Thursday, December 13, 2018

तुम्हारे हार पर हंसेंगे हम



कौशलेंद्र प्रपन्न
हंसने वाले हजारों हैं। इन्हें हंसने का सबब चाहिए। कोई तो वजह हो जिस पर हंसना चाहिए। हम कई बार हंसने का वजह दिया करते हैं। हम अपनी कमजोरी देते हैं जिसपर हंसा करते हैं। हार भी कई बार हमें जीवन में आगे बढ़ने की वजहें तय किया करती हैं। लेकिन हम हारना ही नहीं चाहते। चाहे वो खेल हो या फिर जिं़दगी। हम हर वक़्त जीतना चाहते हैं। यही सबसे बड़ी चुनौती है। हार में जो जज़्बा है उसे महसूस नहीं किया करते। उस हार में जीतने के प्रति जो प्रयास है उसे नज़रअंदाज़ कर दिया करते हैं।
हार से निकलती है जीत का सबब। और कैसे जीता जाए इसकी योजना हम तब बनाते हैं जब हार जाते हैं। चाहे वह हराने वाले अपने हों या फिर कोई और। हार से जीत की योजना निकला करती है। इसे ऐसे भी समझने की कोशिश करें कि यदि आप किसी प्रोजेक्ट को लीड कर रहे हैं और अपने तई बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में अपनी पूरी क्षमता लगा देते हैं। लेकिन अचानक मैंनेजमेंट को एहसास होता है कि यह तो हमारी बात नहीं मानता। हमारी सुनता नहीं। हमारे इशारों पर नहीं चलता। यह उन्हें पसंद नहीं आती। उन्हें यह स्वीकार नहीं कि जिसे हमने चुना वो हमारे इशारों पर क्यों नहीं चलता। अपना विवेक क्यों प्रयोग करता है। आपका विवेक उन्हें पसंद नहीं आता। उन्हें यह भी पसंद नहीं आता कि वो हमारी सारी बातों पर हुंकारी नहीं भरता।
और मैंनेजमेंट की आंखों में खटकने लगते हैं। आपके सामने एक बड़ी लाईन खींच दी जाती है और कहा जाता है उस लाईन को तुम मीट नहीं कर पाते इसलिए क्यों न आपको हटाया जाए। आपको सीधे सीधे हटाया तो नहीं जाता, बल्कि आपके सामने ऐसी चुनौतियां खड़ी कर दी जाती हैं जिन्हें आप मीट नहीं कर पाते। और आपको कहा जाता है कि आप तो हमारे पैरामीटर पर ख़रा नहीं उतरते। क्यों न आपको हटाया जाए।
कई बार ऐसी परिस्थितियों पैदा कर दी जाती हैं जिनसे आपको लड़ना होता है। आपको साबित करना होता है कि आप अभी भी योग्य और दक्ष हैं। हर वक़्त आपको प्रूफ करना होता है कि आप हैं और आपकी अपनी पहचान भी है। लेकिन इसमें आप कई बार उन लोगों से भी जूझते हैं जो कभी आपके साथ हुआ करते थे। सत्ता परिवर्तित होते ही उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। उनके लिए यह चुनाव ज़रा मुश्किल हो जाता है कि नए निज़ाम के साथ कितना ईमानदार रहना है और पुराने वाले के साथ कितना रहना है।
 

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