Monday, June 29, 2009

रिश्ते की चुभन

हाँ कभी कोई रिश्ता बड़ा ही सुकून देता है। कभी वह चाय बन कर तो कभी धुप में पल भर के लिए विश्राम देने वाला होता है। उस इक रिश्ते में कितनी शक्ति होती है इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते है की इन्सान सब कुछ भूल कर ख़ुद को सौप देने में अपनी सार्थकता समझता है। पर हर रिश्ते इक रेखा में कहाँ चला करते हैं। कुछ दूर चल कर भाव्यें मुद जाया करता है। दुसरे शब्दों में कहें तो यह होगा के कुछ ही पल में कोण रिश्ता अपना रंग बदल लेगा यह तय शुदा नही कह सकते।
हर रंग हर रिश्ते के अपने तशीर और परिणति होती है। आप या की हां उसे रोक नही सकते। जिसे जन है वो लाख रोक लें वह रुकने वाला है ज़रा भी भरम न पले इस की कोशिश रहनी लाज़मी है वरना आसू की जड़ी तो लगेगी ही , कोई रोक नही सकता। जो कभी आप के बगैर रह नही पाने के दम भरा करते थे वो साहब आराम से रहने लगते हैं। बात बिल्कुल साफ है , उसने तै कर लिया है रह सकते हैं। रहते रहते तो पत्थर से भी लगाव हो जाया करता है।

Tuesday, June 23, 2009

जब कोई रिश्ता

जब नही बाँधता कोई भी शब्द, या रिश्ते तो यही कह सकते हैं की अब वो बात नही रही जॉब कभी आपस में हुवा करती थी। इसे यूँ भी समझ सकते है, हमारी हर बात या हर रिश्ते उसी ट्रैक पर नही चलते जिसपर हम सोचा करते हैं। बात बिल्कुल दुरुस्त है चले भी क्यों हर कोई अपनी तरह जीना चाहता है आप या की हम उसे अपनी तरह चलने को नही विवश कर सकते।

Wednesday, June 17, 2009

बहिन

मेरी बहन ने इस साल,
नही बांधे ,
किसी पेड़ को धागे,
न ही काटे चक्कर,
हाँ हर रोज सुबह ,
तिफ्फिन में रखे ,
रोटी और आचार,
इस विश्वास के साथ के,
वो शाम लौट,
आयेंगे।
पर...
इस साल पेड़ में धागे बंधते,
देख आखें भर आयें,
अगर धागे बंधते उसके भी राम सलामत
रहते उसके भी राम तो पुरी साड़ी ओढा आती
नही ही लौटे राम बहन के ,
बिटिया खाना खाते समय पूछती है-
माँ तुमने कहा था,
पापा कहीं गए हैं...
मैं भूल गई,
कहाँ गए हैं बतावो न...
बहिन दूध में बोर कर,
रोटी खिलाती है,
ताकि भूल जाए,
की उसके पापा जहाँ चले गए ,
कोई लौट आता है भला.....

Monday, June 15, 2009

मुहब्बत भाषा से

अगर भाषा से मुहब्बत हो तो भाषा दर्रती नही बल्कि वो लंबे समाये तक साथ देती है। लेकिन समस्या यही है की हम भाषा से मुहब्बत करने की वजाए केवल नम्बर पाने तक का रिश्ता रखते हैं। तभी तो हमारा भाषा के साथ रिश्ता ज़यादा लंबा नही चल पाटा। अगर चाहते हैं की भाषा हमारी संगनी हो तो उसके साथ इमानदार होना होगा। यानि भाषा को बेंताहें प्यार करना होगा।

Friday, June 12, 2009

कुछ सवाल

कुछ सवाल होते ही यैसे है जिनका उत्तर इक शब्द में नही दिया जा सकता।
पुरा का पुरा पेज मांगता है ज़बाव लिखने में।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...