Thursday, October 30, 2008

ज़िन्दगी में यूँ ही

कुछ लोग यैसे ही मिलते हैं जिन्हें भूल पाना मुमकिन नही होता। अकसर्हन वो तो गाहे बा गाहे ज़िन्दगी में आते जाते रहते हैं। आप इंकार नही कर सकते। हैं कुछ लोगों की मौजूदगी ज़रा भरी पड़ती है। पर कर सकते हैं उनके संग भी सामना करना पड़ता है।
लाइफ होती ही है मिलने और कुछ दूर जाकर अपनी अलग रह निकल जाने की। हर कोई यही तो नही कर पता अतीत में ही चिपक कर रहना चाहते हैं , uनकी भी गलती नही है है वो तो यैसे दौर की लहर साथ लिये होते हैं के साडी नै चीजें ख़राब लगती हैं।
खैर ज़िन्दगी में कुछ पाने के लिए संगर्ष करना पड़ता है।








Sunday, October 26, 2008

सड़क का रंग लाल क्यो

आज कल मुझे सड़क की रंग लाल दिखती हैं । यूँ तो सड़कें काली हुवा करती हैं, लेकिन आजकल काली के बजाये लाल दिखती हैं। सरकारी रिपोर्ट बताती हैं भारत में सड़क पर बेतहाशा खून बह रही हैं ।
लोग और गाड़ी के रेलमपेल में इन्सान के कीमत ख़त्म से होती जा रही है। सिर्फ़ आगे भागने के जुगत में कोई कुचल जाए मगर हम युफ़ तक नही करते। सड़कें कहीं नही जाती जाती है इंसानी भाग। सड़क का क्या कुसूर वो तो लोगों के बेहतरी और मंजिल तक ले जाने के लिए वचनबद्ध होती है लेकिन कोई रह में दम तोड़ दे तो सड़क क्या करे।
इक बार गाड़ी हो या इन्सान घर से निकलने के बाद तै से नही कह सकता की वो सकुशल घर पर वापस आएगा।
हर किसी की कोशिश यही होनी चाहिए की हर कोई घर लौट जाए। स्कूल जाती बिटिया पापा को...
काश हम पापा , भाई , पति को सड़क पर तड़पने को न छोडें।







Friday, October 24, 2008

आखें हैं की मानती नही

सभा में या फिर भीड़ में हमारी आखें अक्सर कुछ तलाशती हैं। वही चेहरा वही , भावों को धुन्दती हैं जिसको देख कर जी खुश हो जाता है ।


सर्दी यूँ ही

सर्दी यूँ ही दबे पाव आती है सर्दी क्या यूँ ही दबे क़दमों से हमारे कमरे , मौसम और जेहन में प्रवेश करा करती है ... अचानक यूँ ही ?धीरे धीरे पंखा कम से बंद हो जाते हैं। नल का पानी ठंढा लगने लगता है। सुबह पावों में सर्दी प्रवेश करने लगती है।दुःख तो शायद यूँ नही आता। खुशी यका याक आया करता है। दुख भी उसी रस्ते आया करती है।

सर्दी यूँ ही चुपके से कमरे में प्रवेश करती है

सर्दी यूँ ही चुपके से कमरे में प्रवेश करती है की जैसे शाम में या फिर सुबह पावों में ठंढ लगा करती है। सर्दी पंखों के बंद होने से लगता है चुपके से कमरे में प्रवेश किया करती है। शायद दुख भी यूँ ही चुपके से हमारे करीब घुमती है समय पा कर हमारे संग हो लेती है। सुख तो धमाहे के साथ आया करती है ।
सब को पता चल जाता है । मगर ज़नाब दुख तो बिन बताये हमारे साथ चला करती है ।


सर्दी यूँ ही दबे पाव आती है

सर्दी क्या यूँ ही दबे क़दमों से हमारे कमरे , मौसम और जेहन में प्रवेश करा करती है ... अचानक यूँ ही ?
धीरे धीरे पंखा कम से बंद हो जाते हैं। नल का पानी ठंढा लगने लगता है। सुबह पावों में सर्दी प्रवेश करने लगती है।
दुःख तो शायद यूँ नही आता। खुशी यका याक आया करता है। दुख भी उसी रस्ते आया करती है।





Thursday, October 23, 2008

लोग क्या यूँ ही चले जाते हैं

लोग कई दफा यूँ ही बिन बताये हमारे बीच चले जाते हैं। उनके जाने के बाद महसूस होता है वो कल तो हमारे साथ था। आज अचानक बिन बताये कहाँ चला गया ? उसके जाने के बाद लगता है वो तो उन हर चीजों में है जिसका इस्तमाल किया करता था। हम बस चीजों में, जगह, बातो में उसे तलाश करते हैं।
लेकिन वो तो इन सब से बेखबर कहीं दूर जा चुका होता है । हमारे पास रह जाती हैं तो बस उसके साथ बीतए पल घत्याने बस ।






Thursday, October 9, 2008

रावन को जलाया

क्या अपने अन्दर के रावन को जलाया? हर के जेहन में एक नही कई रावन रहा करते हैं। पर हम उस रावन से मुहब्बत किया करते हैं। शायद हम कई बार रावन की सिनाखत नही कर पाते या कभी कभी पहचान कर भी नज़रंदाज करते रहते हैं।
रावन महज एक आदमी नही बल्कि कई मानवीय पहलुवो कर प्रतिक है। हर बार दहन के बाद भी बुराइ समाज से जाती कहाँ है। सब के अब हमारे आसपास घुमती रहती हैं।



शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...