Friday, December 26, 2008

पाक के नापाक इरादे दोनों देशों पर क्या कहर बअर्प सकते इसके लिए इतिहास के पन्ने मौजूद हैं।

युद्ध दोनों देश नही चाहते मग इनदिनों जैसी बयानबाजी की जड़ी लगी हुई है उससे तनाव बढ़ता जा रहा है।

क्या पाकिस्तान युद्ध के बदौलत अपने देश में राज करना चाहता है। वहांके आवाम को आज से नही लंबे समाये से गुमराह किया जाता रहा है। शयद यही वह तरकश है जिससे पाकिस्तान भारत के खिलाफ इसतमल करता रहा हैं। मगर दोनों देशों के जनता कितनीइ होगा निर्दोष है की हर बार चली जाती है।

बेहतर तो यही होगा की दोनों देशों को युद्ध से हर संभव बचने की कोशिश करनी चाहिए।

पाक के नापाक

Sunday, December 14, 2008

हर दस सेकंड में ....

हर दस सेकंड में इक आदमी को नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है। उस देश या उस आदमी की मनाह्य्स्थाठी क्या होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं।
घर में बच्चे की सामत आती होगी , बीवी पिटाई खाती होगी या फिर वह लाइफ को पानी पी पी कर कोसता होगा।
काश उसे ज़िन्दगी में यह दिन न देखने पड़ते। मगर ज़नाब ऋण ले कर घी पीने का मज्जा भी तो अमेरिका ने लिया अब उसके किए का फल यूरोप यसिया सब को भुगतना पड़ रहा है। लोग डरे समाहे ऑफिस जाते हैं कल आयेंगे की नही कुछ पता नही होता।
यस ही हालात लोगो को जीवन समाप्त करने पर मजबुर करता है।
यह दिन भी कट जायेंगे।
नीके दिन जब आयेहे बनत न लाघिये दीर



अनिर्णय की घड़ी

समाज हो या आदमी हरिक के लाइफ में यह पल आता है जब वो किसी मुकमिल निर्णय पर नही आ पता।
क्या आपने कभी सोचा है इस हाल में आप क्या करते हें। या तो सोचना बंद कर देते हें या फिर नए सिरे से सोच चलने लगते हें।

Sunday, December 7, 2008

मंदी का असर

किस पर नही दिख रहा है मंदी का असर? सभी लोग चाहे वो छोटे रेतैलेर हों या बड़ी कंपनी सभी अपने यहाँ इसी का रोना रो रहे हैं। लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। यैसे में हर कोई डरे समाहे हैं। किस की गर्दन कटेगी कोई नही जानता।
जो लोग शादी करने वाले थे वो ज़ल्दी में कर रहे हैं ताकि अची लड़की मिल सके। नौकरी छुटने के बाद कोई नही पूछेगा। दहेज़ भी कम मिलेंगे।
दूसरी तरफ़ चहरे उदास हैं। काम में मनन नही लगता
प्यार में रोटी , नौकरी और लोगों के सवाल घिर गए हैं। क्या खाक प्यार के धुन कोई कैसे सुन सकता है। बाज़ार के चौतरफा मार को समझने के लिए अर्थ शास्त्र के साथ समाज शास्त्र को भी समझने होंगे। मनोबिगायण भी पढ़ना होगा।
क्या कुछ नही प्रभावित होता है। घर से लेकर दफ्तर तक काम से लेकर जीवन तक सब इस समय मंदी के निचे आ गए हैं।
बाज़ार जीवन रेखा को तै कर रही है। उधर सेंसेक्स पर उतर चढ़ होता है इधर जीवन के अहम् फैसले लिए जाते हैं।














Friday, December 5, 2008

दिसम्बर की वो तारीख

आज तक़रीबन सोलह साल बीत चुके मगर घटना वहीं की वहीं खड़ी लगती है। तमाम मीडिया की नज़र यूपी के अयौध्या पर टिकी थी। सारा देश शर्मसार था। मगर इक जोर ने उस येतिसाहिक धरोहर को हमेशा के लिया नस्तानाबुत कर दिया।
आज उसी की वारसी है। वारसी तो मनायेजयेगी लेकिन उस यस्थल पर उडे धुल में लिपटी सचाई को क्या भुला या जा सकता है ? नही ज़नाब यह वो घटना थी जिसके टिश सदा के लिए समय के साथ चलेगी।
कुछ कंदील कुछ आसूं , चाँद बयां के बाद यही इस घटना के साथ होगा जो ....





Monday, December 1, 2008

चलिए साहिब दिसम्बर आ ही गया

दिसम्बर का पहला दिन यानि यह साल भी बस जाने के कगार पर खड़ा है। मुंबई की घटना ने देश को झकझोर कर रख दिया।
उम्मीद की जाए की अच्छी स्टार्टिंग हो।

Friday, November 28, 2008

सोची हुई बात

सोची हुई बात जब सच हो जाए तो उसे क्या कहेंगे औरोबिन्दो घोष ने कहा था के हम जिस तरह के विचार हम करते हैं वो विचार कल्पना आने वाले समय में घटित होती हैं । इस लिए नकारात्मक सोच न तो अपने लिए और न ही दुसरे के लिए रखना चाहिए। क्या पता वो कब कैसे सच में साकार हो जाए। २६ की शाम मैंने इक कविता लिखी की बोहोत दिनों से कुछ हुआ नही, न बम बलास्ट हुआ न आत्महत्या हुई, किसे ने कुछ नही किया। और देखिये शाम होते न होते सच में मुंबई में इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ।
या तो इसे आप संजोग कह ले या शब्द की शक्ति की शब्द ब्रमः होता है शब्द की शक्ति होई है।
शब्द की साधना की जाती है। इक शब्द क्या नही कर देता।






