Tuesday, May 13, 2014

बाॅस की प्रकृति


कौशलेंद्र प्रपन्न
मैं ही क्या दुनिया के हज़ारों- हज़ार लोग अपने बाॅस की प्रकृति से न केवल प्रभावित होते हैं बल्कि त्रस्त भी होते हैं। कुछ के बाॅस जीवन में प्रेरक बन कर आते हैं तो कुछ की जिं़दगी में सुनामी बन कर। बाॅस राय, वर्मा, शर्मा, जुनेजा, तनेजा, तिवारी, कपूर और भी अन्य उपनाम के रूप में हो सकते हैं। तत्वत: बाॅस की प्रकृति में कोई ख़ास अंतर नहीं होता। क्योंकि स्वभावतः बाॅस अपने नीचे काम करने वाले को गोया इंसान ही नहीं मानते। यदि बाॅस रात के 1 बजे काॅल करे तो भी काम होना चाहिए। उनके घर के काम भी हंस हंस के जो करे वो सबसे ज्यादा करीब होता है। स्वभाविक भी है जो हर वक्त बाॅस के आस-पास टघरता है वो बाॅस को कैसे नहीं याद रहेगा। वैसे कहा जाता है कि घोड़े के पिछाड़ी और बाॅस के अगाड़ी कभी नहीं आना चाहिए, लेकिन आज की तारीख में कई ऐसे महारथी हैं जो बाॅस की कृपा से कहां से कहां पहुंच चुके हैं। कुछ करिअर में उछाल का आनंद ले रहे हैं जो कुछ जाॅब से भी हाथ धो चुके हैं। कई के बाॅस अपनी आॅख की किरकिरी को कहीं और भी टिकने नहीं देते।
बाॅस दरअसल नेता होता है। नेता माने नयति इति नेता। जो सदा सर्वदा आगे ले जाने वाला हो। यानी नेता व बाॅस वो होता है जो समाज को रास्ता दिखाए और आगे ले जाए। यदि नेता की दृष्टि स्पष्ट न हो या पूर्वग्रह का शिकार हो जाए तो उस कंपनी व संस्था के साथ ही वहां काम करने वाले अन्य कर्मचारियों के लिए लाभकरी नहीं माना जा सकता। मैनेजमेंट के छात्र व वेत्ता बेहतर बता सकते हैं कि एक बाॅस की प्रकृति यानी उसका स्वभाव किस तरह से न केवल बाॅस के लिए बल्कि संस्था के लिए भी हानिकारक साबित होता है। बतौर बाॅस की अपनी कुछ सनकें भी होती हैं। वो अपने ज्ञान, समझ, कौशल के आगे अपने अंदर काम करने वालों को ज़रा भी तवज्जो नहीं देता। बल्कि कई बार अपनी गलती को न वो स्वीकारता है और न वह नवज्ञान से खुद को ताज़ा करता है। क्योंकि ऐसा करने से उसका अहम उसे रोकता है। और इस तरह से ख़ुद को सही साबित करने के उपक्रम में अपने अंदर काम करने वाले को गलत साबित करने के तमाम हथकंड़े अपनाता है।
बाॅस की प्रकृति कैसी हो, एक बाॅस के अंदर किस किस तरह के गुण होने चाहिए आदि सवालों का जवाब तो मैनेजमेंट के जानकार दे सकते हैं, लेकिन एक आम धारणा की दृष्टि से देखें तो बाॅस की क्लालिटी कंपनी को बेहतर ढंग से चलाने की होनी चाहिए। प्रबंधन के तमाम गुर उसे आना चाहिए कब किसी की भावना को सहलाना है, कब किस के साथ सख्ती बरतनी है? किस के साथ कब कैसे बर्ताव करना है आदि ऐसी बुनियादी मांगें होती हैं जिनपर बाॅस को खरा उतरना चाहिए। लेकिन आज की तारीख में अधिकतर प्रोन्नति, उछाल किन गुणों के आधार पर होते हंै यह किसी से भी छुपा नहीं है। जब कोई बाॅस की नजरों में चढ़ जाता है या पसंद आ जाता है तब बाॅस जो कुछ भी करता है वही नियम बन जाते हैं। वही सही होता है।
हां समाज में देखा जाता है कि बाॅस कई बार आत्महत्या करने पर भी मजबूर कर देता है। व्यक्ति मानसिक रूप से इतना परेशान हो जाता है कि वह आत्महत्या तक सोचने लगता है। यह किसी भी नजर से न तो मानवीय है और न उचित ही। लेकिन आम जीवन में बाॅस ऐसे भी आते हैं कि आप न तो आॅफिस में चैन से काम कर सकते हैं और न घर में सुस्ता सकते हैं। नींद में भी बाॅस की बातें, ताने और चेहरे आपको सोन नहीं देते। एक बार बाॅस की नजर में आप नकारे हो गए तो लाख कोशिश कर लें वह आपको उसी चश्में देखता है। दरअसल बाॅस वह कुर्सी होती है जिसपर सबकी आशा भरी निगाह लगी होती है। वह चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक। कब बाॅस बदले की हम अपनी तरह से काम करें। अपनी फाइल आगे बढ़ाएं आदि उम्मींदें कितनों की पूरी होती हैं यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आने वाला बाॅस किस पाले है।
सचपूछा जाए तो बाॅस की कुर्सी पर बैठना कोई आसान काम नहीं होता। पहले तो बाॅस की कुर्सी के लायक खुद को साबित करना पड़ता है और फिर सब को खुश रखने की चुनौती से भी सामना करना पड़ता है। सच तो यह भी है कि कुर्सी कभी भी सभी को खुश नहीं रख सकती। लेकिन इन्हीं चुनौतयों के बीच एक मकूल रास्ता भी निकलता है कि कैसे आप मानवीय रहते हुए अपनी बाॅसीय प्रकृति को जीते रहें। यानी कंपनी, आफिस काम भी चलता रहे और आप किसी की जिंदगी को नर्क बनाने से बचें। क्योंकि एक खराब बाॅस न केवल एक की जिंदगी को प्रभावित करता है कि बल्कि प्रकारांतर से उसके साथ परिवार, मित्र और समाज को भी खासे चपेट में लेता है। एक बार यदि बाॅस इन बिंदुओं पर सोचों तो शायद उनकी आंखें खुलें।

