Wednesday, November 9, 2011

उड़ कर देखना

जब जमीन से ऊपर होते हैं तब हमारा ही अपना कद स्थिर और बाहर की दुनिया भागती दिखाई देती है. दरअसल बाहर की दुनिया स्थिर होती है और हम भाग रहे होते हैं. ये नदियाँ और नाले, रोड और हमारे झोपड़ सब के सब इक बड़े गोले या रेखावों की तरह दिखाई देती है.
पहाड़ को भी आशीष देने को बाजुएँ उठ सकती हैं जब आप ऊपर उड़ रहे होते हैं. गोया पहाड़ धरती पर उग आये फोड़े फुंसी से गर्मी में उग आये हों. यहीं नदियाँ यूँ फोड़े फुंसी से निकल रही निरंतर धार सी लगती हैं. 
सब के सब खामोश, 
नदियाँ, पहाड़,
रोड,
नाले,
घर,
पुल
सब के सब खामोश,
खुद में गम होते हैं.
सब आप या हम भाग,
उड़ रहे होते हैं....            
       

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...