Tuesday, November 25, 2008

बोहोत दिन से कुछ हुवा नही

बोहोत दिन बीते न हसी आई,
न दोस्तों की बात पर ताजुब,
क्या कहूँ की बस तेरी याद आई।
क्या कहूँ ,
कुछ दिनों से लोगों को ,
आर्थिक मंदी के आगे ज़िन्दगी खाक करते देख,
बाज़ार पर हसी आई।

Thursday, November 20, 2008

चुनाव के मौसम में

चुनाव के मौसम में अखबारों के पन्ने, टीवी पर प्रचार के भरमार हो जाती है। नेता लोग तरह तरह के करामत करते नज़र आते हैं। इन दिनों अखबारों के पन्नो पर नेता पसरे होते हैं। इससे कमसे कम अखबारों को कमी तो होत्ती ही है ।
किसी के पैर छुते तो किसी को गले लगते नज़र आते नेता जी बेसक साल भर नज़र न आयें लेकिन साहिब चुनाव आते ही नेता जी गली गली भ्रमण करने लगते है। समझा करो सर जी चुनाव का मौसम है।



Wednesday, November 19, 2008

प्यार क्या खतरनाक होता है

प्यार क्या सचमुच बोहत खतरनाक होता है की जो प्यार करने की गलती करता है उसे या तो गोली खानी पड़ती है या फिर रेल के निचे फेक दिया जाता है मरने के लिए। चाहे वो देश का कोई भी कोना हो कई जगह इसी तरह की घटनाये घटी हैं।

Tuesday, November 18, 2008

कुछ बातें कुछ यद्यें

जब बात निकलती है तो पुराने गुजरे समय की कई घटनाएँ खुलती चली जाती हैं। पिछले दिनों अपने पुराने दोस्त से बात हुई इनदिनों वो नेपाल में है वैसे तो वो नेपाल का ही है लेकिन काफी समय से संपर्क टूट सा गया था। चाँद तस्वीरों से झाकता वो लंबा लम्हा यका याक ताजा हो उठा। वही कदकाठी वही अंदाज बस बदला था तो समय। लंबे समय से न मिल पाने के कई मजबूरियां थीं। पर बातें तजा तरीन थीं। लगा ही नही की हम इतने समय की साडी बातें साझा नही किया।
कुछ दोस्त होते हैं जो दूर तो होते हैं मगर जब भी मिलते हैं वही गर्मी वही ज़जबत होती है। कितने खुशनसीब होते हैं वो लोग जिन्हें सचे दोस्त मिला करते हैं। दोस्ती वास्तव में निभाई जाती है। यूँ ही नही दिल लुभाता कोई।








Thursday, November 13, 2008

सच में जो रोज़ शामिल हो....

यह सच है जो आपकी ज़िन्दगी में रोज के उठा पटक , घटनावो में शामिल होता है वही दूर जा कर भी दूर नही होता। बल्कि कहना चाहिए के जो दूर रहा कर भी आपकी रोज के लाइफ में शामिल होते हैं वो भी बेहद याद आते ही हैं। कभी कभी यूँ होता है की वो दोस्त मिल जाता है रस्ते में या कहीं किसी जगह तो वही भावः नही निकलते जो कभी साथ रहते लगाव हुवा करता था। सम्भव है आप भी इस तरह के अनुभव से गुजरे हों। दरअसल होता यह है की जो लोग साथ होते हैं वो लड़ते भी हैं , प्यार भी उतना ही करते हैं। दोनों ही लगावो के रंग हैं ।
यही रंज में न बदल जाए इए का ख्याल रखना चाहिए।





Wednesday, November 12, 2008

उर्दू जौर्नालिस्म रोल एंड....

उर्दू पत्रकारिता का अतीत और भविष्य पर दयाल सिंह कॉलेज में सेमिनार हुवा। इसमे उर्दू और हिन्दी के पत्रकार शामिल थे। लोगोनो की चिंता यह नही थी, के उर्दू पत्रकारिता को कैसे आज की चुनौतियों से लड़ने का औजार मिले या दिया जाए। बल्कि अमूमन वक्तावों ने केवल उर्दू ज़बान की तारीफ के पूल बांधे।
जबकि आज उर्दू पत्रकरिता को टेक्नोलॉजी बाज़ार और पाठक को समझना होगा।

Tuesday, November 11, 2008

क्या कोई दुःख से चिपक कर....

क्या कोई दुःख से चिपक कर लंबे समय तक रह सकता है ? या कोई भी दुःख से लग कर जयादा समय तक चल नही सकता। एक समय का बाद दुःख भी ज़रा हल्का पड़ने लगता है। और देखते ही देखते दुःख का रंग ज़रा से सुखद बयार पा कर फुर्र होने को बैचन हो जाता है। कालिदास की एक लाइन है सुख दुःख चक्र की तरह होता है।
दोनों ऊपर और निचे होते रहते हैं।
फिर क्या कोई इस फलसफा को लाइफ में ढल पता है ? जिसने भी इस पर अमल किया उसका दुःख काल कम होता चला जाता है।


Thursday, November 6, 2008

बहन को गले लगाया तो....

