Tuesday, December 18, 2018

पांच साल बाद भी कहानी याद रही, अधूरी कहानी छोड़ आया




कौशलेंद्र प्रपन्न
यही कोई पांच साल बाद यानी 2014 से 2018 का फासला। कायदे से जाना तो लगातार और नियमित चाहिए था। लेकिन काम की व्यस्तता और न जाने के प्रति उदासीनता या कहे लें ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई। लेकिन आज जब उर्दू माध्यम के स्कूल, पुरानी सीमापुरी गया तो लगा ही नहीं कि नई जगह आया हूं।
कक्षा पांचवीं में दाख़िल हुआ। मकसद था यह जानना कि क्या उर्दू माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों व बच्चियों को हिन्दी लिखने, पढ़ने में कोई किसी भी स्तर की परेशानी होती है? क्या उन्हें मात्राओं, वर्तनी आदि में तो दिक्कतें नहीं आतीं। इस मकसद को पूरा करने व जांचने के लिए मेरे पास कुछ सवाल थे। कुछ कहानी के मार्फत जानना व समझना था कि बच्चों को मात्राओं की समझ दुरुस्त है या नहीं।
पर्चा तो बांट दिया। बच्चे पर्चो लेकर काम करने लगे। लेकिन मैं तब तक क्या करता? क्या करता कक्षा में खड़े व बैठकर? यह सवाल भी था और बेचैनी भी। दूसरे कक्षा में चला गया। वहां पर बच्चों से बातचीत करने लगा। वक़्त था दोपहर के भोजन का। बच्चे मौज मस्ती में थे।
जब कक्षा में वापस आया तो मैंने पूछा आपमें से कौन कहानी, कविता, नज़्म या गीत सुनाएगा? तभी सानिया, फरहा और खूशबू ने कहा ‘‘सर आपने हमें चींटी और हाथी वाल कहानी सुनाई थी। वही सुनाओ।’’ मेरे लिए हैरत की बात थी कि मैंने कब सुनाया? सानिया ने कहा ‘‘जब मैं पहली क्लास में नीचे प्रिंसिपल ऑफिस के सामने पढ़ती थी तब आपने हमें चींटी वाली कहानी सुनाई थी, अब मैं पांचवी में आ गई हूं।’’
मेरे लिए कैसी और कदर की खुशी का मंज़र रहा होगा शायद अंदाज़ न लगा पाएं। पांच साल पहले जिस पहली कक्षा में कहानी सुनाई थी वह कहानी आज भी बच्ची की जिंदगी में शामिल है। उसने न केवल कहानी का नाम बताया बल्कि मुझे पहचान भी लिया। शायद कहानी, कविता और कथाकार, कवि या फिर शिक्षक की सत्ता एवं पहचान यही होती है। यदि इन औजारों का इस्तमाल बेहतर और शिद्दत से किया जाए तो हम बच्चों की जिं़दगी में अपना स्थान बना सकते हैं। अनुमान लगाया जा सकता है कि पहली कक्षा की बच्ची ने कहानी के साथ मेरे अंदाज़ और चेहरे को भी ज़ज्ब कर लिया था। हम कई बार हल्के तरीके से कुछ भी कह कर कक्षा से बाहर आ जाते हैं। हमें मालूम ही नहीं होता कि हमारे किस शब्द और वाक्य का बच्चों के जीवन में असर छोड़ने वाला है।
पांच साल बाद भी पहली कक्षा की बच्ची ने पहचान लिया तो यह एक किस्म से भाषायी और कथा-शैली की ताकत है जिसके बदौलत हम कक्षा और कक्षा के बाहर भी बच्चों में अपना वजूद बना पाते हैं। अब वो बच्चियां अगले साल छठीं में चली जाएंगी तब शायद पता नहीं कब उनसे मुलाकात हो। मैंने चलते चलते कहा ‘‘ आप लोग पहली से जैसे पांचवीं तक आईं इंशा अल्लाह!!! आप कक्षा छठीं और आगे के दर्ज़ें में भी जाएं और तालीम पूरी करें।
जब चलने लगा तो बच्चियों ने कहा एक फोटो आपके साथ लेना है। हालांकि मैं कोई हीरों नहीं था। मैं कोई प्रसिद्ध हस्ती भी नहीं हूं। लेकिन बच्चों के लिए वह व्यक्ति सबसे बड़ा होता है शायद जो उनकी पहुंच में होता है। जिसने भी उनकी जिं़दगी को पहचाना, पढ़ा और खुलेतौर पर उनसे मिला वे लोग ही उनके लिए ख़ास होते हैं। तस्वीर में बच्चियां ऐसे टूट और धक्कामुक्की कर रही थीं गोया कोई फिल्मी हस्ती हो शायद। लेकिन मैं तो था एक अदना या भाषाप्रेमी, शिक्षा का विद्यार्थी जिसे काफी पहले उन स्कूलों में उन कक्षाओं में दुबारा जाना था जहां कहानियां छोड़ आया था। उन कहानियों को पूरा करना था। पूरा करना था उन बच्चों की ख़्वाहिशें भी जिन्हें और और कहानी सुननी थी। जाते जाते वायदा लिया बच्चों ने फिर कब आओगे? अल्ला हाफ़िज़। सलामत रखे सर आपको।

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