Monday, January 1, 2018

नए साल के काम...




कौशलेंद्र प्रपन्न

उगो हे कर्मयोगी उगो...

नए साल में हम सबने कुछ न कुछ ज़रूर सोच रखा है। सोचा नहीं तो सोचना तो होगा। हमें अपने साल की योजना तो बनानी ही चाहिए।
आज मेरी शुरुआत एक लेखन से हुई। इस साल का पहला लेख लिख कर सुखद एहसास हुआ। विषय बाल साहित्य समीक्षा से बाहर। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वयस्कों के साहित्य की चर्चा तो होती है किन्तु बाल साहित्य उपेक्षित रह जाता है।
इस साल मेरी कोशिश होगी कि एक नई किताब को पूरा कर सकूं। इतनी ताकत और आत्मबल बना रहे कि इस किताब को पिछली किताबों से बेहतर बना सकूं।
हम सब के पास सीमित समय हैं। सीमित ही क्षमताएं होती हैं। कुछ लोग हैं जो प्रयास से अपनी क्षमता और दक्षता को विकसित कर पाते हैं। यदि हम योजनाबद््ध तरीके से कार्ययोजना बनाएं और उसपर अमल करें तो क्या मजाल कोई सफल होने से रोक सके।
बच्चे परीक्षा के भय से बाहर आ सकें। अपनी क्षमता और कौशल के आधार पर जीवन की राह चुनें। इससे बेहतर कुछ और नहीं हो सकता। लेकिन ऐसा ही नहीं हो पाता। बच्चे वयस्कों की इच्छाएं जीया करते हैं। कई बार यह जीना इतना भारी हो जाता है कि बच्चे जीवन ही छोड़ जाते हैं।
बच्चे हैं तो शिक्षा होगी। शिक्षा होगी तो बच्चों को बेहतर जीवन की तमीज़ दे सकेंगे।


1 comment:

Unknown said...

जी बिलकुल सही

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