लगा जैसे बोहोत बड़ा हो गया। बहन की आखों में आंसू थे , हाथों की पकड़ में प्यार।

अपने ही शहर में

वो अपने ही शहर में चार दिन और चार रात रुका लेकिन अपने घर नही। वो तो रुका रहा देखते हुए सपने जिससे मिलने के लिए तक़रीबन ८०० किलोमीटर का फासला तै कर आया था अपने ही शहर में। लेकिन अपने घर न ही रुका और न ही ख़बर ही थी घर वालों को की उनका बेटा शहर में है। मगर घर पर नही।
कचोट तो उसे भी हुई जब की कैसे हो की अपने घर नही गए ? कमल है कोई इतना करीब हो जाता है इक लड़की के लिए जो घर न जाए ? तब लगा की कुछ तो सच है। वास्तब में कुछ तो उसमे है की वो अपने घर न जा कर सीधे मिलने उससे चल पड़ा था।
रस्ते में क्या कुछ नही मिले सब कुछ वही रस्ते , वही दुकानें, वही सब कुछ मगर इन सब से बेखबर इक ही धुन में बढ़ता उसके घर जा पंहुचा। वो भी इंतजार में थी लेकिन उससे क्या मालूम की ज़नाब अपने घर न जा कर सीधे उससे मिलने आ धमके।
पर हुजुर यही सच है। चार दिन चार रात अपने ही शहर में रहे मगर अगनाबी की तरह। रेल गाड़ी में बैठे तो लगा पिता कह रहे हों बेटा ठीक से जाना, माँ की आखों में आसू पूछती से की क्या तू तो सब कब आता है और कब चलने का वकुत हो जाता है पता ही नही चलता....
सोच में डूबा बिता था तभी माइक पर आवाज गूंजी गाड़ी बस कुछ ही समय में आने वाली है। और रेल पर बैठ गए कब गाड़ी नदी , खेत , स्टेशन को पर करती गुजर गई तब पता चल जब मूंगफली वाला आवाज लगा रहा था टाइम पास टाइम पास।
समय के दरमियाँ वो , रातें , दिन दिन भर सोचना , आजान की आवाज से जागना सब कुछ घूम जाती थीं।









शहर के प्लात्फोर्म पर

क्या कभी अपने शहर के रेलवे स्टेशन से आपको लगाव रहा है ? क्या कभी अपने ही शहर के प्लात्फोर्म को ट्रेन से पार किया है ? नही फिर आप समझ सकते हैं, कैसा लगेगा ? अपने शहर को ट्रेन से पार करना।
आप स्टेशन पर बिना ....

Thursday, October 30, 2008

ज़िन्दगी में यूँ ही

कुछ लोग यैसे ही मिलते हैं जिन्हें भूल पाना मुमकिन नही होता। अकसर्हन वो तो गाहे बा गाहे ज़िन्दगी में आते जाते रहते हैं। आप इंकार नही कर सकते। हैं कुछ लोगों की मौजूदगी ज़रा भरी पड़ती है। पर कर सकते हैं उनके संग भी सामना करना पड़ता है।
लाइफ होती ही है मिलने और कुछ दूर जाकर अपनी अलग रह निकल जाने की। हर कोई यही तो नही कर पता अतीत में ही चिपक कर रहना चाहते हैं , uनकी भी गलती नही है है वो तो यैसे दौर की लहर साथ लिये होते हैं के साडी नै चीजें ख़राब लगती हैं।
खैर ज़िन्दगी में कुछ पाने के लिए संगर्ष करना पड़ता है।








Sunday, October 26, 2008

सड़क का रंग लाल क्यो

आज कल मुझे सड़क की रंग लाल दिखती हैं । यूँ तो सड़कें काली हुवा करती हैं, लेकिन आजकल काली के बजाये लाल दिखती हैं। सरकारी रिपोर्ट बताती हैं भारत में सड़क पर बेतहाशा खून बह रही हैं ।
लोग और गाड़ी के रेलमपेल में इन्सान के कीमत ख़त्म से होती जा रही है। सिर्फ़ आगे भागने के जुगत में कोई कुचल जाए मगर हम युफ़ तक नही करते। सड़कें कहीं नही जाती जाती है इंसानी भाग। सड़क का क्या कुसूर वो तो लोगों के बेहतरी और मंजिल तक ले जाने के लिए वचनबद्ध होती है लेकिन कोई रह में दम तोड़ दे तो सड़क क्या करे।
इक बार गाड़ी हो या इन्सान घर से निकलने के बाद तै से नही कह सकता की वो सकुशल घर पर वापस आएगा।
हर किसी की कोशिश यही होनी चाहिए की हर कोई घर लौट जाए। स्कूल जाती बिटिया पापा को...
काश हम पापा , भाई , पति को सड़क पर तड़पने को न छोडें।







Friday, October 24, 2008

आखें हैं की मानती नही

सभा में या फिर भीड़ में हमारी आखें अक्सर कुछ तलाशती हैं। वही चेहरा वही , भावों को धुन्दती हैं जिसको देख कर जी खुश हो जाता है ।


सर्दी यूँ ही

सर्दी यूँ ही दबे पाव आती है सर्दी क्या यूँ ही दबे क़दमों से हमारे कमरे , मौसम और जेहन में प्रवेश करा करती है ... अचानक यूँ ही ?धीरे धीरे पंखा कम से बंद हो जाते हैं। नल का पानी ठंढा लगने लगता है। सुबह पावों में सर्दी प्रवेश करने लगती है।दुःख तो शायद यूँ नही आता। खुशी यका याक आया करता है। दुख भी उसी रस्ते आया करती है।

सर्दी यूँ ही चुपके से कमरे में प्रवेश करती है

सर्दी यूँ ही चुपके से कमरे में प्रवेश करती है की जैसे शाम में या फिर सुबह पावों में ठंढ लगा करती है। सर्दी पंखों के बंद होने से लगता है चुपके से कमरे में प्रवेश किया करती है। शायद दुख भी यूँ ही चुपके से हमारे करीब घुमती है समय पा कर हमारे संग हो लेती है। सुख तो धमाहे के साथ आया करती है ।
सब को पता चल जाता है । मगर ज़नाब दुख तो बिन बताये हमारे साथ चला करती है ।


सर्दी यूँ ही दबे पाव आती है

सर्दी क्या यूँ ही दबे क़दमों से हमारे कमरे , मौसम और जेहन में प्रवेश करा करती है ... अचानक यूँ ही ?
धीरे धीरे पंखा कम से बंद हो जाते हैं। नल का पानी ठंढा लगने लगता है। सुबह पावों में सर्दी प्रवेश करने लगती है।
दुःख तो शायद यूँ नही आता। खुशी यका याक आया करता है। दुख भी उसी रस्ते आया करती है।





