Wednesday, January 3, 2018

अतीतीय टटका रस और जोख़िम


कौशलेंद्र प्रपन्न
सामान्यतौर पर कहा जाता है कि कवि, साहित्यकार अतीतजीवी हुआ करते हैं। अपनी रचनाओं में अतीत को जीने की दुबारा कोशिश करते हैं। काफी हद तक सही भी है। लेकिन सच तो यह भी है कि कवि, साहित्यकार न केवल अतीत की यात्रा करता है बल्कि वहां से वर्तमान की रोशनी भी लेकर आते हैं। उसी रोशनी में वर्तमान को समझने और सुझाव भी प्रस्तुत करता है।
कहानियां, उपन्यास कविता आदि से अतीत को निकाल बाहर किया जाए तो शायद कहानियां थेड़ी कमजोर हो जाएं। कविताएं थोड़ी बुझी बुझी सी हो जाएं। किन्तु जब कथाकार अतीत का इस्तमाल करता है तो उन तत्वों को वर्तमान में रख कर समझता है। यही अंतर है इतिहासकार और कथाकार में। कथाकार काल-खंड़ को पुरर्सृजित करता है। जबकि इतिहासकार महज अतीत का मूल्यांकन करता है। इस मूल्यांकन की प्रक्रिया में इतिहासकार भी अतीत की यात्रा करता है।
प्रो. कृष्ण कुमार इसे अतीत में अटक जाने के ख़तरे भी मानते हैं। एक सामान्य व्यक्ति अतीत में जाता है तो इसकी भरपूर संभावनाएं होती हैं कि वह वहीं रह जाए। वहीं की संवेदना और भावजगत में अटक कर रह जाए। उसे जाना तो आता है लेकिन लौटने की विधि नहीं आती।
हमारे जीवन में भी ऐसे ऐसे अतीत हैं जहां हम कई बार जाना क्या सोचना तक नहीं चाहते। लेकिन क्या वज़ह कि फिर भी बार बार हमारा अतीत हमें याद आता है। हम अतीत की संवेदना को ज़िंदा रखना चाहते हैं। फलां ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। इसे कैसे भूल जाएं। कैसे कोई भूल जाए कि किसी की वज़ह से आपको अपनी ही नज़रों में गिरने की घड़ी भी सहनी पड़ी थी।
अतीत से लौटने के औज़ार सामान्यतौर पर कोई नहीं देता। हालांकि कहने वाले कहते हैं। कहते हैं कि भूल जाओ जो हुआ। नई जिं़दगी की शुरुआत करो। मगर एक मन है कि मानता ही नहीं। एक दिमाग है कि बार बार पुराने व्यवहार की मांग करता है। वह चाहता है कि फलां व्यक्ति के साथ जैसे संबंध अतीत में थे वे वैसे ही रहें। क्या यह संभव है?
नदी बहती रहती है। दुबारा उसी जलधार को हम नहीं स्पर्श कर सकते। हमें यह मानना और समझना होगा कि रिश्ते और शब्द दोनों ही संदर्भ बदलते ही मायने बदल लिया करते हैं। रिश्ते शायद हमेशा स्थाई भी तो नहीं होते। इसमें भी बाज़ार की तरह भाव चढ़ते और उतरते रहते हैं।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...