Thursday, December 31, 2015

हिन्दी शिक्षक-शिक्षण कार्यशालाओं का सफ़र





कौशलेंद्र प्रपन्न
इस वर्ष के अकादमिक सत्र में मैंने तकरीबन 50 यानी तीन दिवसीय 150 दिन हिन्दी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया। इन कार्यशालाओं में मैंने तकरीबन 550 से ज्यादा शिक्षकों को हिन्दी पढ़ाने की तौर तरीकों और बारीकियों पर दक्ष किया।
पूर्वी दिल्ल नगर निगम के प्राथमिक शिक्षकों के साथ ही लुधियाना,नीमराण़्ाा, जोधपुर आदि जगहों पर तीन दिवसीय कार्यशालाओं के दौरान पाया कि हिन्दी शिक्षण में हमारे शिक्षक सक्षम नहीं हैं। आज भी हमारी हिन्दी पुरानी शैली और तरीकों के मार्फत ही पढ़ाई जा रही है। वही वर्णमालाओं को रटवाना, परिचय देना, वाक्य निर्माण के शुष्क तरीकों के जरिए शिक्षक पढ़ा रहे हैं। इन्होंने हिन्दी की कक्षा और स्वयं को नए तकनीक से नहीं जोड़ा। और तो और इन्होंने अपनी शिक्षकीय कौशलों मंे बहुत विकास किया है।
जहां तक गतिविधियों के जरिए हिन्दी पढ़ाने की बात है तो वहां हमारे शिक्षकों के अनुभव खाली ही हैं। किस प्रकार हिन्दी शिक्षण को कक्षाओं में रोचक बनाएं इसको लेकर शिक्षकों में एक लंबी उदासीनता दिखाई देती है। जबकि हमारा समाज बदला है। हमारे जीने और चीजों को समझने के नजरिए में भी तब्दीली आई है लेकिन जो कुछ अभी भी वही चल रहा है वह है सूर तुलसीख् कबीर को पढ़ाने का ढर्रा।
हिन्दी को कैसे रोचक ढंग से पढ़ाएं ताकि को बच्चो को हिन्दी लुभाए इस ओर हमारे शिक्षक अभी पीछे हैं। हालांकि यह कहना सतही होगा किन्तु हकीकत यही है कि हिन्दी के शिक्षक अभी भी अपने अतीत में जी और सीखने की परंपरा में ही सांसें ले रहे हैं।
शिक्षण एक कौशल है इससे किसे गुरेज हो सकता है। यदि शिक्षण कौशल और दक्षता है तो उसे हासिल भी किया जा सकता है। इसकी तालीम हमारे शिक्षकों को सेवापूर्व शिक्षक प्रशिक्षक संस्थानों मंे दी जाती रही हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि उन संस्थानों मंे भी अभी भी पुराने तरीके से ही बच्चों और हिन्दी को देखने की आदत है। यही वजह है कि नए नए प्रशिक्षण हासिल शिक्षकांे मंे तो उत्साह देख्ेा जाते हैं लेकिन जैसे जैसे पुराने होते जाते हैं वैसे वैसे अपने पुराने सहयोगियों के रास्ते चलने लगते हैं। जिन कमियों और खामियों को लेकर नए शिक्षक आ रहे हैं उन्हें किसी ने दुरुस्त नहीं किया गया। यही कारण है कि वर्तनी की गलतियां, वाक्यों के निर्माण आदि बारीक बातों मंे हमारे शिक्षक विफल होते हैं। उदाहरण के तौर पर जब मैंने इन कक्षाओं में प्रतिभागियों से श्रुत लेख लिखवाए तो इक्कीस शब्दों मंे से बारह, पंद्रह शब्द से आगे नहीं बढ़ पाए। अशुद्धियां काफी थीं। महज तीन प्रतिशत शिक्षकों ने ही अठारह का आंकड़ा पार कर पाए। यह बतलाता है कि किस तरह से श्रुत लेखक लिखवाने और शब्दों के लेखन परंपरा खत्म होती चली गई। लेखन,वाचन और श्रवण इन तीनांे ही स्तरों पर शिक्षकों की दक्षता बढ़ाने की जरूरत महसूस की गई।
अब यदि कहानी- कविता पढ़ाने की शैली में भी रोचकाता की कमी पाई गई। आज भी अधिकांश शिक्षक पुराने ही तरीके से कहानी को पढ़ और पढ़ाने का काम कर रहे हैं। तू पढ़ा की शैली में बच्चे कितना सीखते हैं यह किसी से भी छूपा नहीं है। इन्हें कहानी पढ़ाने, कविता के उच्चारण पर खासा मेहनत करनी पड़ी। जब उन्होंने स्वयं कार्यशाला के बाद कहा कि सर आपने जिस तरीके से कहानी व कविता पढ़ाई उसमें आनंद आ गया। हमने कभी ऐसे नहीं पढ़ाया। तब मेरा जवाब होता था कि आपकी कक्षा के बच्चे भी जब इसी जोश के साथ आपको आपकी शिक्षण पर टिप्पणियां दें इसकी उम्मीद और प्रयास करने चाहिए।
मैंने इन तमाम विभिन्न परिवेश और स्थान के शिक्षकों के साथ कार्यशालाओं के दौरान सीखा कि अभी भी हिन्दी पढ़ाने में हमारे शिक्षकों को काफी दिक्कतें आती हैं। उन्हें हिन्दी पढ़ाने और पढ़ने के आनंद से दूर रखा गया है। कितना अच्छा होता कि उन्हें पढ़ाने और पढ़ाने के कर्म में ही इस्तमाल किया जाता।
आगामी वर्ष मंे मैंने भी योजना बनाई है कि हिन्दी शिक्षण और शिक्षका को कैसे पढ़ने के प्रति आकर्षण पैदा कर सकूं। किस तरह से और गतिविधियां इन्हें मदद कर सकती हैं इसपर काम किया जाए। हिन्दी दरअसल इन्हीं प्राथमिक शिक्षकों के कंधे पर आगे बढ़ेगी। महज सम्मेलन, पुरस्कार, मेलों के जरिए हिन्दी न तो दुरुस्त होगी और न आगे पढ़ी और पढ़ाई जाएगी।
कविता को पढ़ाने के तौर तरीकों को लेकर बहुत बड़ी समस्या है। कविताएं अपने आप में एक अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है यदि हमारे शिक्ष कइस कला को सीख लें तो भाषा शिक्षण और कविता शिक्षण में कोई खास दिक्कतें नहीं आएंगी। कविता विधा को पढ़ाने और पढ़ने के तौर तरीकों पर चर्चा की। कविता कैसे लिखी जाए और कविता का वाचन कैसे किया जाए इस पर सत्र में विस्तार पर विमर्श किया गया। कविता को पढ़ाने के दौरान किस प्रकार की बारीकियों को ध्यान मंे रखा जाए इस ओर भी कार्य किया गया। कविता शिक्षण और कविता लेखन के कौशल के साथ ही कविता वाचन के कौशलों पर विस्तार से विमर्श किया गया। कविता का पाठ कैसे करें और कविता शिक्षण में थिएटर को कैसे शामिल करें इसपर चर्चा हुई।





No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...