Saturday, October 11, 2014

छायावाद में वृहत्त्रयी: एक अनुशीलन


कादंबनी के अक्टूबर 2014 के अंक में समीक्षा पढ़ सकते हैं

कौशलेंद्र प्रपन्न
‘नागार्जुन का रचना संसार’, ‘कविता की संवेदना’, ‘आलोचना का स्वदेश’, ‘उपन्यासः समय और संवेदना’, ‘शब्द जिन्हें भूल गई भाषा’ आदि पुस्तकों के रचयिता विजय बहादुर सिंह की किताब ‘‘छायावाद के कवि प्रसाद,निराला और पंत’’ में प्रसाद,निराला और पंत की काव्य संसार और संवेदना का पूरी बारीकि से भौगोलिक चित्रण पेश किया गया है। इस किताब में भाषायी संरचना के एक एक रेशों को तार तार कर पहचानने की कोशिश की गई। जिसकी झलक हमें पाठ 8 में काव्य भाषा शीर्षक के अंतर्गत पढ़ने को मिलता है। इस पाठ में सिंह बड़ी ही गंभीरता से वृहत्रयी पंत,निराला और प्रसाद के काव्यगत भाषायी संरचनाओं और भाषायी बुनावट का विश्लेषण करते हैं। प्रसाद की काव्य भाषा के तहत प्रसाद के समग्र काव्य दुनिया में इस्तमाल भाषा की छटाओं का विवेचन मिलता है। राम स्वरूप चतुर्वेेदी के अनुसार ‘चित्राधारा’ की कविताओं में प्रसाद ने ‘खड़ी बोली का ब्रजभाषाकरण’ किया है पेज 234। प्रसाद की काव्य दुनिया में किस तरह की भाषायी आवजाही हुई है इस पाठ में उदाहरण सहित देखा-पढ़ा जा सकता है। वहीं निराला और पंत की काव्यगत भाषा की छवियों पर भी सिंह ने विमर्श किया है।
हिन्दी साहित्य में छायावाद का ख़ासा महत्व है। हिन्दी काव्य यात्रा कई वादों, विवादों और संवादों से गुजर कर ही निखरी है। बल्कि कहना चाहिए हिन्दी काव्य की यष्टि इन्हीं वादों और दर्शनों से सौंदर्य प्राप्त करती रही है। वह चाहे प्रगतिवाद हो,प्रयोगवाद हो या फिर गीत, नवगीत आदि। इन्हीं तमाम मोड़ों, मुंहानों से गुजरती हुई हिन्दी काव्य की भाषायी छटाएं भी बिखरती रही है। छायावाद की चर्चा जब भी चलेगी तब तब प्रसाद,निराला और पंत को नजरअंदाज कर के नहीं चला जा सकता। साथ ही यह विमर्श अधूरा माना जाएगा जब तक की हम महादेवी जी को इस विमर्श में न शामिल करें।
विजय बहादुर सिंह हिन्दी साहित्य, कविता, समीक्षा और भाषायी अनुशीलन के क्षेत्र में स्थापित और परिचित कलम हैं। इन्हीं की लेखनी से जन्मी ‘‘छायावाद के कवि प्रसाद,निराला और पंत’’ पुस्तक इन तीन कवियों के समग्र स्थापनाओं, मान्यताओं और वैचारिक प्रतिबद्धताओं की समीक्षा करती हैै। यह पुस्तक महज पठनीय ही नहीं हैं बल्कि इनकी जरूरत लंबे समय तक बनी रहेगी। जब भी जहां भी तीन कवियों के कर्म, भाव, भाषा पर शोध का प्रश्न उठेगा तब तब यह किताब संदर्भ ग्रंथ के तौर पर इस्तमाल होगा।
