Thursday, September 26, 2013

तलाक विकास का राह

तलाक विकास का राह
क्या यह सच है? समाज में ऐसी कई महिलाएं मिलेंगे जिनकी जिंदगी में विकास के नए आयाम खुले ही तलाक के बाद। उनके लिए तो तलाक वरदान से कम नहीं था। कोई प्रसिद्ध फोटोग्राफर बना तो कई जज कोई प्रोफेसर। कई की जिंदगी तलाक के बाद सुधर गई।
ल्ेकिन यह कहना सरलीकरण होगा कि सभी महिलाओं जो विकास और जीवन में कुछ बनना चाहती हैं, उन्हें तलाक ले लेना चाहिए। आस-पास नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि ऐसी महिलाएं हैं जो पति के साथ खुश नहीं थीं। जिंदगी नरक सी थी। लेकिन जैसे ही अलग हुईं उनके जीवन में विकास और आगे बढ़ने के रास्ते साफ होते चले गए।
यह सवाल उन महिलाओं से भी पूछा जाना चाहिए जो पति के साथ हैं। लेकिन किन्हीं कारणों से जीवन में आगे व पति के समकक्ष नहीं आ पाईं वो तलाक चाहती हैं? यह एक शोध का विषय है। लेकिन इतना तो साफ है कि यदि पति कुछ पत्नियों के जीवन में बाधा बने तो कुछ महिलाओं के विकास में पतियों ने अपनी सारी उर्जा झोंक दी।
तलाक के बाद की जिंदगी सामाजिक और आन्तरिक कैसी होती है यह वह महिला ही बेहतर बता सकती है। लेकिन यदि तलाक के वह महिला सजती संवरती और पहले से बेहतर दिखने के लिए जीम आदि जाती है तो लोग सीधे कटाक्ष ही करते हैं। किन्तु इसका एक पहलू यह भी ह ैअब वह महिला एक बार फिर से जीने की कोशिश कर रही है। उसे सकारात्मक नजरीए से देखने की जरूरत है।

Tuesday, September 24, 2013

शहर के नामी चौराहों पर पिज़्ज़ा और इंग्लिश लैटर के बर्गर

कुछ बरस पहले मेरे शहर में इक जनांदोलन हुवा। युवा जन जो मांग कर रहे थे की हमारा शहर भी कुछ कम नहीं। ५ सिनेमा हाल है. कॉलेज स्कूल हैं , कोर्ट है , क्या नहीं है इस शहर में , फिर हमने क्या बुरा किया की हम ख़ास पिज़्ज़ा शॉप , ख़ास इंग्लिश लैटर की दुकान में बर्गर नहीं खा सकते।।।
बात मौजू थी. शहर के नेता , डीएम सब के सब परेशां।  क्या करें।  रोड जाम , सड़क पर युवा वर्ग क्रोधित घूम रही है इन्हें शांत करना पड़ेगा। 
सो साहिब इक दिन देखें इक माह के भीतर पुरे शहर के नामी चौराहों पर पिज़्ज़ा और इंग्लिश लैटर के बर्गर की ठंढी हवा वाली दुकान खुल गई. 
आज मेरा शहर ही नहीं बल्कि देश के दूर दराज कस्बाई इलाकों में भी इन दुकानों को देखा जा सकता है।     

Sunday, September 22, 2013

वो बेचारी हमेशा रहती घर से बाहर,
धुप पानी ,
सर्दी गर्मी ,
हर मौसम में सदा बिना उफ़ किये। 
उसकी कहाँ किस्मत की रहे गैराज में 
हाँ कुछ को मिल जाती हैं गैराज ,
लेकिन कई हैं कारें जो हमेश रहती हैं ,
घर के बाहर ,
इंतज़ार में की साहेब,
हमें भी नहला दो ,
की जैसे नहाते हैं बच्चे ,
बेचारी कार ,
नहीं आ पाती घर में,
की जैसे नहीं आती घर में धुप ,
रौशनी ,
 कई कारो के भाग्य में नहीं होता नहाना ,
घर.

Thursday, September 19, 2013




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राष्ट्रीय बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग की पहल पर कश्मीर में राज्य आयोग बनाने की पहलकदमी

श्रीनगर में कुछ स्कूल के बचों से मुलाकात हुई. उनसे शिक्षा स्कूल और विभिन्य मुद्दों पर भी चर्चा हुई. शालीमार बाघ में बचों ने लोकल गीत भी सुनाये  जो गहरे उतर गया.
इक ६ साल की अमिन वाणी जो की १ ली कक्षा में पढ़ती है वो अपने घर से २० किलो मीटर दूर स्कूल में जाती है. सरकारी स्कूल की बदहाली से मजबूर उसके घर वाले महंगे निजी स्कूल में भेजते हैं. हलाकि शिक्षा का कानून श्रीनगर जम्मे पर लागु नहीं होता लेकिन सरकारी स्कूल की स्थिथि कुछ अची नहीं है.
पहलगाम , गुलमर्ग , अनंतनाग जिलों में भी स्कूल तो हैं पर न टीचर प्राप्यत हैं और न बच्चे ही जाते हैं. यूँ तो रोड पर सरकारी किस्म के ड्रेस में बच्चे दिखाई दिए मगर अधिकांस लोग बच्चों को निजी स्कूल में भेजते हैं.
राष्ट्रीय  बाल अधिकार एवं संरक्षण आयोग की पहल पर कश्मीर में राज्य आयोग बनाने की पहलकदमी चल रही है. यहाँ भी आयोग बन जाये तो बेहतर हो.