Thursday, October 23, 2008

लोग क्या यूँ ही चले जाते हैं

लोग कई दफा यूँ ही बिन बताये हमारे बीच चले जाते हैं। उनके जाने के बाद महसूस होता है वो कल तो हमारे साथ था। आज अचानक बिन बताये कहाँ चला गया ? उसके जाने के बाद लगता है वो तो उन हर चीजों में है जिसका इस्तमाल किया करता था। हम बस चीजों में, जगह, बातो में उसे तलाश करते हैं।
लेकिन वो तो इन सब से बेखबर कहीं दूर जा चुका होता है । हमारे पास रह जाती हैं तो बस उसके साथ बीतए पल घत्याने बस ।






Thursday, October 9, 2008

रावन को जलाया

क्या अपने अन्दर के रावन को जलाया? हर के जेहन में एक नही कई रावन रहा करते हैं। पर हम उस रावन से मुहब्बत किया करते हैं। शायद हम कई बार रावन की सिनाखत नही कर पाते या कभी कभी पहचान कर भी नज़रंदाज करते रहते हैं।
रावन महज एक आदमी नही बल्कि कई मानवीय पहलुवो कर प्रतिक है। हर बार दहन के बाद भी बुराइ समाज से जाती कहाँ है। सब के अब हमारे आसपास घुमती रहती हैं।



Sunday, September 28, 2008

आतंकी का धर्म

आतंकी किसी भी देश , धर्म, के हों मूल बात ये है वो महज आतंक ,खून , चीख- पुकार फैलाने में विशवाश करते हैं। चाहे वो सीमा पर की ज़म्मीन हो या भारत की हर जगह सिर्फ़ ब्लास्ट किए जा रहे हैं।
लोग रोते बिलखते हैं। मगर आतंकी इसको अपनी सफलता मानते हैं।
देश संकट में है। रोज कही न कहीं ब्लास्ट हो ही रहे हैं। इससे किस का मकसद सधता है ? रोटी तो मानवता ही है। पर क्या कहें , यूँ के घर परिवार में सदस्य होते हैं या नही ? पता नही पर दिल यूँतो होते नहीं होंगे ।




Thursday, September 25, 2008

आखरी मुलाकात

आज लगा सभी से शायद आखरी मुलाकात हो रही है। फिर कितने दिनों के बाद लोगों से मिलना होगा? इक लम्बी चुप्पी के बाद जब उनलोगों से मिलना होगा तो क्या वही ऊष्मा, वही , मुस्कान दिखेगा?
लेकिन शायद आज दोस्तों से मिल कर लौटना येसा लगा की जैसे पता नही कब फिर मुलाकात होगी।
निर्मल वर्मा की इक बात याद आती है।

Thursday, September 18, 2008

खाली यूँ ही

क्या सोचते हैं जब आप खाली बैठे होते हैं ।।
अकसर हम बीते दिनों और गुजरे समय की घटनावो में डूबता उतरते रहते हैं। या यूँ कह लें की हमें बेहद पसंद होता है यह कहते रहना की तब मैं या था वो करता था ....
दरअसल हम अपने अतीत से निकल ही नही पाते हमें वो दिन ही याद आते हैं जो गुजर चुका है ।
कभी मौजूदा पेचोखम से रूबरू होने की हिम्मत जुटा कर हमें चल रहे समय की और आने वाले कल की चुनौतियें का मुयाना करना बेहतर होता है ।

Tuesday, September 9, 2008

बाज़ार में मीडिया या मीडिया में बाज़ार

बाज़ार का चरित्र ही होता है कुछ समय में बदल जाए। बाज़ार केवल मुनाफा मांगती है। मुनाफे के लिए बाज़ार किसी भावना में नही। शुद्ध रूप से पैसे बनाना ही बाज़ार का लक्ष्य होता है। ठीक उसी तर्ज़ पर आज मीडिया भी केवल मुनाफे की ख़बर उछालता है।
आज मीडिया की कई स्तरों पर आलोचना की जा रही है। केवल हिंसा , सेक्स , तमाशा जैसे लोक रूचि की चटपटी खबरों को प्रमुखता से इतनी बार बजाते है की लोगो को साडी चीजे सच लगती है।
सच वह जो महज नम्बर बनने में कम आते हैं। मीडिया की आलोचना इस बात को लेकर भी होती है की यह चीजों को या तो इस लेवल तक ला देती है की विश्वास कमतर होता जाता है या फिर लोग देखना बंद कर देते हैं।










Tuesday, September 2, 2008

बिहार बाढ़ के समय देश साथ

उधर बिहार में बाढ़ में लोग जूझ रहे हैं इधर रामदेव के पहल पर पुरे देश के बड़े बड़े उद्योग घराने मदद के लिए आगे आ रही हैं। न केवल कम्पनी बल्कि राज्य सरकार भी मदद की राशिःबिहार भेजने में जुट गए हैं। सरकार के साथ ही सैनिक भी अपनी इक दिन का पेमेंट बिहार भेज रही हैं। संसद भी अपनी इक दिन का वेतन दे रहे हैं।
देखा गया है जब भी देश में विपत्ति का दौर आया है पुरा देश एक हो जाता है। बाढ़ से तबाह लोगो को देख कर आखे भर भर आती हैं। लोगो की जमीं छुट गई। घर छुट गए। बस जीने की आस उनकी आखों में झाकती हैं।
या रब उनको इस आपदा से उबार दे।







Monday, September 1, 2008

अतीत के संग

दरसल अतीत के संग चिपक कर रहा नही जा सकता।अतीत को समझा ही जा सकता है। ताकि आगे की सीख ली जा सके। अतीत में अटकी चेतना कभी भी किसी भी देश समाज और आदमी के लिए बेहतर नही होता। अतीत को तो ठीक ही किया जा सकता है।




