Saturday, August 29, 2009

जब कोई बात अटक जाए

बता क्या करा जाए जब कोई बात आपस में बातो बातो में अटक जाए तो। चाह कर भी ज़ल्द उसकी आवाज़ दबी नही जा सकती। कई बार येसा होता है की सामने वाला बिना सोचे जो बोल गया उसका क्या असर होगा वह तो बोलने के प्रवाह में कह जाता है मगर सुनने वाले पर जो असर होती है उससे वह बेखबर ही रह जाता है। अगर समाये पर भाव पकड़ ले तो मामला बन सा जाता है। लेकिन येसा न हुवा तो आपसी ताना तनी शरू हो जाती है। आप चाहें तो मिसुन्देर्स्तान्डिंग कह सकते हैं। और यह सुलझ सकता है ब्शेरते की बात चित हो वो भी खुले मनन के साथ। मगर येसा कम हो पता है, अकसर पूर्वाग्रह बने बनाये काम को मिटटी में मिला देता है। होता बिल्कुल अलग है मामला और भी ख़राब हो जाता है।
कई बार मान लिया जाता है की वो तो येसा ही है येसा ही सोचता है हमें चाहिए यह की ज़रा उसकी जगह रख कर ख़ुद को परख लिया जाए।

Wednesday, August 19, 2009

जस अंत

जसवंत का जस अंत हो गया। पार्टी ने आखिरकार बाहिर का रास्ता दिखा दिया। जसवंत साहब के अपने दर्द हैं, मुझे डेल्ही में ही बता दिया होता। कम से कम मिल कर बताते मगर मुझे तो रावन बना दिया। कभी मैं पार्टी में हनुमान के रूप में देखा जाता था पर आज तो मेरी....
क्या किताब लिखना महज वजह है या की कुछ और। और यह भी जानना होगा की इसके पीछे क्या मनसा रही। क्या कोई ये बता सकता है के किताब लिखना मेरे पार्टी से निकला गया है या की पार्टी के ऊपर किसी तरह का दबाव कम कर रहा है।
जो भी हो मुझे शब्दों के कीमत चुकानी पड़ी

Tuesday, August 18, 2009

शाह रुख और न लज्जित हों

शाह रुख खान के मामले को पुरे देश की मीडिया ने हाथो हाथ लिया। इधर देश के एतिहासिक प्राचीर से प्रधानमंत्री झंडा फहरा रहे थे उसी समाये भारतीये मीडिया को इक तीखी स्टोरी हाथ लगी वह थी अमेरिका के नेव्वार्क एअरपोर्ट पर शाह रुख खान साहब के रोक लिए जाने की घटना थी। भारतीये मीडिया में चल रही ख़बर पर सुचना मंत्री अम्बिका सोनी ने बयां भी दे दिया की जैसे को तैसे की तर्ज पर भारत में भी अमरीकी के साथ बर्ताव करना चाहिए। तब अपमान की पीडा महसूस होगी।
अभी तब यह मामला थमा नही है। तमाम समाचार पत्र सम्पद्किये तक लिखा सब के स्वर इक से है। लेकिन इक तर्क पड़ व् सुन कर हैरानी होती है, यह पहली बार किसे भारतीये के साथ नही हुवा और फिर लगातार इक के बाद इक घटनायों के बेव्रे दिए गए। फलना फलना के साथ भी हुवा है यह कोई नै बात नही। ज़रा सोचने वाली बात है के जहाँ के प्रेजिडेंट के साथ ज़लालत सहनी पड़ी हो क्या यह भी चलता है वाली धरे पर मान लिया जाए॥

किताब से उठा विवाद

दो घटनाएँ इक साथ लिकना पड़ रहा है। पहली, जसवंत सिंह की किताब से उठी विवाद की जिन्ना साहब विभाजन के हीरो नही हैं। इस किताब में बड़ी ही शिदत्त से बयां किया गया है की दरअसल दोनों देशों से विभाजन के लिए जिन्ना साहब दोषी मन जाता है जबकि नेहरू और गाँधी भी उतने ही दोषी हैं जितने की जिन्ना। लेकिन जिन्ना को इसके लिए भारतीये राजनीती में खलनायक साबित किया गया। यह कांग्रेस की चल थी जो लंबे समाये तब इस तथ्य को दबा कर रखा।

जसवंत सिंह बीजेपी के नेता तो रहे ही है साथ ही विदेश मंत्री भी रह चुके हैं। ध्यान हो की पार्टी ने कुछ नेतावों को भर का रास्ता दिका चुकी है । यैसे में जसवंत सिंह के कलम से जन्मी यह किताब इक अलग विवाद को जन्म दे रही है। जन्म दे विवाद से डरता कोण है लेकिन क्या देश में पहले से समस्या कम है जो इक न्यू किस्म के विवाद को हवा दिया जा रहा है। क्या जसवंत सिंह हिस्टोरियन हैं जो तथ्य को इक नै रौशनी में देखने की कोशिश कर रहे हैं या यह उनकी कोई राजनितिक चल है। यह जानना ज़रूरी होगा।

Tuesday, August 11, 2009

कुछ जगह याद दिलाती हैं

हाँ कुछ जगहें यैसे हुवा करते हैं जहाँ जा कर येसा लगता है के सारे लोग तकलीफ और रोड पर ही रहा करते हैं । क्या सुबह और क्या शाम या की रात हर समय जहाँ लोग ही लोग रहते हैं । जहाँ कराह, इंतज़ार और बेहतर ख़बर की आश लोगों को हर पल सोने नही देता। हॉस्पिटल तो उन्हीं में से इक है जहाँ हर पल किसी न किसी के आने का या फिर बेहतर की ख़बर आने के उमीद में बस रात दिन इक कर देते हैं॥ डॉक्टर या की सिस्टर सब के सब देव से कम नही लगते , उनके हर शब्द ब्रह्म के अल्फाज़ के कम नाही होते। उनकी shabd कई बार परेशां भी करती हैं ।

Monday, August 3, 2009

हौसला तोड़ने वाले

जब आप बुरे दौर से गुजर रहे हों यैसे में कई लोग आप के हौसले को तोड़ने वाले ज़यादा होते हैं॥ उनसे बचना बेहद ज़रूरी होता है। वरना आपके अन्दर नकारात्मक विचार चलने लगते हैं। इतना ही नही बल्कि वह सोच हमारे काम करने, सोचने , कदम आगे बढ़ने पर भी खासा प्रभावों डालते हैं। तो लोगों, सितुअशन से हर संभव बचना बेहतर होता है।
नकारात्मक सोच अपना और बनने लगता है जिसे हम या की आप आसानी से दूर नही कर सकते....

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...