Saturday, September 26, 2009

रावन ज़यादा ही शर्म्स्सर था

आज रावन ज़यादा ही शर्म्स्सर था, कहने लगा मैंने तो सीता का इक बार ही अपहरण किया था मगर इक बार भी ग़लत नज़र नही डाला। मगर अज कल तो लड़कियों की कोई कहे औरत भी महफूज़ नही। सामूहिक रैप होता है। क्या ज़माना है। मुझे लोग हर साल दहन करते हैं मगर ख़ुद के अन्दर झक कर नही देखते।

Friday, September 11, 2009

इस कदर शा

क्या कोई किसी कि ज़िन्दगी में इस कदर शामिल हो जाता है? क्या किसे कब अच लग जाए कब पीछे चला जाए कुछ भी तै शुदा नही।

जब कोई चला जाता है तब महसूस होता कि उस नाम का क्या और किस तरह का प्रभाव होगा या होता है। ह्स्स्र कि जहाँ तक बात है मंज़र तो यह भी होता है कि सुबह हो या रात या फिर कोई भी पल उसके ख्याल से खाली नही होता।

लेकिन जो भी कदम किचता है वो काफिर भी तो नही हो सकता।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...