफलता के मद में इस कदर चूर हो जाते हैं कि आगे की चुनौतियां दिखाई नहीं देतीं। हम अक्सर अपनी सफलता में इतने रम जाते हैं कि अपनी असफलता को देख नहीं पाते। साल के इस अंतिम पलों में जो भी लिख रहा हूं वह बस इतनी भर की टीस है कि क्यों हम अपनी असफलता से नहीं सीख पाते और सफलता में वो चीजें भूल जाते हैं जिन्हें याद रखा जाए तो आने वाले दिनां में हम ज़्यादा मजबूती से सफल हो सकते हैं।
मैंने जो पिछले एक सालों में सीखा उसका लब्बोलुआब इतना ही है कि प्लानिंग, प्रैक्टिस, विज़न और पर्पस और उम्मीद रखें तो जीवन में आगे बढ़ने में कभी भी किसी भी किस्म की बाधा नहीं आ सकती। यदि हमारी प्लानिंग दुरूसत हो, प्रैक्टिस करते हैं, पर्पस के साथ उम्मीद रखकर कार्य करते हैं तो जीवन के सपने पूरे होते हैं। सपने जो भी हों जैसे भी हों, उन्हें पाने के लिए हमें उक्त प्लानिंग, प्रैक्टिस, पर्पस और उम्मीद हो तो कोई वज़ह नहीं कि हमारे सपने पूरे न हों। जीवन में कभी भी यू टर्न आ सकते हैं उसके लिए मानसिकतौर पर तैयार रहना हमारी प्राथमिकता की सूची हो तो हम आगे ही बढ़ा करते हैं।
अपने सपनों को पूरा करने में हमें कुछ कठोर निर्णय भी लेने होने हैं। कुछ अपनी आदतों और व्यवहारों में तब्दीली भी लानी पड़ती हैं। जैसे जैसे पद बदलते हैं वैसे वैसे हमारी प्राथमिकताएं भी बदलती हैं। संवेदनाओं को किनारे करना पड़ता है। यही तो सीखा जो कर रहे हैं उसे दिखाना भी आना चाहिए। आपको यह भी आना चाहिए कि जितना कर रहे हैं उसे डॉक्यूमेंटेशन भी करना ज़रूरी है। वरना कहने वाले सवाल खड़े कर सकते हैं कैसे मान लें कि ऐसा हुआ। वैसा हुआ। असर यह हुआ। जो किया उसे दिखाने की कला भी होनी चाहिए। आप जितना करते हैं उन्हें दिखाने के कौशल में आप माहिर हों वरना कोई क्यों मानेगा कि आपने यह किया वह किया आदि आदि।
जो करें उसे पूरी शिद्दत से करें तो वह स्वयं के लिए और और के लिए भी बेहतर होता है। जो ग़लतियां हम कर बैठते हैं कई बार उसे सुधारने में वक़्त लग जाया करता है लेकिन जो डैमेज हुआ उसे पूरा करने व सुधारने में समय लगा करता है। कई लोग हैं हमारे आस-पास जो आपकी मदद करना चाहते हैं वो वक़्त पर मदद भी करते हैं। उससे आगे की जिम्मेदारी हमारी होती है कि हम उनके उस प्रयास व मदद को कितना पूरा कर पाते हैं। कई बार हम उस व्यक्ति की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल होते हैं। और आपको विफल साबित कर दिया जाता है। उसमें कहीं न कहीं उस व्यक्ति का शुक्रगुजार तो होना ही चाहिए जिसने आपको आगे बढ़ाने में मदद की। उसने चाहा कि आप आगे बढ़ो। अब आगे की लड़ाई आपको लड़नी थी। आपको साबित करना था कि आप योग्य हो। आप विफल हुए तो उसमें उसकी ग़लती नहीं। बल्कि आप कहीं न कहीं उसकी अपेक्षाओं पर ख़रे नहीं उतरे। लेकिन इससे निराश होने की ज़रूरत नहीं। ज़रूरत इस बात की है कि अपनी विफलताओं से सीख कर जीवन में आगे बढ़ा जाए।

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