Sunday, August 24, 2008

होर्डिंग्स को देख कर शहर का मिजाज़ जाने

क्या कभी शहर से गुजरते हुवे शहर की सडको पर लगे होर्डिंग्स पर नज़र डाली है ? नही तो कभी डालें आपको शहर के बदलते मिजाज़ का पता चलेगा। रेस्तरा, होटल से लेकर शहर में होने वाले जलसा , आन्दोलन सब की ख़बर शहर में प्रवेश करते ही मेल जाती है।

Thursday, August 21, 2008

जब खेल में मैडल आया है

सरकार की तरफ़ से तोफा देने का सिलसिला निकल पड़ा है। मगर कोई जमीनी हकुकित नही जान पता की किस हालात में हमारे खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। किन बुनादी ज़रूरत के बगैर वो ख़ुद को तैयार करते है।
बेहतर तो ये होता की शुरू से सरकार प्रतिभशाली युवा को बढावा देना होगा।
फिलहाल सरकार सर्वाशिशाका अभिवन को कारगर बनने के लिए विद्यालय में खेल को तवज्जो दिने का मन बनाया है।

Tuesday, August 5, 2008

अर्जुन की गांडीव

कभी सोचता हूँ,
अर्जुन की गांडीव जब पेड़ पर तंगी गई होगी ,
तब कैसे अपनी अन्दर के अर्जुन का समझए होंगे ,
तीर तो चलने को तैयार पर गांडीव ही नही ,
कलम तो पास में हो पर ,
लिखने पर पावंदी लगी हो तो ...
विचार यूँ ही पड़ पर फलते होंगे ,
आज कल कई हैं जिनके विचार की पोटली पड़ पर ही रहा करती है।
.........
बाहर की आवाज़ से तंग आ कर ,
अक्सर अन्दर के कमरे में चला जाता हूँ ,
पर वहां भी माँ के घुटने से उठी आह बजने लगती है,
पिताजी की आखें कहने लगती हैं ढेर से सवाल ,
या फिर कालेज की दोस्त की हँसी गूंजने लगती है॥
तंग आकर बैठ जाता हूँ -
देखने टीवी पर वहां संसद के हंगामे सुनाये जाते हैं ।
परेशां पहले की तस्वीर देखने लगता हूँ ,
सोचा अतीत की फोटो में तोडी देर रह लूँ ,
मगर उन तस्वीरों में मेरे भरे काले बाल सर दिखे ,
जैसे ही अपने उचाट होते सर पर सोचता हूँ ,
तभी काम वाली बेल बजा देती है ,
मैं सोचता ही रह जाता हूँ ,
आवाज कमरे में भी शांत न हो सका।

Tuesday, July 22, 2008

बाल जाने लगे घुमने

मेरी इक दोस्त है -
सर से बाल जाते देख ,
ज़रा चिंतित लगती है ,
कहती है ,
क्या मालूम है
कोई दवा या...
नही चाहती की समय से काफी पहले सर नंगा हो नही चाहती बिग
क्या है बाल तो हैं ही जाने के लिए पर उसे ये बात समझ नही आती या
यह लगावो है सुंदर रहने का
पर यही तो है जिद्द की मैं ज़रूर दूंगी चुनौती कुदरत को
और देखा इक दिन उसके सर पर घने बाल ।
कैसे चुप रहता देख कर परिवर्तन
कहने लगी चाह हो और काम भी तो ,
मुस्किल नही ।

जन्म दिन मालूम नही

पिता जी कब जन्मे थे -
इक दिन पिताजी से कहा ,
आप कब जन्मे थे ,
आश्विन पक्ष में याद नही तुम लोग इंग्लिश में क्या कहते हो ,
जनवरी या जून कुछ होगा पर याद नही।
कहने लगे सात और पाँच पर कर गया -
फिर भी लगता है कुछ पढ़ना छुट रहा है ,
मैं चाहता हूँ ,
तुम अभी और पढो
माँ नाराज़ हो गईं ,
शादी तो करता नही
आपने सर पर बैठा रखा है ,
कुछ बोलते नही और दोनों में हो गई ...
भूल गए जन्म दिन
पिताजी ने बस कहा ,
इक बात है आज कल क्या पढ़ रहे हो !
कुछ मुझे भी भेजो पहले वाली किताब पुरी... और खासी तेज़ होगी ।

तोते वाले पंडित जी के पास बैठे रहते

वो अक्सर तोते वाले पंडित जी के पास बैठे रहते थे -
भर भर दुपहरी तोते का निकलना देखते रहते ,
तोता बाहर आता कार्ड निकलता ,
पंडित जी बचाते ,
ठीक ठाणे वाली मोड़ पर।
रोड के किनारे पंडित जी -
बैठे कार्ड पढ़ते ,
बस पाच रुपये लेते ,
चुन्नू दा घर जाते बस खाना खाने बाबा कहते आ गए खाना दो फिर जायेंगे काम पर ।

Monday, July 14, 2008

अन्दर का मौसम

बाहिर का मौसम कैसा भी हो ,
अंदर का मौसम तै करता है मौसम होगा

इक आँख है पास

इक आँख है पास जो हर समय
देखती रहती है
मेरी हर बात और हर कदम पर
हर बार चाहता हूँ
आँख की भाषा समझ सकूँ
पर हर बार हार जाता हूँ ।
आँख की बूंदें
पड़ी हैं
आस पास
पर कुछ न बोलते हुए भी
बहुत कुछ कहती हैं ।
आँख से चाँद बातें
टपकती हैं -
कहती हैं ज़रा समझो तो।

