Tuesday, July 22, 2008

बाल जाने लगे घुमने

मेरी इक दोस्त है -
सर से बाल जाते देख ,
ज़रा चिंतित लगती है ,
कहती है ,
क्या मालूम है
कोई दवा या...
नही चाहती की समय से काफी पहले सर नंगा हो नही चाहती बिग
क्या है बाल तो हैं ही जाने के लिए पर उसे ये बात समझ नही आती या
यह लगावो है सुंदर रहने का
पर यही तो है जिद्द की मैं ज़रूर दूंगी चुनौती कुदरत को
और देखा इक दिन उसके सर पर घने बाल ।
कैसे चुप रहता देख कर परिवर्तन
कहने लगी चाह हो और काम भी तो ,
मुस्किल नही ।

जन्म दिन मालूम नही

पिता जी कब जन्मे थे -
इक दिन पिताजी से कहा ,
आप कब जन्मे थे ,
आश्विन पक्ष में याद नही तुम लोग इंग्लिश में क्या कहते हो ,
जनवरी या जून कुछ होगा पर याद नही।
कहने लगे सात और पाँच पर कर गया -
फिर भी लगता है कुछ पढ़ना छुट रहा है ,
मैं चाहता हूँ ,
तुम अभी और पढो
माँ नाराज़ हो गईं ,
शादी तो करता नही
आपने सर पर बैठा रखा है ,
कुछ बोलते नही और दोनों में हो गई ...
भूल गए जन्म दिन
पिताजी ने बस कहा ,
इक बात है आज कल क्या पढ़ रहे हो !
कुछ मुझे भी भेजो पहले वाली किताब पुरी... और खासी तेज़ होगी ।

तोते वाले पंडित जी के पास बैठे रहते

वो अक्सर तोते वाले पंडित जी के पास बैठे रहते थे -
भर भर दुपहरी तोते का निकलना देखते रहते ,
तोता बाहर आता कार्ड निकलता ,
पंडित जी बचाते ,
ठीक ठाणे वाली मोड़ पर।
रोड के किनारे पंडित जी -
बैठे कार्ड पढ़ते ,
बस पाच रुपये लेते ,
चुन्नू दा घर जाते बस खाना खाने बाबा कहते आ गए खाना दो फिर जायेंगे काम पर ।

Monday, July 14, 2008

अन्दर का मौसम

बाहिर का मौसम कैसा भी हो ,
अंदर का मौसम तै करता है मौसम होगा

इक आँख है पास

इक आँख है पास जो हर समय
देखती रहती है
मेरी हर बात और हर कदम पर
हर बार चाहता हूँ
आँख की भाषा समझ सकूँ
पर हर बार हार जाता हूँ ।
आँख की बूंदें
पड़ी हैं
आस पास
पर कुछ न बोलते हुए भी
बहुत कुछ कहती हैं ।
आँख से चाँद बातें
टपकती हैं -
कहती हैं ज़रा समझो तो।

Saturday, July 12, 2008

आप की जब पकड़ी जाती है झूठ

क्या सोचा है कभी की जब आप की पकड़ी जाती है झूठ तब कैसा लगता होगा ?
नही सोचा होगा , कभी हम अपनी गलती पर कब सोचते हैं ? बस दुसरो की गलती निकलते रहते हैं तभी तो हमें अह्नुभाव ही नही होता की कभी तो सच बोलने की सहस जुटा पायें मगर हमारे आगे अहम् आ जाता है ।
आब यैसे में दोष किसे दिया जाए ? क्या आप ने कभी सोचा है? शायद मौका न निकल पायें हों? क्या सच है ।
अगर हाँ तो सच को मानाने की सहस जुटानी ही चाहिय ।
क्या आप भी इस विचार से इतफाक रखते हैं ?
आप को असहमत होने की भी पुरी छुट है मगर बच कर निकलना ठीक नही होता ।

Friday, July 11, 2008

सरकार पर संकट

परमाणु करार को लेकर सरकार पर संकट के बदल छाए हैं , अब २२ जुलाई को सरकार को संसद में अपनी परीक्षा देनी है !
सभी संसद संसद के भीतर अपनी वजूद तलाश रहे हैं ,
कौन नही चाहता सरकार सी शक्ति और बल ।
तभी तो सभी पार्टी की कोशिश है किसी भी तरह सत्ता में आजायें।

Thursday, July 10, 2008

दोस्त को जब प्यार हो गया

जब मेरे दोस्त को प्यार हो गया
तो वह और खुश रहने लगा
पर अन्दर क्या कुछ बन रहा था
या कुछ हो रहा था
वो तो तेज़ क़दमों से उसके पास जाने लगा
पता क्या था के
वो तो ...
पर न ही टुटा न हुवा शांत
हलचल बढती रही
कहा डाला देख कर मौका
क्या तुमको विश्वास है
पहली नज़र के प्यार में ?
तो क्या कहा उसने
हमें करना होगा इंतजार
तब तलक
जब तक
उसकी आस है
शायद कुछ दिख जाए किरण
कल की.

Monday, July 7, 2008

पत्र लिखने का दिन गुजर सा गया

कई दिन से सोच रहा हूँ पिता को लिखूं
कैसा हूँ
कितना याद आते हैं पिता
मौन शांत
कुछ गढ़ते से
या चुप चाप नदी के किनारे सुबह
टहलते हुए
पर क्या करूँ क्या लिखूं
हर शाम जब थक जाता हूँ तब याद आते हैं पिता
लिखने को ख़त बैठता हूँ
लेकर कलम
पर हाथ नही चलते
झूठ लिखते कापने लगते हैं
के मैं ठीक हूँ
वो पढ़ कर उदास हो जायेंगे
सो छुपा लेता हूँ
खुश हूँ
आप पिता याद आते हैं माँ पास में बैठी
कहती

Friday, July 4, 2008

क्या हल कहें

ज़नाब आप पूछते हैं क्या हाल
मैं क्या कहूँ
रोज़ सुबह घर से निकलते समय पॉकेट में
रखता हूँ अपनी तस्वीर
कहीं मिलूं भटकता तो
साथ ले लेना

Wednesday, July 2, 2008

शहर के किनारे

कई बार सोच कर फिर चुप बैठ जाता हूँ कहाँ तलाशूंगा शहर का शांत कोना
हर तरफ़ भीड़ और शोर पसरा है
लगता है तुम्हारे शहर में शोर है या तुम शोर में रहते हो कई बार सोच कर फिर चुप रह जाता हूँ
कई बार शहर में पसरा शोर डराता रहता है
मगर कुछ तो है

Tuesday, July 1, 2008

आज स्कूल खुल गए

दो माह के बाद स्कूल दुबार खुल गए
दुबार स्कूल में रौनक आ गई
मगर पिटाई का सिलसिला रुकेगा नही
मादाम स्कूल में वैसे ही बैठ कर समय काटेंगी
बच्चे चुपचाप अपना सबक याद करेंगे
कुछ भूल जायेंगे तो कुछ उम्र भर उनके साथ घूमेंगी
कभी दूर नही जा सकते
बच्चे उम्र भर इन्ही सबक में अटक जायेगे

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...