Wednesday, December 5, 2018

अप्राकृतिक प्रसव पीड़ा



कौशलेंद्र प्रपन्न
अस्पताल का कमरा। कमरे में चारों ओर प्रसव पीड़ा की कराह। कोई तेज आवाज में कराह रहा है तो कोई धीरे धीरे। लेकिन सब की पीड़ा एक सी है। स्तर एक है। दर्द समान है। किसी के हाथ में दवाई की बॉटल लगी है। चढ़ रही है नसों में दवाई। पेट पर बंधा है एक बेल्ट। जो सामने रखे मोनिंटर पर दिखाता है कितना दर्द है? दर्द का स्तर कितना है? बार बार नर्स देख जाती है। कई बार टंगी बॉटल को कम ज्यादा कर जाती है। पूछने पर कि और कितना समय लगेगा? बस इतना बताती है- देखिए अभी तो 30 40 की लेबल का दर्द का। ये कम से कम 150 होना चाहिए या उससे भी ज्यादा। मुंह भी अभी तो कम ही खुला है। ये भी दस ये पंद्रह सेंटीमीटर होना चाहिए। इंतजार कीजिए।
बगल वाली बेड की महिला को तुरत फुरत में लेबर रूम ले जाया गया। पास वाली महिला अपने दर्द के स्तर के बढ़ने के इंतजार में है। कब बढ़े तो लेबर रूम जाएं। दर्द की कभी बढ़ता है और कभी घट जाता है।
आधी रात से वो परेशान है। पानी की थैली ही कोई आधी रात में फट चुकी है। पानी रूकने का नाम नहीं ले रहा है। कल शाम की तो बात है। डॉक्टर ने देखा, जांचा और कहा अभी तो हप्ता समय है। लेकिन रातों रात क्या हुआ और भोर में ही अस्पताल आना पड़ा।
डॉक्टर ने देखते ही भर्ती कर लिया। पानी चढ़ाया जाने लगा। दवाई भी। अप्राकृतिक दर्द उठाया जाने लगा। देखते ही देखते वो दर्द से पड़पने लगी। तड़पने लगी। लेकिन दर्द और मुंह का खुलना डॉक्टर के अनुसार अभी कम था। सो इंतजार में वो तड़पती रही। पास में न ननद, न देवर, न सास, न बहन कोई भी तो नहीं था। अगर था तो बस एक पति। जो लगातार नर्स से लड़ झगड़कर वहीं का वहीं बेशर्म सा खड़ा रहा। कई बार बीच बीच में बाहर चला जाता जब वह देख और सह नहीं पा रहा था अपनी प्रिये के छटपटाहटों को। अप्राकृतिक दर्द को नजरअंदाज नहीं कर सकता था।
सुबह से दोपहर और दर्द का पैरामीटर अभी भी डॉक्टर के अनुसार कम। वो थी कि तड़प रही थी। न देखा जाए और न सहा जाए। मुंह था कि वो भी खुलने का नाम नहीं ले रहा था। अंदर बच्चे की भी चिंता की कहीं वो स्ट्रेस में न आ जाए।
मालूम नहीं पति ने ही निर्णय लिया। डॉक्ठर को फोन किया मैडम। आप तो जानती हैं। दर्द है कि रूकने का नाम नहीं ले रहा है। वो है कि अप्राकृतिक दर्द में पछाड़े खा रही है। ऐसे कीजिए ऑपरेशन करना चाहिए। जब डॉक्टर सामने आईं तो पहले उसे देखा और पति के कंधे पर प्यार और विश्वास से भरे हाथ रखे और कहा ‘‘बहुत प्यार करते हो। इसलिए निर्णय ने रहे हो।’’ पति ने कहा ‘‘ पति नाते कम एक इंसान होने के नाते मुझे लगता है कि हमें ऑपरेशन वाले विकल्प को चुनने में कोई हर्ज नहीं। हालांकि डॉक्टर लगातार संपर्क में थीं। उन्होंने कहा था ‘‘मैं इंतजार कर रही हूं कि नॉर्मल किया जाए। लेकिन अब जांच के बाद मालूम चला कि नॉर्मल संभव नहीं। बच्चे के चेहरा उल्टा है और नाल भी क गया है। सो हमें ऑपरेशन की करना पड़ता।’’
कैसी पीड़ होती है अप्राकृतिक प्रसव की शायद दुनिया मर्द न जान पाएं और न ही महसूस कर सकें। पुरुष यदि कुछ कर सकता है तो बस निर्णय ले सकता है। सहानुभूति के बोल छिड़क सकता है। अगर आपको गुमान है कि आप पिता हैं, आपको बच्चे से ज्यादा लगाव है तो कभी मौका मिले तो प्रसव पीड़ा से भरे उस रूम में जाईए महसूस कीजिए की पत्नी किस किस्म की पीड़ा से गुजर रही है। स्वभाविक प्रसव हो तो ठीक वरना इस ठसक के साथ न तने रहें कि हमारे खानदान में तो किसी का भी ऑपरेशन से बच्चा नहीं हुआ। देखिए महसूस कीजिए और स्वविवेक का प्रयोग शायद एक पीड़ा से तड़प् रही स्त्री को राहत दे जाए।

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