Friday, January 19, 2018

प्रद्युम्न के बाद...यानी मारा गया बच्चा




कौशलेंद्र प्रपन्न
प्रद्युम्न के बाद एक और बच्चे की जान चली गई। स्थान भी स्कूल और हत्या करने वाला भी बच्चा। दोनां ही घटनाओं में एक साम्यता है। वो है स्कूल,शिक्षा और बच्चे। दोनों की मनोदशा को पढ़ने की आवश्कता है। क्यों आख़िर बच्चे इतने हिंसक और आक्रामक होते जा रहे हैं। क्यों बच्चों में भी धैर्य और सहनशक्ति की कमी होती जा रही है। वो कौन सी स्थितियां हैं जब बच्चे हिंसक हो जाते हैं। कब बच्चे अपना धैर्य खो बैठते हैं।
पिछले साल मैचेस्ट विश्वविद्यालय में एक रिसर्च पेपर पढ़ा गया जिसमें इन्हीं मसलों का ज़िक्र है। बच्चे जब स्क्रीन पर ज़्यादा वक़्त ज़ाया करते हैं तब उनके अंदर हिंसा, अकेलापन, तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारियां पैदा होने लगती हैं। इस बीमारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गेमिंग िउस्ऑडर का नाम दिया है।
स्क्रीन एडिक्शन यानी लत। लगातार फोन, टीवी, टेबलेट्स, आई पैड आदि के स्क्रीन पर बच्चे वक़्त गुज़ारते हैं। ऐसे बच्चों में आक्रामक व्यवहार, अनिद्रा के शिकार, ध्यान की कमी, आत्मकेंद्रीकरण आदि पनपने लगती हैं। दूसरे शब्दों में इस बीमारी को इंशोमेनिया कहा गया है।
हाल की दो घटनाएं यहां साझा करूंगा। पहला एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के दौरान एक दो साल की बच्ची को लगातार आइपैउ में आंखें गड़ाए देखा जो तकरीबन एक से डेढ घंटे का वक़्त रहा होगा। कइ्र बार लगा बच्ची सो रही है। लेकिन ऐसा नहीं था। उसकी मां ने बताया ये जगी हुई है। और यदि इससे आईपैड लेने की कोशिश करूं तो रेने लगती है। चिल्लाने लगती है। यह तो लक्षण बता रही थीं जिसका ज़िक्र मैंने उक्त पैरा में किया। दूसरी घटना एक अस्पताल में साथ बैठी महिला कही बच्ची को देखा। वो फोन में लगातार गाने, गेम्स खेल रही थी। जैसे ही कोई फोन आया उसने उसे काट दिया और अपना खेल ज़ारी रखी। उसकी मां ने बताया ये स्वयं यू ट्यूब पर गाने, कविता, कॉटून आदि देख और खोल लेती है। इस बताने में एक गर्व का दर्प उनके चेहरे पर तारी हो रहा था।
उन्हें नहीं मालूम कि ऐसे बच्चों में भाषा और गणित सीखने की क्षमता धीरे धीरे कम होने लगती है। यह भी उस रिपोर्ट में लिखा गया है जो मैनचेस्ट विश्वविद्यालय में पढ़ी गई थी।
अब तय हमें करना है कि हम बच्चोंं को खुद की आजादी के लिए उन्हें गेम्स और स्क्रीन डिजिज दे रहे हैं या उनका बचपन और आयु ख़राब करने की ठान ली है।

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