पहले पाठ परंपरा की खोज में संस्कृत नाटकों, साहित्यों और साहित्यकारों के बरक्स सिंह ने स्थापित किया है कि क्यों वृहत्त्री संज्ञा का इस्तमाल इन्होंने किया है। 1932 में पहली बार नंददुलारे वाजपेयी ने प्रसाद,निराला और पंत पर एक लेख माला लिखी थी जो तत्कालीन साप्ताहिक ‘भारत’ में क्रमशः 10 जुलाई,1932 में प्रकाशित हुई थी। उस लेख माला में सर्वप्रथम वृहत्त्रयी शब्द का प्रयोग किया गया था, पेज 13। इस पाठ में भवभूति, भारवि, कालिदास जैसे संस्कृत के प्रकांड़ विद्वानों के हवाले से सिंह ने साबित किया है कि किस प्रकार संस्कृत साहित्य में त्रयी के नाम से साहित्यकारों को पहचाना गया वैसे ही वाजपेयी ने वृहत्त्री के अंतर्गत पंत,निराला और प्रसाद को शामिल किया। इस पाठ में प्रचुरता से संदर्भ ग्रंथों का प्रयेाग किया गया है। बतौर उदाहरण, बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रसिद्ध कवि और समीक्षक पं. जानकी वल्लभ शास्त्री ने इन तीनों महाकवियों को अपने विवेचन का आधार बनाते हुए एक समीक्षा पुस्तक ‘त्रयी’ के नाम से प्रस्तुत की।
पूरी पुस्तक में जिस तरह से पाठों में संदर्भ और पाद टिप्पणियों का प्रयोग किया गया है उससे स्पष्ट होता है कि लेखक ने एक एक बात को कहने से पूर्व उसकी बहुत बारीकि से पड़ताल किया है। साथ ही बात को पूर्व स्थापित और सिद्ध साबित करने के लिए पूर्व लेखकों, चिंतकों और समीक्षकों की किताबों, विचारों को सप्रमाण रखा है। यह किताब महज लेखों का संग्रह नहीं है। यह किताब छायावाद की व्याख्या भी नहीं है। बल्कि यह किताब छायावाद को समझने और छायावादी कवियों त्रयी की दार्शनिक बुनावट के साथ ही सामाजिक और सांस्कृतिक प्रकृति की भी समग्रता से व्याख्या करती है।
काव्य का विषय, काव्य का वस्तु आदि कविता की बुनियादी ढांचे पर भी विमर्श के अवसर मुहैया कराती है। किस कवि की क्या काव्य विषय रहे हैं उनमें संस्कृति, समाज, दर्शन, आत्म जीवन दर्शन किस हद तक काव्य को प्रभावित करते हैं आदि की चर्चा हमें तीनों ही कवियों को लेकर अलग अलग शीर्षकों में मिलती हैं। मसलन वृहत्त्रयी के कवियों का काव्य विषय व्यक्ति की आशाओं,आकांक्षाओं से लेकर विश्व मानव के सुख-दुख और सौन्दर्यपूर्ण जीवन तक फैला हुआ है, पेज 61। इस तरह से तीनों ही कवियों के काव्य विषय पर विस्तार से विमर्श मिलता है।
यह पुस्तक निःसंदेह एक शोध छात्र के लिए लाभदायक तो है ही साथ ही हिन्दी के सुधी पाठकों के लिए जिन्हें इन कवियों से विशेष स्नेह है उनके लिए यह खासे महत्व की है। पुस्तक के पाठों की योजना बड़ी सोच समझ कर की गई है। एक एक पाठ बेशक आकार में लंबे हो गए हों लेकिन विषय और कथ्य के लिहाज से प्रासंगिक हैं। परिशिष्ट 1 और 2 विशेषतौर पर महादेवी वर्मा पर केंद्रीत है। यह परिशिष्ट अपने आप में काफी लंबा है लेकिन पाठकों को यह एक नए अनुभवों से गुजरने जैसा होगा। क्योंकि यह परिशिष्ट श्रमसाध्य है। लेखक ने इस पुस्तक को सिर्फ विचार के स्तर पर भी स्थापित करने की कोशिश नहीं की है बल्कि एक एक वाक्य कहने के पीेछे तर्क और प्रमाणों का भरपूर सहारा लिया है।
 
छायावाद के कवि
प्रसाद निराला और पंत
लेखक- विजय बहादुर सिंह
प्रकाशन-सामसिक बुक्स,नई दिल्ली
वर्ष-2014
मूल्य-595

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