Saturday, July 25, 2009

शर्म मगर नही आती

देश का प्रेजिडेंट अपनी की धरती पर चेक किया जाता है वो भी अमरीका की सेना करती है मगर उसपर तुरा यह की वहां की सरकार या की ऐर्लिंस माफ़ी तक नही मांगती। यह तो देश के प्रोत्कोले का सीधा उलंघन है। हमारी सरकार को तक इस बात का इल्म हुवा जब लोक सभा में हंगामा हुवा। वरना कलम साहब तो इतने नेक दिल हैं की उन्न्ने तो यह तब कुबूल नही किया की उनके संग ग़लत भी हुवा।
साहब दूसरी घटना है हरयाणा की जहाँ खुलायम संविधान का उल्नाघन हुवा , बल्कि पुलिस तो दम दबा कर उस जींद के गावों से भाग खड़ी हुई। वो पुलिसको तो अपनी जान जोखिम में लगा जो भाग लिया।

Thursday, July 23, 2009

जब कोई आप का फ़ोन न...

दोस्त क्या कभी सोचा है जब आप बेरोजगार हों और आप किसी को कॉल करें लेकिन वो बार बार कॉल काट दे तो कैसा लगेगा आपको जैसा भी लगे मगर वो तो यही सोच कर बात नही करना चाहते की कहीं फ़ोन उठाए और मदद न करनी पड़ जाए। इस डर से वो साहब बात तक करना नही चाहते । वो क्या जाने की हर कॉल मदद की गुहार लिए नही होती॥ संभवो हो की नोर्मल हाल में किया हो। मगर साहब को तो बस लगता है आज कल जॉब है नही उसके पास कुछ मांग न दे।
ज़रा सोचें यैसे में क्या गुजरती है जब आपके दोस्त साथ काम कर चुके ही आपके फ़ोन उठाने से कतराने लगें तो समझ लें दोस्ती की लो में अब ज़यादा तेल बचा नही॥ बस आप मान कर चल रहे है की बोहोत से लोग हैं जो आप के साथ हैं... मगर वास्तव में आप साहब मुगालते में हैं। बेहतर है ख़ुद को संभाल ले। वरना मुह के बल गिरने से कोई बचा नही सकता।
चलिए कम से कम आखों में इतनी तो पानी बची रहे ताकि कही राह में मुलाकात हो तो....

Thursday, July 16, 2009

पाक की समस्या

पाक और भारत के दरमियाँ सार्थक बातचीत तभी हो सकती है जब पाक अपने पाक इरादे से बातचीत के लिए तैयार हो। लेकिन उस की समस्या यही है की वहां की सरकार १९४७ के विभाजन पर ही शासन कर रही है। ज़रा सोचें जो सरकार देश अतीत में अटकी चेतना के दोहन कर के शासन कर रही है वो किसी भी सूरत में सार्थक संवाद कैसे कर सकती है। बेशक पाक विश्व के दवाव में आतंक के खात्मे पर ताल थोक कर खड़ा हो जाएमगर उस देश के लोग उसे वैसा करने नही देंगे। ज़रदारी के साथ क्या हुवा सब जानते हैं, इधर मनमोहन जी को कहा के पाक ने आतंक के लिए अपनी ज़मीं के इस्तमाल होने दिया है। यह कहना था की पाक की अस्सिम्बली में सरकार को घेर लिया गया। जिसमे नवाज़ शरीफ की भी अहम् भूमिका रही।
पाक के साथ हमारे रिश्ते यूँ सुधर नही सकते जब तक की पाक अपनी तरफ़ से आतंक को बधवा देना बंद नही कर देता। मगर उस देश के सामने जो मंज़र है उसे भी हमें समझना होगा। कुछ कदम हमें भी बढ़ने होंगे जो पाक में अमन चैन ला सके। क्या पाक महफूज है येसा नही कह सकते। बहरहाल वकुत तो लगेगा दोनों देशो में विश्वाश बहल होने में,।

Thursday, July 9, 2009

समलैंगिक कोई आसमान से नही टपके

सच है की समलैंगिक समाज के ही इक भाग हैं ये भी इसी समाज और दुनिया में रहते हैं। अगर इक लड़की को लड़के से शादी के तमाम आज़ादी हो सकती है तो इन्हें भी अपने पसंद के पार्टनर से शादी कर जीवन भर साथ रहने को उतना ही अधिकार है । कम से कम एक मानवीय दृष्टि से ज़रा सोचें तो इसमें क्या कमी नज़र आती है के जब वो विपरीत लिंग के साथ ख़ुद को समायोजित नही कर पाते तो क्यों न उन्हें अपने पसंद के पार्टनर के साथ रहने दिया जाए। दुसरे शब्दों में कहें तो यह कह सकते हैं के हर उस शक्श को अपनी ज़िन्दगी अपने शर्तों पर जीने को पुरा हक है।
समाज तो यूँ ही चला करता है किसे कब ठोकर मार दे किसे गले लगा ले यह समाज समाज पर निर्भर किया करता है।

Tuesday, July 7, 2009

ज़रा सोच कर देखने में क्या जाता है

हाँ सही ही तो है ज़रा सोचने में हम डरते क्यों हैं जब कोई आधुनिक विचार आते हैं। हम उसे इक सिरे से नकार देते हैं। पल भर के लिए भी आनेवाले विचार को तारने क्यों नही देते॥ क्यों डर सताता है। इसलिए की हमारी फिदरत होती है की हम नए रस्ते न तो पकड़ते है न ही नये विचार को आकार लेने देते।
हमने आसपास यैसे ही विचारो को पनाह दे रखा है जो सही मायने में हमारी कोई मद्द नही करते

Monday, July 6, 2009

निरा यकांत

जब हम निरा एकांत होते हैं तब सच्ये अर्थो में ख़ुद के लिए सोचा करते हैं वरना तो लोग अक्सरहां भीड़ में ही अपनी पहचान तलाश किया करते हैं। क्या यह भी सच नही की जब भी हम एकांत में हुवा करते हैं तब ख़ुद से ही डर कर दुबारा भीड़ में खो जाने को बेताब होजाते हैं। एसा इस लिए की हम ख़ुद का सामना नही करना चाहते। आखिर किस्से भाग रहे होते हैंवो कोण सा डर हम ने पल रहा होता है उसे पहचान कर बहिर निकलन ज़ुरूरी है। वरना आप तो देख रहे हैं ख़ुद से भागने का कितना ही नायब तरीका हमने धुंध निकला है हर समाये या तो मोबाइल पर गाने ठूस रहे होते है या टीवी पर अलर बालर जो मिल जाए हसी के पल तलाश रहे होते हैं। दर्हसल ये सरे ख़ुद से भागने के बहने ही तो हैं

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...