Friday, April 30, 2010

रुका हुवा दौरे वार्ता चल पड़ी

रुका हुवा दौरे वार्ता चल पड़ी। भूटान की राजधानी थिम्पू में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के बीच हुई बातचीत से उम्मीद बंधी है कि रुकी हुई वार्ता की ट्रेन चल पड़ेगी। पिचले साल शर्म अल शेख में हुई मुलाकात का कुई खास असर इसलिए दिखाई नहीं दिया क्योकि पाकिस्तान ने किये वादे को पूरा नहीं कर सका। बतौर पाक की ज़मीन का इस्तमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ने में किया जाता रहा। यही वजह है कि वार्ता रुक गई थी।
दोनों देशों के बीच इस वार्ता से राजनिक के लेवल की वार्ता शुरू होगा। बेहतर है मामले वार्ता से सालता लिए जाये। वर्ना वो भी कमतर नहीं। हम भी तो बाज नहीं आयेंगे। और दोनों की आन शान में बिला बजह आम नागरिक परशान होंगे।
भारत और पाक के रिश्ते के कई आयाम हैं। कई मोड़ हैं। उन मोड़ और रेशे को समझना होगा। तभी दोनों देशों के रिश्ते के खटरस समझ पाएंगे। दरअसल १९४७ के सपने पाकिस्तान की आखों में है। वो कश्मीर को लेने में कोई कसार उठा नहीं रखना चाता। और भारत भी कैसे कश्मीर को दान कर दे। यहीं पर दोनों देशों के रिश्ते की उष्मा दबी है।
बेहतर हो की सियाचिन, पानी, कश्मीर के मामले को बातचीत के ज़रिये सल्ताया जाये। वर्ना पाकिस्तान का विकास रुका है अब डाउन होना शुरू होगा। इकोनोमी का बड़ा हिस्सा तो वह सेना पर खर्च करता है। तो यैसे में बाकि शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार आदि पर ध्यान देना संबव नहीं।

Monday, April 5, 2010

आत्मविश्वास का पेंडुलम

गति में भी जड़ता का सिधांत काम करता है। गति में रहते रहते हम इक तरह के रफ़्तार में जीने के आदि हो जाते हैं। इसलिए गति और बदलावों ज़िन्दगी में बेहद ज़रूरी है। परिवर्तन हमारे सोच, रहन सहन बोल चाल सब में दिखाई देता है। लेकिन आत्मविश्वास का डोलना कुछ देर के लिए हमें सोचने पर मजबूर करता है। हमारा आत्मविश्वास क्योंकर डोलता है ? किन हालत में हम अपने रह से विचलित होते हैं इसकी भी तहकीकात करनी होगी।
लेकिन इतना तो निश्चित है कि लाइफ में आत्मविश्वास तभी डोलने लगता है जब हम अन्दर से असुरक्षित महसूस करते हैं। इक दर हमारे अन्दर घर बनाने लगता है तब हम अपने से ज़यादा दुसरे पर विश्वास करने लगते हैं। किन्तु आत्मविश्वास का दोलायेमान अवस्था सही संकेत नहीं देते। यानि कहीं कुछ बड़ा घट रहा है। जब हम खुद ही विश्वासी नहीं हो पाते तो दुसरे के बारे में क्या कह सकते है।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...