Thursday, January 11, 2018

लब पे आती है बन तमन्ना मेरी मत गाना लड्डो



कौशलेंद्र प्रपन्न
‘‘दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना, हमारा धर्म हो सेवा हमारा कर्म हो सेवा। वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना। बहा दो प्रेम की गंगा, दिलों में प्रेम का सागर। सदा ईमान हो सेवा’’ आदि। इन पंक्तियों पर कुछ लोगों का एतराज़ है कि इन पंक्तियों से ख़ास लोगों, धर्म, संप्रदाय आदि का बढ़ाया जा रहा है और नास्तिक व अन्य धर्मां की भावना आहत हो रही है इसलिए इस प्रार्थना को हटा देना चाहिए। हाल ही में मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाख़िल की थी। इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने सरकार से चार हप्ते में जवाब देने को कहा गया है।इस विवाद के केंद्र में हैकेंद्रीय विद्यालय संगठन के तमाम स्कूल जहां यह प्रार्थना गाई जाती है।इस प्रार्थना को आज से नहीं बल्कि पिछले पचास वर्षों से केंद्रीय विद्यालयों के स्कूलों में सुबह की प्रार्थना सभा में शामिल की गई है।पहली नज़र में इन पंक्तियों में कोई विवाद या मतविभिन्नता नज़र नहीं आती। बल्कि पूरी प्रार्थना में ऐसी कोई पंक्ति व भावनाएं ऐसी नहीं हैंजिन्हें सुन व बोल कर किसी और धर्म व संप्रदाय की भावना आहत होती हो। देश सेवा व देश की रक्षा में हर नागरिक की जिम्मेदारी और भूमिका सुनिश्चित है।कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि देश की रक्षा करना व रक्षा करने के भावना को प्रकट करना ग़लत है।इस प्रार्थना में प्रभू व अल्ला से इसी भावना को मज़बूत करने कि इच्छा प्रकट की गई हैकि मेरे अंदर देश प्रेम और देश की रक्षा के लिए हम पीछे न हटे। अब सोचने की बात यह हो सकती हैकि यह भावना किसी भी धर्म,संप्रदाय के मानने वाले हों यदि वे भारत में रह रहे हैंतो उस देश की रक्षा हो। उसपर किसी भी प्रकार की विपदा या असुरक्षा न हो क्या यह कामना करना ग़लत नहीं है।वह चाहे किसी भी संप्रदाय व जाति, धर्म के हों यदि भारत में हैं तो उसकी रक्षा प्रथम है।देश सुरक्षित नहीं तो उसके नागरिक क्या सुरक्षित रह पाएंगे?
प्रार्थना के अंत में वेद की पंक्तियों का प्रयोग किया गया हैजो शांतिपाठ के रूप में प्रयोग किया गया है।यदि हमें वेद की ऋचाओं से गुरेज़ हैतो परमवीर चक्र में लिखित दधीच की रीढ़ की हड्डी के प्रतीक को भी निकाल बाहर करना होगा। हमें तो अशोक चक्र में उल्लिखित सत्यमेव जयते वाक्य पर भी एतराज़ जतलाना होगा। हमें एक और पीआइएल डालने होंगे कि इन पंक्तियों को हटा देना चाहिए। क्योंकि इनमें वेद व उपनिषद् से मंत्रों के अंश लिए गए हैं। क्योंकि इससे किसी और धर्म, संप्रदाय के लोगों की उपस्थिति नहीं है।दूसरा गंभीर मसला यह भी हैकि क्या हम महज विरोध और विवाद को हवा देने के लिए तर्कों का सहारा ले रहे हैं या हमारा मकसद वृहद फलक को ठीक करना है।आज न केवल यह प्रार्थना विवाद में आया हैबल्कि हाल ही में राष्ट्रगान पर भी न्यायालय ने आदेश दिए हैंकि सरकार तय करे कि नागरिक सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान के वक्त खडे हों या नहीं।

1 comment:

Unknown said...

काश हर धर्म एक ही प्रार्थना गाये और देश एकता के सूत्र में बंध जाये

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