Wednesday, April 17, 2013

लो मैंने भी बदल ली रूख



जिधर से बाॅस आते  हों,
उधर दांत निपोर कर हो जाता हूं खड़ा,
जहां बैठते हैं उसके इर्द गिर्द,
मडराने लगता हूं।
मैंने भी मोटी कर ली है अपनी चाम-
वो कितना भी भला बुरा कहे,
कोई असर नहीं
बस मंुह पर मुस्कान,
जी हां जी हां का जाप।
जिधर तू चलेगा-
जह जह विराजे,
वहीं तेरी स्तुति गान हो जाए शुरू,
देखते हैं,
इस बरस कौन है जो रोक ले।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...