Monday, June 30, 2008

समलैंगिक दिल्ली की सड़क पर

समलैंगिक को कलिफोर्निया में शादी करने और साथ रहने की कानूनी अधिकार मिल चुका है मगर भारत में अभी मुमकिन तो नही लगता मगर रविवार को दिल्ली में बड़े पैमाने पर समलैंगिक और लीस्बियन का दल दिल्ली की सड़क पर अपने अधिकार के लिए मार्च किया
भारत में इसलिए ज़रा कठिन हैं इसको मान्यता देना भारत में अभी रिस्तो की गरिमा बरकारर हैं साथ ही यहाँ पर धर्म और सबसे ज़यादा यह की लोग पुराने ख्याल के हैं
पर देखते हैं क्या यह बयार हमारे देश में भी बह सकता हैं !

अंजुरी में

अंजुरी में तुम हो
जब भी इबादत
के लिए हाथ बढती हैं
बस तुम ही आती हो
खुदा पूछता है बता तेरी
रजा क्या है
कुछ भी तो मुह से नही निकलता है
बस एक नाम जो मेरे संग डोलता है
वही अंजुली में झाकती है
जब कभी इबादत में होता हूँ
बस एक नही दो आखें सवालों भरी पूछती हैं
कहाँ रहे
कब से अजान में हूँ
पर

Sunday, June 29, 2008

सिक्चो पर

तारें नही घूमते घूमते हैं आखों में झाकती उमीद भरी बातें
ट्रेन खुलने वाली थी माँ की आखें थीं की बस सब कुछ कह देना था इससे पहले
लोर आ आ कर कह जाते अन्दर की आह कब तक घर बसवोगे
उम्र जयादा कहाँ है
देख ले सफर पर निकलने से पहले

Friday, June 27, 2008

प्यार के वक्त

सच ही तो है
तुम साथ होते हो तो
लगता है सूरज
इतना करीब है की
अंजुली में रख कर
निहार सकती हूँ
कि छु सकती हूँ
हर पल

तभी तो

जब कभी आप किसी के साथ होते हैं तब वास्तव में आप होते हैं क्या
ज़रा सोचें तो सही
मुझे लगता है
हम सच नही बोलते की जिसके साथ हम रहते है
दर्हसल हम किसी और के साथ की आस में बैचन होते हैं

सब कुछ तो था

सब कुछ तो था और है
पर क्या है जो
अक्सर सालता है
की नही है
है कुछ जो अभी तलाश है
कुछ तो है
जिसके पीछे
हम भागते रहते हैं
ताउम्र

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...