तोहमत लगा का कहना...
कुछ तो नहीं कहा , अक्सर ही हम लोग जब भी किसी से फ़ोन पर बात करते हैं सीधे सिकवा के लहजे में - आज कल बड़े हो गए। आज जी कैसे याद आ गई। सवाल तो फेक दिए जाते हैं मगर यदि यही सवाल लपेट कर आगे सरका दिया तो मुह सूज जाता है।
कितना बेहतर हो कि सिकवा की जगह कुछ बात की जाए।
अक्सर हम शिकायत में सुनहरा पल गवा देते हैं।
यह एक ऐसा मंच है जहां आप उपेक्षित शिक्षा, बच्चे और शिक्षा को केंद्र में देख-पढ़ सकते हैं। अपनी राय बेधड़ यहां साझा कर सकते हैं। बेहिचक, बेधड़क।
Thursday, May 26, 2011
Thursday, May 12, 2011
काम कम दिखावा ज्यादा
काम कम दिखावा ज्यादा, बिलकुल ठीक है आज हमारे पास यैसे लोगों की जरा भी कमी नहीं जो काम कम करते हैं लेकिन गिनती के नंबर बनाने के लिए दिखा कर नंबर बना लेते हैं । इसमें वह चेहरा बेपह्चाना रह जाता है जो काम में अपनी गर्दन दर्द करा लेता है लेकिन नाम साथ वाले का होता है। क्या ही जिमेदार है। हर को अपना काम मान कर रात दिन इक कर पूरा करता है। लेकिन लोगों की नज़र में आपका पड़ोसी बाज़ी मार लेता है। कभी सोचा है येसा क्यों होता है ? येसा इसलिए hota है क्योंकि आप गधे की तरह गर्दन दोड़े में गोते काम karte रहते हैं। आपने काम को दिखने दिखाने की कला आपमें नहीं है। बस यही फर्क है आपके काम करने और उस दुसरे के काम करने के पीछे की रणनीती।
यह वक्त है काम कम कर दिखा ज्यादा। सही बात है जो दिखता है वही दुनिया की नज़र में आता है।
यह वक्त है काम कम कर दिखा ज्यादा। सही बात है जो दिखता है वही दुनिया की नज़र में आता है।
दोस्ती के चोर जी
दोस्ती के चोर जी , इक बारगी सुनकर आश्चर्य हो साकता है। लेकिन ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं। क्योंकि आपने ही दोस्त को face बुक पर नेव्वाता दिया था। आपका ही दोस्त आगे चल कर आपके ही दोस्तों में से वैसे लोगों को चुन लेता है, जो उसके माकूल काम आ पाते हैं। उनपर अपने डोरे डालने लगते हैं।
आप को तो पता तब चलता है जब आप के दुसरे दोस्तों से मालुम होता है कि आप के उस दोस्त ने आपके वर्क प्लेस पर आप की मत्ती पलीद कर रहा है
आप को तो पता तब चलता है जब आप के दुसरे दोस्तों से मालुम होता है कि आप के उस दोस्त ने आपके वर्क प्लेस पर आप की मत्ती पलीद कर रहा है
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शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र
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