Saturday, July 12, 2008

आप की जब पकड़ी जाती है झूठ

क्या सोचा है कभी की जब आप की पकड़ी जाती है झूठ तब कैसा लगता होगा ?
नही सोचा होगा , कभी हम अपनी गलती पर कब सोचते हैं ? बस दुसरो की गलती निकलते रहते हैं तभी तो हमें अह्नुभाव ही नही होता की कभी तो सच बोलने की सहस जुटा पायें मगर हमारे आगे अहम् आ जाता है ।
आब यैसे में दोष किसे दिया जाए ? क्या आप ने कभी सोचा है? शायद मौका न निकल पायें हों? क्या सच है ।
अगर हाँ तो सच को मानाने की सहस जुटानी ही चाहिय ।
क्या आप भी इस विचार से इतफाक रखते हैं ?
आप को असहमत होने की भी पुरी छुट है मगर बच कर निकलना ठीक नही होता ।

Friday, July 11, 2008

सरकार पर संकट

परमाणु करार को लेकर सरकार पर संकट के बदल छाए हैं , अब २२ जुलाई को सरकार को संसद में अपनी परीक्षा देनी है !
सभी संसद संसद के भीतर अपनी वजूद तलाश रहे हैं ,
कौन नही चाहता सरकार सी शक्ति और बल ।
तभी तो सभी पार्टी की कोशिश है किसी भी तरह सत्ता में आजायें।

Thursday, July 10, 2008

दोस्त को जब प्यार हो गया

जब मेरे दोस्त को प्यार हो गया
तो वह और खुश रहने लगा
पर अन्दर क्या कुछ बन रहा था
या कुछ हो रहा था
वो तो तेज़ क़दमों से उसके पास जाने लगा
पता क्या था के
वो तो ...
पर न ही टुटा न हुवा शांत
हलचल बढती रही
कहा डाला देख कर मौका
क्या तुमको विश्वास है
पहली नज़र के प्यार में ?
तो क्या कहा उसने
हमें करना होगा इंतजार
तब तलक
जब तक
उसकी आस है
शायद कुछ दिख जाए किरण
कल की.

Monday, July 7, 2008

पत्र लिखने का दिन गुजर सा गया

कई दिन से सोच रहा हूँ पिता को लिखूं
कैसा हूँ
कितना याद आते हैं पिता
मौन शांत
कुछ गढ़ते से
या चुप चाप नदी के किनारे सुबह
टहलते हुए
पर क्या करूँ क्या लिखूं
हर शाम जब थक जाता हूँ तब याद आते हैं पिता
लिखने को ख़त बैठता हूँ
लेकर कलम
पर हाथ नही चलते
झूठ लिखते कापने लगते हैं
के मैं ठीक हूँ
वो पढ़ कर उदास हो जायेंगे
सो छुपा लेता हूँ
खुश हूँ
आप पिता याद आते हैं माँ पास में बैठी
कहती

Friday, July 4, 2008

क्या हल कहें

ज़नाब आप पूछते हैं क्या हाल
मैं क्या कहूँ
रोज़ सुबह घर से निकलते समय पॉकेट में
रखता हूँ अपनी तस्वीर
कहीं मिलूं भटकता तो
साथ ले लेना

Wednesday, July 2, 2008

शहर के किनारे

कई बार सोच कर फिर चुप बैठ जाता हूँ कहाँ तलाशूंगा शहर का शांत कोना
हर तरफ़ भीड़ और शोर पसरा है
लगता है तुम्हारे शहर में शोर है या तुम शोर में रहते हो कई बार सोच कर फिर चुप रह जाता हूँ
कई बार शहर में पसरा शोर डराता रहता है
मगर कुछ तो है

Tuesday, July 1, 2008

आज स्कूल खुल गए

दो माह के बाद स्कूल दुबार खुल गए
दुबार स्कूल में रौनक आ गई
मगर पिटाई का सिलसिला रुकेगा नही
मादाम स्कूल में वैसे ही बैठ कर समय काटेंगी
बच्चे चुपचाप अपना सबक याद करेंगे
कुछ भूल जायेंगे तो कुछ उम्र भर उनके साथ घूमेंगी
कभी दूर नही जा सकते
बच्चे उम्र भर इन्ही सबक में अटक जायेगे

Monday, June 30, 2008

समलैंगिक दिल्ली की सड़क पर

समलैंगिक को कलिफोर्निया में शादी करने और साथ रहने की कानूनी अधिकार मिल चुका है मगर भारत में अभी मुमकिन तो नही लगता मगर रविवार को दिल्ली में बड़े पैमाने पर समलैंगिक और लीस्बियन का दल दिल्ली की सड़क पर अपने अधिकार के लिए मार्च किया
भारत में इसलिए ज़रा कठिन हैं इसको मान्यता देना भारत में अभी रिस्तो की गरिमा बरकारर हैं साथ ही यहाँ पर धर्म और सबसे ज़यादा यह की लोग पुराने ख्याल के हैं
पर देखते हैं क्या यह बयार हमारे देश में भी बह सकता हैं !

अंजुरी में

अंजुरी में तुम हो
जब भी इबादत
के लिए हाथ बढती हैं
बस तुम ही आती हो
खुदा पूछता है बता तेरी
रजा क्या है
कुछ भी तो मुह से नही निकलता है
बस एक नाम जो मेरे संग डोलता है
वही अंजुली में झाकती है
जब कभी इबादत में होता हूँ
बस एक नही दो आखें सवालों भरी पूछती हैं
कहाँ रहे
कब से अजान में हूँ
पर

Sunday, June 29, 2008

सिक्चो पर

तारें नही घूमते घूमते हैं आखों में झाकती उमीद भरी बातें
ट्रेन खुलने वाली थी माँ की आखें थीं की बस सब कुछ कह देना था इससे पहले
लोर आ आ कर कह जाते अन्दर की आह कब तक घर बसवोगे
उम्र जयादा कहाँ है
देख ले सफर पर निकलने से पहले

