जी हमारे बच्चे तो खाते पीते और सपने भी बेहतरीन हैं। लेकिन दुनिया के ८० मिलियन यैसे दुर्भागे हैं जिनको तो सोने को रोड , खाने को जिठान और प्यार के नाम पर झिडकी मयस्सर हो पाती है। दुनिया के यैसे तमाम बच्चों की कुल आबादी के ४९ फीसदी बच्चे हमारे देश में रहते हैं।
अमूमन यैसे बच्चे जन्म के पहले घंटे , पहले हप्ते , पहले माह मौत के शिकार हो जाते हैं।
क्या आप पर या हम पोअर कोई असर पड़ता है ? यदि पड़ता तो कम से कम कुछ पहल करते।
आज से तक़रीबन २० साल पहले तै किया गाया था कि २००० तक सारे बच्चे साक्षर , सुरक्षित और स्वत हो जायेगे।
लेकिन २०१० तक हालत वही के वही है।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Monday, October 25, 2010
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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