Monday, March 29, 2010

नाले की लाश

नाले की लाश और आम लाश में क्या अंतर हो सकता है ? बेहद आसन सवाल है, इक आम लाश को कम से कम कफ़न तो मयस्सर हो गति है लेकिन इक लावारिश लाश को वो सब चीजें मुनासिब कहाँ। जो इक आम लाश को होता है।
रोने को तो हर लाश के साथ कुछ आखें होती ही हैं। कुछ के लिए आखें सूखती ही नहीं तो कुछ के लिए आसूं ही नहीं आतीं। नाले में बहती लाश को देखने के लिए लोग तो खड़े हो जाते हैं लेकिन उसकी शिनाख्त में मदद करने में पीछे हो जाते हैं। वैसे भी नाले में बहती लाश के साथ वो कुछ भी नहीं होता जो इक आम लाश के साथ किया जाता है। यानि उसकी अंतिम यात्रा में वर्दी वाले ही होते हैं। अपने तो धुंध में दिन, महीने काट देते हैं। आश कब कि ख़त्म हो जाती है। इक दिन अचानक फ़ोन का आना कि इक बॉडी मिली है पहचान के लिए आज्ये।
आखों में उम्मीद लिए लाश को देखते हैं। कोई पुराना निशान को मोहताज़ पड़ा इक प्यारा अब और हमारे साथ शामिल नहीं जान कर धक्का लगता है। कुबूल तो करना ही पड़ता है। यह तो शुक्र है कि कम से कम लाश तो मिल गई। वर्ना परिवार के लोग पूरी ज़िन्दगी तलाश करते उम्मीद में जीते रहते।
लाश नाले की हो या जेरो लैंड की दोनों का हस्र इक सा ही होता है।

Friday, March 12, 2010

भारत पाक का रिश्ता

भारत पाक का रिश्ता है बड़ा रोचक
क्या कभी सोच है वो कोण क्या है जहाँ पर दोनों दोस्त मिला करते हैं?
वो बिंदु है कश्मीर, आतंक और बम। इससे आगे चलें तो पाते हैं कि दोनों देशों में लोगों के रंग रूप, बोली बनी भी कामो बेश इक से है। जो इक नहीं है वो है मुहब्बत।
जब भी लोगों को मौका मिलता है हम विष बमन करने से गुरेज नहीं करते। कुल मिला कर मामला यही है कि हम वो हर पल को बेहद सिधात्ता से जिया करते है।

Sunday, March 7, 2010

सम्मान के इक दिन बाकि हैं.....

सम्मान के लिए इक दिन है विमेंस डे के नाम पर। लेकिन बाकि के साल भर जो भी करें वो माफ़। साल भर हम उनको हाशिये पर धकेल कर सुकून महसूसते हैं। हर संभव कोशिश करते हैं उनको आगे न आने दिया जाये। लेकिन वो तो उनकी लगन और जुनून है कि लाख रुकावट के बावजूद वो आगे आ रही हैं। तो यैसे में उनकी इज्ज़त के साथ लोकतान्त्रिक बेहैवे करना चाहिय।
लेकिन अक्सर यही होता है कि जहाँ भी मौका मिलता है हम उन्हें नीची जगह ही बैठते रहने के लिए जुगत भिड़ते रहे हैं। पर किसी को ज़यादा दिन तक रोक नहीं सकते। आज आलम यह है कि वो चाहती हैं हर जगह, हर मोड़ पर मजबूत कदम रखना। यैसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उनको रास्ता दें। वर्ना वो दिन क्या दूर है जब आप को उसे रह देने कि जगह उन से मांगना होगा।
आज लड़कियां हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है। उनको लाइफ में अब पुरुषों की जुररत नहीं रही। साफ कहती है जीवन में राहगीर प्यारा हो तो उसपर तंगने की जगह मजबूत बने।

Wednesday, March 3, 2010

दिल फुकती लड़की

दिल फुकती लड़की कहीं आप गलत न सोच लें इसलिए बता दें कि दिल्ली विश्वविद्लाया हो या अन्य कॉलेज हर जगह स्मोकिंग करती लड़कियां मिल जाएँगी। ताजुब न करें इसमें उन्हें गलत नहीं लगता। ३५ फीसदी का हक़दार जो हैं। ख़ुशी में, गम में, लड़ाई में, प्यार में पर जगह साथ साथ।

दिल्ली विश्वालय के कानून के प्रांगन में कभी सिगरेट की दुकान लगाने वाली अम्मा से इनदिनों मुलाकात हुई वो भी तक़रीबन ७, ८ साल बाद। उन आखौं में आज भी मेरी तस्बीर बरक़रार थी॥ बताया कि पिचिले दिनों जेतली आये थे मुझ से इक सिगरेट मांग कर ५०० का नोट पैर पर रख दिया। लगा अपना बेटा क्या ज़यादा प्यार करेगा। आज भी कई पुराने वकील आते है। वो रुक कर हाल समाचार जानते हैं लगता है अपने से कहीं अधिक ये लोग प्यार करते है। बात चल रही थी कि इक लड़की ५ पैकट क्लास्सिक की मांग कर ले गई। अम्मा ने बताया, आख्यें मत चौड़ी करो बेटा। आज कल लड़कियां खूब सिगरेट पीती हैं। इतना ही नही बल्कि भरकर पीनेवाली ज़यादा मिलेंगी। कल की बात है दो लड़कियां थीं इक घंटे में दोनों मिल कर १० डिब्बी क्लास्सिक पी गईं। लाल लाल आखें हो गई थीं। पर बेटा क्या कर सकते हैं। पता नहीं लड़कियां क्यों सिगरेट पिने लगीं।

मुझे लगता है बेटा, लड़कियां लड़कों से ज़यादा बिगड़ गई हैं। लाल पीले और भी रंग के पैंटी दिखाती है। शर्म नहीं आती।

दिल तो जलती है लड़कियां मगर इस में उनका भी तो दिल जला करता है। बराबरी का दौर है.... देखते रहें आगे क्या क्या जलता हैक्या कुछ दीखता है॥ लगे रहो देखन हरे।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...