Friday, June 27, 2008

प्यार के वक्त

सच ही तो है
तुम साथ होते हो तो
लगता है सूरज
इतना करीब है की
अंजुली में रख कर
निहार सकती हूँ
कि छु सकती हूँ
हर पल

तभी तो

जब कभी आप किसी के साथ होते हैं तब वास्तव में आप होते हैं क्या
ज़रा सोचें तो सही
मुझे लगता है
हम सच नही बोलते की जिसके साथ हम रहते है
दर्हसल हम किसी और के साथ की आस में बैचन होते हैं

सब कुछ तो था

सब कुछ तो था और है
पर क्या है जो
अक्सर सालता है
की नही है
है कुछ जो अभी तलाश है
कुछ तो है
जिसके पीछे
हम भागते रहते हैं
ताउम्र

Friday, April 11, 2008

गरीबी की बू

तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
न तुम पिज्जा खाते हो
न ही तुम खाना खाने बाहर जाते हो
कहते हो ज़माने के साथ चलता हूँ
पर ख़ुद कहो क्या खाक ज़माने के संग हो
न गाड़ी है
न ही घर
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
पसीना बहते तो हो
पर क्या कर पाए अब तलक
कहो चुप हो गए
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है

गरीबी की बू

तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
न तुम बाहर खाते हो
न ही तुम को पिज्जा खाने आता है
कहते हो ज़माने के संग चलता हूँ
पर तुम ही कहो
क्या तुम बदल चुके
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
पसीना बहा कर
कहते हो कोशिश कर रहा हूँ
सफल हूँगा
पर क्या खाक
कोशिश करते हो
अब तक घर तो क्या
क्या है तुम्हारे पास
तुम्हारे घर से गरीबी के बू आती है

गरीबी की बू

तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
कैसे रहते हो
न खाना खाने बाहर जाते हो
न घूमने कहीं छुट्टी में विदेश
कैसे जीते हो
तनिक कहो
तुम पिज्जा भी नहीं खाते
न ही बाहर खाते हो कैसे जीते हो
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
नई दौर की चलन से बेखबर क्या खाक
कर पावोगे
तुम्हारी फैमली से गरीबी की बू आती है
चलो माना के कर लोगे ख़ुद में तब्दाली
मगर बू कैसे ख़त्म होगी
पेर्फुम से नाक फुलाते हो
कैसे बदल लोगे ख़ुद को
तनिक कहो तो
गरीबी की बू आती है

Monday, April 7, 2008

कभी कभी

लगता है कभी कभी कि हम बिना लम्बी सोच के जब भी कोई राह चुनते हैं तब आगे चल कर ज़रा सा अफ्सोश होता है मगर ज़िंदगी की बाई पास सड़क पर यू टर्न नही होता बस आपको कुछ दूर तक चलना ही पड़ता है गोया अब रह पर निकल पड़े तो काटों को भी लेना ही होगा फूल बेशक न मिले

Friday, April 4, 2008

बचपन की यादे

लाल किले की लाल दीवारें
वक्त के साथ काली होती चली
इंसान को दया न आए पर मौसम को जरूर आ गई
बारिश, काले बादल, पक्षी, और काला मौसम तो खूबसूरत बना ही देता हे
मिटटी को महसूस करने के लिय लेते हो आंखें बंद कर

आया मौसम परीक्षा का

चलो करते हैं बातें हवा की
मौसम की और यूं तो आप कह सकते हैं
पल पल तो हम बातें ही करते हैं
फिर क्या नई बात है
हाँ है न
आप हैं मेरे तमाम बातें सुनकर चले जायंगे
दोस्तो में कहेंगे
यार कोई तो है जो बातें करता है
हवा से
दिवार से
और यूं तो
कहते हैं
दिवार से बात करने वाले को
पागल कहते हैं
मगर दिवार के भी कान होते हैं
तभी तो कहते हैं

Sunday, March 30, 2008

कहते हैं

कहते हैं की
जब हम होते हैं निरा शांत तब
चुप्पी भी शोर करती है
विजन भी भर आते हैं
तुम आते हो
लोग होते हैं
बस आप ही नही होते वहाँ बस होंगे वही लोग जिन से भागा किया दर बदर

समय मिले तो

चलेा जब समय मिले ताे बताएंगेकैसे हैं पितामां का दमाबहन की तबीयतपास के चाचाकैसे हैं सारे के सारेन समय है मेरे पास न तेरे पास हीजब तुम भी हाेगे खालीअाैर हाेगा समय तब करेंगे बातें ताराें की भीअभी न तुम खाली न मैं बेकारहाेगी तब सारी बातें बेाकर जब घर भरा हाेगा इसी िलए हम करेंगे बातें सब के बारे जब तुम साथ हाेगे अाैर करीब भीअभी न करीब हाे न समय ही

Friday, March 28, 2008

देखा जाता है

हम अक्सर उन चीजो से डरते हैं जो सोचने में खतरनाक होता है लेकिन वही हमें जीवन में वो तमाम खुशियाँ देता है जिसकी हमें दरकार होती है तो सबसे पहले हम अपने मन् से विचार का डर निकल दें तभी हम जीवन में नई सोच नई रौशनी पाते हँ

Thursday, March 27, 2008

जैसा भी है आपका है

आप जहां भी होंगे बस यूं समझें कि एक आंख है जो हर पल आप ही पर टंगी रहती है इसे नाम कुछ भी दे सकते हैं चाहें कुछ देर के लिए इसे अकेले बैठे का खाली चिंतन कह लें लेकिन क्या इस बात से इंकार कर सकते हैं कि जो भी अपनी तमाम चीजें छोड़कर आपकी खातिर आता है उसकी देखा भाल की जिम्मेदारी नहीं बनती हां है तो फिर क्यों न उसे निभाया जाए बहरहाल जो भी हो आप बस इतना

Friday, March 21, 2008

the world of news

khabaren yun hi chalti hain,
khabaren yun hin marti hain,
jab khabar se badi ,
aa jate hain ad..
khabar ki aukat hi kya hai,
vigapan ke aate hi ri ri yane lagti hai,
khabar...
khabr jab vigapan se hone lage bhari,
tab bazza hai hota hai.
na rok sakte hain sampadak,
na su editor,
aadesh hota hai,
upar se...