तो यूं होती है कविता


तो यूं होती है कविता
 कहती है कोई कहानी
आपकी हमारी,
उस जहान की,
इस दुनिया की।
उस कविता में होती है एक कहानी-
एक उपन्यास सा वितान,
या कि भावों की एक लंबी चादर,
जिसमें गूंथते जाते हैं चांद तारों को बेहिसाब,
कविता यूं आगे बढ़ती है।
कविता में जीती है एक लड़की-
उसकी बातें,
उसकी हंसी,
उसके बैठने,
बोलने की आदतें
सब कुछ शामिल होती है उस कविता में।
उस कविता में होती है एक शाम-
शाम में मिले एहसासों की उष्मा,
शाम की हवा जिसमें उसकी बातें तैरती हैं
होती हैं वो तमाम बातें जो अभी अभी कानों से दिल में उतर गई हैं।
हां कविता में लेती है सांस-
हमारी हर जीए हुए पलों की,
जिसमें शामिल होती मां की डांट,
पिताजी के लाए तरबूज की लाली,
भाई का तमाचा या फिर बहन की लड़ाई,
सब कुछ तो होती हैं एक कविता में।
भावों के उतर चढ़ के साथ और क्या होती है कविता में भाई साहब-
कविता में अतीत की सुगबुगाहट,
वर्तमान की चुनौतियां,
भविष्य की ओर तकती आशाएं,
सभी तो जीते हैं अपनी उम्र,
फिर क्या छूटता जाता है एक कविता में?
हां छूट जाती हैं
चंद मनुहार की बातें,
उससे सुनी झाड़कियां,
या फिर सुबकती उस रात की बातें,
या फिर रह जाती हैं,
कुछ किए वायदे,
कुछ तारीखें।


शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...