Monday, October 25, 2010

उन्हें भी सपने बुनने दो

जी हमारे बच्चे तो खाते पीते और सपने भी बेहतरीन हैं। लेकिन दुनिया के ८० मिलियन यैसे दुर्भागे हैं जिनको तो सोने को रोड , खाने को जिठान और प्यार के नाम पर झिडकी मयस्सर हो पाती है। दुनिया के यैसे तमाम बच्चों की कुल आबादी के ४९ फीसदी बच्चे हमारे देश में रहते हैं।
अमूमन यैसे बच्चे जन्म के पहले घंटे , पहले हप्ते , पहले माह मौत के शिकार हो जाते हैं।
क्या आप पर या हम पोअर कोई असर पड़ता है ? यदि पड़ता तो कम से कम कुछ पहल करते।
आज से तक़रीबन २० साल पहले तै किया गाया था कि २००० तक सारे बच्चे साक्षर , सुरक्षित और स्वत हो जायेगे।
लेकिन २०१० तक हालत वही के वही है।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...