Friday, December 26, 2008

पाक के नापाक इरादे दोनों देशों पर क्या कहर बअर्प सकते इसके लिए इतिहास के पन्ने मौजूद हैं।

युद्ध दोनों देश नही चाहते मग इनदिनों जैसी बयानबाजी की जड़ी लगी हुई है उससे तनाव बढ़ता जा रहा है।

क्या पाकिस्तान युद्ध के बदौलत अपने देश में राज करना चाहता है। वहांके आवाम को आज से नही लंबे समाये से गुमराह किया जाता रहा है। शयद यही वह तरकश है जिससे पाकिस्तान भारत के खिलाफ इसतमल करता रहा हैं। मगर दोनों देशों के जनता कितनीइ होगा निर्दोष है की हर बार चली जाती है।

बेहतर तो यही होगा की दोनों देशों को युद्ध से हर संभव बचने की कोशिश करनी चाहिए।

पाक के नापाक

Sunday, December 14, 2008

हर दस सेकंड में ....

हर दस सेकंड में इक आदमी को नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है। उस देश या उस आदमी की मनाह्य्स्थाठी क्या होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं।
घर में बच्चे की सामत आती होगी , बीवी पिटाई खाती होगी या फिर वह लाइफ को पानी पी पी कर कोसता होगा।
काश उसे ज़िन्दगी में यह दिन न देखने पड़ते। मगर ज़नाब ऋण ले कर घी पीने का मज्जा भी तो अमेरिका ने लिया अब उसके किए का फल यूरोप यसिया सब को भुगतना पड़ रहा है। लोग डरे समाहे ऑफिस जाते हैं कल आयेंगे की नही कुछ पता नही होता।
यस ही हालात लोगो को जीवन समाप्त करने पर मजबुर करता है।
यह दिन भी कट जायेंगे।
नीके दिन जब आयेहे बनत न लाघिये दीर



अनिर्णय की घड़ी

समाज हो या आदमी हरिक के लाइफ में यह पल आता है जब वो किसी मुकमिल निर्णय पर नही आ पता।
क्या आपने कभी सोचा है इस हाल में आप क्या करते हें। या तो सोचना बंद कर देते हें या फिर नए सिरे से सोच चलने लगते हें।

Sunday, December 7, 2008

मंदी का असर

किस पर नही दिख रहा है मंदी का असर? सभी लोग चाहे वो छोटे रेतैलेर हों या बड़ी कंपनी सभी अपने यहाँ इसी का रोना रो रहे हैं। लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। यैसे में हर कोई डरे समाहे हैं। किस की गर्दन कटेगी कोई नही जानता।
जो लोग शादी करने वाले थे वो ज़ल्दी में कर रहे हैं ताकि अची लड़की मिल सके। नौकरी छुटने के बाद कोई नही पूछेगा। दहेज़ भी कम मिलेंगे।
दूसरी तरफ़ चहरे उदास हैं। काम में मनन नही लगता
प्यार में रोटी , नौकरी और लोगों के सवाल घिर गए हैं। क्या खाक प्यार के धुन कोई कैसे सुन सकता है। बाज़ार के चौतरफा मार को समझने के लिए अर्थ शास्त्र के साथ समाज शास्त्र को भी समझने होंगे। मनोबिगायण भी पढ़ना होगा।
क्या कुछ नही प्रभावित होता है। घर से लेकर दफ्तर तक काम से लेकर जीवन तक सब इस समय मंदी के निचे आ गए हैं।
बाज़ार जीवन रेखा को तै कर रही है। उधर सेंसेक्स पर उतर चढ़ होता है इधर जीवन के अहम् फैसले लिए जाते हैं।














Friday, December 5, 2008

दिसम्बर की वो तारीख

आज तक़रीबन सोलह साल बीत चुके मगर घटना वहीं की वहीं खड़ी लगती है। तमाम मीडिया की नज़र यूपी के अयौध्या पर टिकी थी। सारा देश शर्मसार था। मगर इक जोर ने उस येतिसाहिक धरोहर को हमेशा के लिया नस्तानाबुत कर दिया।
आज उसी की वारसी है। वारसी तो मनायेजयेगी लेकिन उस यस्थल पर उडे धुल में लिपटी सचाई को क्या भुला या जा सकता है ? नही ज़नाब यह वो घटना थी जिसके टिश सदा के लिए समय के साथ चलेगी।
कुछ कंदील कुछ आसूं , चाँद बयां के बाद यही इस घटना के साथ होगा जो ....





Monday, December 1, 2008

चलिए साहिब दिसम्बर आ ही गया

दिसम्बर का पहला दिन यानि यह साल भी बस जाने के कगार पर खड़ा है। मुंबई की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया।
उम्मीद की जाए की अच्छी स्टार्टिंग हो।

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...