Tuesday, January 9, 2018

हॉल 12 के सिवा मेला और भी है





कौशलेंद्र प्रपन्न
हॉल 12 की अपनी दस्तां है। हर कोने, मोड़ पर कहानी पसरी हुई है। जिससे मिलिए वही कहानी सुनाता है। वही कवि मिलते हैं। तमाम भारतीय भाषा में साहित्य उपलब्ध हैं। न केवल साहित्य बल्कि और भी चीजें मिलेंगी। ध्यान,धर्म,नौकरी सब कुछ तो इस हॉल में है।फिर कौन जाए हॉल 13 को छोड़कर किसी और हॉल में।
जनाब मेला हॉल 12 के अलावा और हॉल में भी हैं। मगर बेचारे और हॉल दुर्भागे हैं। शायद उन्हें श्रोता, पाठक और भीड़ वैसी नहीं मिल पाता जितना 12 को मिला करता है।हॉल 7 और आठ भी इसे मेले के अंग हैंलेकिन दक्षिण भर टोले की तरह।
हॉल 7 में बच्चों को लेकर नहीं गए तो बच्चों की रोचक दुनिया से परिचय पाने से महरूम रह जाएंगे। साथ ही पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए हॉल 7 को सजाया गया है। उसे नहीं देखा तो कुछ भी नहीं देखा। हॉल आठ में साहित्य मंच है और अन्य प्रकाशक हैं। लेकिन इन्हें भी श्रोता और पाठकों की राह तकनी पड़ती है। जबकि हॉल 7 और 8 में देखने,सुनने और महसूस करने को बहुत कुछ हैं।
पर्यावरण के साथ ही पानी के संरक्षण को लेकर कुमार प्रशांत और मनोज मिश्र की बातचीत बेहद ख़ास मानी जाएगी। इसी हॉल में उपभोक्ता, र्प्यावरण और साहित्यकार भी भूमिका पर संपन्न विमर्श में सुनने वालां की निहायतज ही कमी थी। वहीं हॉल 12 में उसी वक्त हो रहे कवि सम्मेलन में भीड़ थी कि खड़ी थी। शायद यह विधा के साथ ही रूचि का भी मसला है। मगर मेला किसी एक विधा व हॉल के आधार पर नहीं आंकी जा सकती। बाकी खुद जा कर देखें।

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