Thursday, March 22, 2012

बजट के पैसे कितने मिलते हैं स्कूल के बच्चों के लिए

इक खबर और रिपोर्ट के अनुसार बजट में शिक्षा की बेहतरी के लिए सर्वशिक्षा के मद में हर साल इजाफा हो रहा है लेकिन प्रथम के इक रिपोर्ट की मानें तो मिलने वाले पैसों का अधिकांश भाग रंगे पुताई, रजिस्टर, स्कूल के मरमात में खर्च हो जाते हैं. अगर फीसदी पैसे की बात करें की कितना भाग बच्चों की शिक्षा पर खर्च होता है तो ताजुब होगा सिफर है महज ६ फीसदी ही शिक्षा की बेहतरी पर होता है.
प्रथम ने 14,२८३ हज़ार स्कूल को अपने सतुदी के लिए चुना जिसमे यह हकीकत सामने आया. गौरतलब है की सरकार हर साल सर्वार्शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा, उचा शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए पैसों को बढ़ाती रही है. इस बार २०११-१२ की तुलना में २९ फीसदी ज्यादा मिले लेकिन हकीकत यह है. २००९-१० में जहाँ २००,४ करोड़ रूपये मिले यहीं २०१० में ४,२६९ करोड़ रूपये मिले. यदि रूपये पर नज़र डालें तो पायेंगे की हर साल बजट में कमी नहीं है. तो सवाल उठता है फिर पैसे जाते कहाँ है? क्यों स्कूल को शिक्षा के मद में मिले पैसे को इस्तेमाल अन्य कामों में करना पद रहा है ?
बहरहाल, पैसे जहाँ भी जिस के भी जेब में जा रहे हैं वह बच्चों के पहुच से काफी दूर है.  
          

Saturday, March 17, 2012

ज़िन्दगी कभी ...

ज़िन्दगी कभी ..
.आगे तो कभी काफी आगे निकल जाती है ,
पीछे कई सारे सवाल फेक जाती है,
धुन्ध्ते रहते हैं हम लोग,
मैथ खुजाते,
बाल नोचते,
सुलझाने को ज़िन्दगी की गुथी.
कई बार ज़िन्दगी हम से आगे निकल जाती है-
तो कभी हम ज़िन्दगी से आगे,
मुद मुद कर आखें,
महसूस करते हैं,
राह के पथिक को,
जो मिले इक बार,
वो जुदा ना हो पाए.             

Friday, March 16, 2012

2012-13 के बजट शिक्षा को कितना मिला



संसद में दादा के दिए भाषण से शब्द उधर लें तो नीचे के तथ्य सामने आते हैं- 
शिक्षा का अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान हेतु 2012-13 के बजट अनुमान में 25,555 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्‍ताव है, जो कि 2011-12 की तुलना में 21.7 प्रतिशत अधिक है।
·         12वीं योजना में मॉडल स्‍कूलों के रूप में ब्‍लॉक स्‍तर पर 6 हजार स्‍कूलों की स्‍थापना का प्रस्‍ताव है।
·         राष्‍ट्रीय माध्‍यमिक शिक्षा अभियान हेतु 3,124 करोड़ रुपये उपलब्‍ध कराए गए हैं, जो कि 2011-12 के बजट अनुमान की तुलना में 29 प्रतिशत अधिक है।
गौरतलब है की इस पुरे बजट में प्राथमिक और कॉलेज के साथ ही शोध संसथान को क्या मिला यह इक्सिरे से गायब है. 
शोध और युनिवेर्सिटी स्तर की शिक्षा के सुधार के लिए साफ साफ़ कोई संकेत नहीं मिलते. इसके पीछे शिक्षा को किस संजीदगी से लिया जाता है इस का पता चलता है. यह हकीकत किसी से छुपा नहीं की आज जितनी आवश्यकता बाज़ार को दुरुस्त करने की है उससे जरा भी कम जरूरत शिक्षा को नहीं है. दिन प्रतिदिन देश की प्राथमिक और युनिवेर्सिटी की शिक्षा महंगी और स्तरहीन होती जा रही उस की चिंता सरकार को न जाने क्यूँ नहीं है.     


Thursday, March 15, 2012

रेल मंत्री तो ट्रैक से उतार दिए गए

दीदी के नहीं मान कर रेल मंत्री ने देखलिया की पानी में रखकर मगर से बैर नहीं किया जाता. लेकिन पता नहीं द्विवेदी ने क्या सोच कर रेल को इचू से बह्हर निकालने पर तुले थे बेचारे खुद बाहर कर दिए गए. गौरतलब हो की रेल मंत्रालय ने पिछले १० सालों में किसी किस्म के किराए में इजाफा नहीं किया था. इसके पीछे हर कोई अपने सर पर ठीकरा नहीं फोड़ना चाहते थे सो किराए में इजाफा के रिश्क नहीं लिया. मगर किसी न किसी को तो रेल विभाग को संजान में लेना था.
अब चीर इंतज़ार वित् बजट आने वाला है. आज की रात सरकार, बाज़ार, कंपनी, घर आदि के लिए बेहद गहरा है. कल यानि १६ मार्च २०१२ की दुपहरी सब के लिए तपिश लाने वाली है. हर सेक्टर को कल कितना मिलने वाला है इस तरफ नज़रें टिकी है.
क्या शिक्षा की बेहतरी के लिए वित् मंत्री कुछ ठीक ठाक आवंटन करने वाले हैं? बस कल इन्सभी पर से पर्दा उठने वाला है. इक बात तो जाहिर है की यदि स्कूल शिक्षा ठीक नहीं किया गया तो देश महज साक्षर बन सकता है शिक्षित नहीं.              

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...