Monday, January 15, 2018

बिसुरते हुए रिश्तों को बचाया जाए

अन्यथा न लेंगे...साझा कर रहा हूं
कौशलेंद्र प्रपन्न
इन दिनों एक बात मुझे परेशान रही है। बल्कि समझने के लिए आपके सामने यह मसला रख रहा हूं। मसला सामान्य और पेचीदा दोनों ही है। हमने अपने बचपन से देखा है कि हम और हमारे बच्चे मामा, मामीख् नाना नानी, मौसा मौसी के घर जाना चाहते हैं। उन्हें वहीं ज़्यादा मजा आया करता है।
चाचा चाची, बुआ फुफा के घर बच्चे कम ही जाते हैं। ताउ जी भी हुआ करते थे। उनका घर भी अब सूना रहता है। कुछ से बात की कि क्या मामला है। तो जवाब दिया कि कई बार पैसे और आर्थिकी प़ा भी काम करता है। यदि मामा-मामी का पक्ष पैसे वाला है तो वहां बच्चों को गिफ्टख् मजा मस्ती ज़्यादा होती है। ख्ुल कर उन पर पैसे किए जाते हैं। यदि चाचा चाची, दादा दादीख् ताउ कमतर हुए तो बच्चे वहां जाना कम पसंद करते हैं।
इन रिश्तों का एक डोर यह भी है कि यदि पापा को लगता है कि भाइयों के पास जाने पर और भी मुश्किलें आ जाएंगी। कोई पूछ बैठेगा और कैसा चल रहा है। फलां जगह घूमने गए थे। बहुत पैसे हैं कुछ हमारी भी मदद कर दे। आदि इन सवालों से बचते हुए पापा भाइयों बहनों के पास जाने से बचते हैं।
कहीं पढ़ा था पाकिस्तान की लेखिका हैं सबूहा ख़ान उन्होंने लिखा है कि कई बार हमें अपनी कामयाबी को खुद ही छुपाना पड़ता है। कहीं कोई और उसमें हिस्सा मांगने न आ जाए। शायद यह भी डर है कि भाई लोग बहनों के यहां जाने की बजाए सालियों के यहां जाना ज़्यादा पसंद करते हैं।
मुझे अपने पिताजी याद आते हैं वो स्वयं अपनी बहनों के यहां जाया करते थे और हमें भी छुट्टियों में लेजाया करते थे। गरमियों की छुट्टियों में बुआ खुद भी कई बार हमारे घर आ जाया करती थीं। मामी भी आती थीं। मजा हमें दोनों के ही आने में आता था। मामी जब जाया करती थीं या हम जब मामी के यहां से बिदा होते थे तो पांच रुपए हाथ में पकड़ाया करती थीं। वैसे बुआ भी पांच रुपए और दस रुपए हाथ में थमा देती थीं। आज भी मामी बिदाई पर दस रुपए और पचास रुपए पड़काती हैं। मना करने पर कहती हैं रख लीजिए। मालूम है आप अब कमाने लगे हैं। ये तो मामी का प्यार है।
मामी और बुआ के बच्चे बड़े हो गए। सब के सब अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त हैं। कौन कहां हैं अब तो वर्षों मुलाकात नहीं होती। मां-पिताजी जिं़दा हैं और वे रिश्ते अभी भी सांसें ले रही हैं। लेकिन साफ दिखाई देता है कि इनके जाने के बाद हमारी पीढ़ी न तो मिलने जा रही है और न न्योता पेहानी ही होने वाला है। काश कि हम इन बिसुरते हुए रिश्तों को बचा पाएं। 

1 comment:

Neha Goswami said...

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