Thursday, March 20, 2008

bat hai

bat hai to alfaz bhi honge yahin kahin,
chalo dhundh layen,
gum ho gaya jo bhid me.
chand hasi ki gung,
kho gai,
kho gai vo khil khilati saffak hasi,
lana hai to muskil,
lekin namumkin nahi.
bacha kar rakhen-
apni hasi eas udasi ke daur me,
behad zaruri hai,
khud ke aawaz ko rakh pana alhada..

kuch rang

kuch rang hote hain eatne gahre ke..
ta umra cha kar bhi na dho saken,
kuch hote hain,
eatne halke ki,
eak bar me ho jate hain bilkul saf.
kuch ran rab ne dale hain,
jo na dhul pata,
na hi padta hai halka,
umra bhar mah mah karta hai zindagi bhar,
chalo yaisa hi daren koi rang,
jis me ho chuwan,
aapni mitti ki,
aur ho vo sab kuch jise soch kar hi,
maan chak uthe...

Wednesday, March 19, 2008

sucide kab karen

Sucide kab karen
zanab sucide ka chalan kafi badh gaya hai.yaise main yah zaruri hai ki kab kab aur kin halat me karna chahiya eas par zara sochna hoha. to lets think-
1. when u r so happy
2.when u r in the croud
3. whenur mother ask to eat which u dont like
4. when ur father ask to complite ur home work
5.when u r in the meeting
6.some time u feel u r in love
7.when ur marks is good bz u cant get admination in best college
8. ur frind ask 4 party
9.when u r watching movie
10last and importan u r the best person in the world.
thank think towice before take stape on the path of sucide...

Tuesday, March 18, 2008

teachers demands

Delhi University Teacher Association's Demands
Teachers from delhi university dimands from ugc that their saliry should be same as IAS. The argument was we are highly qulified and spend more time on study. At list one lecturer gives to their life's best affert to prepare for this post. Finaly he/or she became lecturer in the age of 30.But one IAS just complite gradution.
We have to finished M.phil , Phd and clear net or grf for this post.we are asking new scale for the universityteacher.

Monday, March 17, 2008

chalo kuch karen

jab kabhi udas hi maan,
ya maan na kare,
kuch karne ko,
to ghum aavo dooor,
kahin,
nikal javo,
khule me kah do,
apni maan ki bat,
havon se,
patton se,
street light bhi,
samvad karenge,
bat lenge mann ka bojh.

har subha

har subha,
upar ke zab me,
rakhta hun,
apni tasvir,
jar gum jayun,
bhid me,
ya akele me,
bazaar me,
to milan kar lena tasvir se...

Thursday, March 13, 2008

examination

In the month of march
All the examination has started. students from school to college and universities going to write answer. who are unable to attampt the question they brutly play with their life.Exam became bigger then life. The phylosophy of education never allow such type of sign in the students. Education always help to build better life and vision for the future but now a day exam and marks has become more important feature in the job point of view.
The force onto the the children from parents and friends.These forces can define in the terms of socio and psychlogical preasure on the students.
Recently, in the month of march at lest 5 students have commitied sucid due to poor performance in the exams of fear of exam.Class 6th student has commitied sucide because his result in hindi and sanskrit was very poor.
college and university studeents also have commitied sucide in the stress of exams. prof. yaspal and some other eucatinist has written and have given their comment and way how to cross the river of exam's vaitarni..
All though we should have a dialogue with children about their preparation and their life' complex.
contuniue dialoguing is a powerfull medicine to putt off the exam's fear.

Tuesday, March 11, 2008

dialogue with morning

Dialogue with morning

When i was sleeping one ray of sun came in on my bed and asked hye what are you doing? I was not prepared such type of question from ray. So firstly i saw at her through red eyes. She repeated her question. Now i had to give the answer to her.I said i am sleeping. She laughted at me. I was surprised why she is laughing?

I went to wash face and sea my face in the mirror.My face was like a 50 years old man's full of rincle. Again one bird came and sit on the window and asked why r u so sad?

economic aspect of language

Power of Language
Language follows us from birth to death. Human being can not live without language. Language plays a vital role in our life. In this era of information revolution language can help people to fight with market.
Four types of language skills are required in the field of education- speaking, reading, lisening, writing. All these four skills can develop through practice. 'practice amke man perfect' or karkarat at abhyas se jad mati hot sujan.
The history of philosophy and psychology has proved that languages are more powerfull in the world. If we see the language of government or the language of politics what we get? they fight and play with language.
The market of language depends upon the uses by mas level in the society. Most of the lenguages become dry n out dated because user left to love her.
Languages are just like beloved when u give lots of time for meeting, dialogue then we feel light and happyer in the world. Every one like to marry with beloved. Language is like beloved if some one together in futur then must give more and more time to convince her. Then the time will come language become jivan sathi.
then what r u thinking?
lets join to search a language partner.

Monday, March 10, 2008

dream comes in day n night

Dream comes in eyes,
day n night,
noon n eve,
not a single moment he doesn't come,
always he comes with lots of thought,
i try to understund,
my eyes full of dream,
no space for regreat on past...
sapne hain to neend kaise aayegi,
raat din chubhte hain sapne ean aakho me...
pathri aakhen kahan dekh pati hain sapne...
sapne pure hote hain gar...
ho jagba,
lagan pura karne ke.

between the line

Between the words,
in the gap of lines,
searching tme meaning,
cool,
touching,
which has left in the past,
when father introduce the meaning of words,
power of words,
emotional value of sound...

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...