Saturday, December 29, 2018

अज़ान संग चालीसा भी है फ़ज़ावो में घुला तेरे शहर में

अज़ान और हनुमान चालीसा साथ ही सुनाई देती हैं आज भी तेरे शहर में। हर सुबह इन्हीं उच्चार से भोर हुआ करता है। कुछ ही दिन बीते होंगे तेरे शहर में कई राग फ़ज़ावो में घुलने लगे। चचा फ़ज़ल अब नहीं बैठते पंडित पान की दुकान पर। शायद कुछ जो घटा इस शहर में उससे कोई भी बेख़बर नहीं था। 
सब ने यही चाहा कि मसला कौम पर न जाये। लेकिन कुछ लोग थे जिन्हें शहर की मुहब्बत पसंद न थी।
सच है कि इस शहर क्या कई शहर में आज भी भोर अज़ान और हरी गुरु चरण सरोज रज शब्दों से हुवा करती हैं। अब तलक किसी को इनसे कोई एतराज़ न था और न किसी को कबूलने से गुरेज़ था कि हम साथ साथ हुवा करते हैं। अचानक 30, 35 के हुवे तब महसूस हुआ हम से भिन्न है वो। 
जबकि बचपन मे याद नहीँ कभी पड़ोस की चची ने भी पाला है। अब यकीन नहीं होता हम साथ थे।
आज भी चची और चचा पूछ लिया करते हैं कैसा है हमारा पंडित। अब बड़ा हो गया है। अब तो शहर आता भी है तो मिला नहीं करता। शायद दानिशमंद हो गया

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