Tuesday, January 1, 2019

करें कोई भी काम रूचि बनाए रखें, छूटे न उम्मींद का दामन


कौशलेंद्र प्रपन्न
हम काम तो करते ही हैं। काम से उम्मींद भी पाल ही लेते हैं। ये काम हो जाएगा तो वह पा लूंगा। वह कर लूंगा तो वहां जा पहुंचूंगा। आदि आदि। कई लोग ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ और सिर्फ सपने देखा करते हैं। उनके जीवन में झांकें तो पाएंगे कि सपनों को पूरा करने के लिए उनके पास न अभ्यास है, न रूचि रह जाती है और न ही अंत तक आते आते उम्मींद ही बची रहती है। और देखते ही देखते उनकी तमाम मेहनत पर पानी गिर जाता है। सपने चकनाचूर हो जाते हैं।
किसी भी मंज़िल को हासिल करने के लिए काम में रूचि होना निहायत ही ज़रूरी है। जब हम स्वयं अपने काम में रूचि लेंगे तो उसके बारे में लगातार सोचा करेंगे। हमेशा योजनाएं बनाया करेंगे। उसे कैसे हासिल करना है उसके लिए टारगेंट तय करेंगे। उस लक्ष्य को पाने के लिए कौन से रास्ते होंगे उसकी तलाश भी किया करते हैं।
रूचि के बाद अहम है अभ्यास। हम अक्सर बीच में निराश होकर अभ्यास करना छोड़ देते हैं। कई बार अहम में आकर तो कई बार दूसरों को देखकर। फलां को तो ऐसे ही मिल गया ढिमका को तो यूं ही बिना पढ़े अंक आ गए आदि। जबकि सब अपने अपने हिस्से का काम और अभ्यास ज़रूर किया करते हैं। तभी आज वो अपने क्षेत्र में नाम कमा चुके हैं। अभ्यास से क्या नहीं हो सकता। अभ्यास से लेखक, कवि, मैनेजर, सफल डॉक्टर सब कुछ संभव है। लेकिन हम बीच के रास्तों में आने वाली अड़चनों से इस कदर डर जाते हैं कि अभ्यास बीच में ही छोड़ देते हैं।
उद्देश्य यह तीसरी कड़ी है। यदि हमारे उद्देश्य स्पष्ट हों तो भटकाव की उम्मींद कम हो जाती है। हमें हमारे उद्देश्य यानी मकसद साफ होने चाहिए। इससे अपने लक्ष्य को पाने में सुविधा होती है।
अंतिम लेकिन एकदम अंत नहीं है किन्तु उम्मींद। उम्मींद जब तक रहती है हम तब तक अपने काम में जुटे होते हैं। जैसे ही उम्मींद का दामन छोड़ देते हैं। वैसे ही हमारी कोशिश कम होने लगती है। रूचि भी घटने लगती है। इतना ही नहीं बल्कि उद्देश्य भी फीके पड़ने लगते हैं। शायद यही वे मूल मंत्र हैं जिन्हें जीवन में अपना कर कोई भी सफल व्यक्ति अपनी मंज़िल तक का सफ़र तय किया करता है।

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