Wednesday, September 4, 2013

सावधान रहो, गलत इरादे से कोई छूने की कोशिश करे तो



कौशलेंद्र प्रपन्न
स्कूल हो या घर-परिवार तुम्हें हर जगह सावधान रहने की आवश्यकता है। सावधान इसलिए क्योंकि कई लोग प्यार-दुलार के बहाने तुम्हें गलत इरादे से छूने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों में कोई भी हो सकता है। वह भाई,पापा, चाचा व अन्य रिश्तेदार के साथ ही स्कूल के टीचर भी हो सकते हैं। ऐसे लोगों की नजर न केवल लड़कियों पर होती है बल्कि लड़कियां भी इनकी गिद्ध नजर में होती हैं। कई बार हो सकता है तुम्हें समझ ही न आए कि वे तुम्हारे साथ क्या कर रहे हैं। लेकिन निश्चित मानो धीरे-धीरे ऐसे लोग तुम्हारे साथ गलत करने की शुरुआत कर रहे होते हैं।
जब भी तुम्हें ऐसे महसूस हो कि कोई तुम्हारे प्राईवेट पार्ट को छूने व प्यार से ही सही लेकिन तुम्हें सहला रहा हो तो पहली बार ही तुरंत विरोध करो। तुम स्कूल में प्रिसिपल को बता सकते हो। घर में मम्मी-पापा व किसी भी बड़े सदस्य को जरूर बताओ।
दुनिया में ऐसी बच्चियों की संख्या काफी है जिन्हें स्कूल में इस तरह के हरक्कतों का सामना करना पड़ा है। जिन्होंने विरोध किया तभी ऐसे लोगों के खिलाफ कार्यवाई हो पाई। जो चुप रह गए वे बच्चे शिकार होते रहे। इसलिए तुम्हें शिकार नहीं होना बल्कि इनलोगों के खिलाफ अपने से बड़ों को बताना है।
बच्चों तुम्हें पता होगा कि ऐसे लोगों से न केवल तुम्हें बल्कि बच्चियों को भी संभल कर रहने की जरूरत है। क्योंकि कई ऐसे रिसर्च हो चुके हैं जिनके आंकड़ों के अनुसार लड़कों के साथ भी ऐसे लोग गलत करते हैं। जो बच्चे बोल नहीं पाते वे जिंदगी भी इंटोवर्ट या अंतर्मुखी नेचर के हो जाते हैं। उनका आॅल राउड डेवलप्मेंट नहीं हो पाता।
लड़कियां व लड़के दोनों को ही अपने आस-पास के ऐसे लोगों से न केवल बच के रहना रहना है, बल्कि यदि तुम्हारे किसी दोस्त के साथ ऐसा हो रहा है तो उसकी मदद भी करनी चाहिए। मदद तभी कर सकते हो जब तुम खुद सजग और चैकन्ने रहोगे।

गिजूभाई अब भी हैं हमारे स्कूलों मे


मास्टर जनगणना में, मास्टर पोलियो पिलाने के अभियान में, मास्टर चुनाव ड्यूटी में, मास्टर भोजन पकाने, परोसने में, मास्टर स्कूल के दफ्तरी कामों में आदि आदि खूब सुनते  और पाते भी हैं। लेकिन मास्टर का एक दूसरा पहलू भी है और यह कि मास्टर पढ़ाने के लिए बेचैन भी होते हैं। मास्टर पढ़ाने से पीछे नहीं हटते लेकिन कई बार दूसरे अन्य काम इतने हावी हो जाते हैं कि मुख्य काम दूसरे पायदान पर आ जाता है।
मास्टर शोषण करता है। बलात्कार करता है। बच्चियों को बरबाद करता है। लेकिन ऐसे मास्टरों की भी कमी नहीं है जो सचिन तेंदुल्कर, अमिताभ बच्चन, राजेंद्र प्रसाद, अब्दुल कलाम जैसे बच्चों को गढ़ता और संवारता भी है। उन्हें सही राह भी दिखाता है। इतना ही नहीं मुझे याद आता है मेरे पिताजी अपने स्कूल के गरीब बच्चों जिनमें भी उन्हें उकसने और विकसने की संभावनाएं दिखती थीं उसकी फीस, कापी किताब आदि के पैसे घर में विरोध होने पर चुपके से मदद किया करते थे।
उन्हीं की मदद से आज कई बैंक में मैनेजर हैं, कोई रेलवे में उच्च पद पर हैं, कई मास्टर बन और कुछ अन्य नौकरियों में। आज भी उनमें से कई पिताजी के संपर्क में हैं। वे हमारे घर के सदस्यों में शामिल हैं। ऐसे कई मास्टर हैं जो बच्चों के विकास के लिए घर और स्कूल में अंतर नहीं करते।
आज के गिजूभाई के कंधे पर कई जिम्मेदारियां हैं जिनको पूरा करना है। समाज की अपेक्षाएं, हिकारतें आदि को सहते हुए ये गिजूभाई अपने काम में लगे हुए हैं। ऐसे गिजूभाई किसी पुरस्कार से सम्मानित भी नहीं होते। इससे भी इनके मनोबल कम नहीं पड़ते। लगातार जुटे हुए हैं।
एचएमडीएवी स्कूल दरियागंज जो लगभग सौ साल का हो चुका हैं। इसके विकास और संवर्द्धन में लगे वहां के प्रधानाचार्य रमा कान्म तिवारी भी गजब के उत्साह से भरे हैं। उन्होंने तो इस स्कूल की काया पलट ही कर दी है। लगातार वहां के बच्चे कई विभिन्न अंतर विद्यालयी प्रतियोगिताऔ में जीत हासिल कर रहे हैं। पूरा का पूरा दारोमदार निश्चित ही वहां मुखिया और मास्टरों, अध्यापिकाओं के मेहनत का ही तो फल है। इस तरह कई सरकारी स्कूल हैं जहां के मास्टर गिजूभाई की तरह लगे हैं।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...