Wednesday, December 9, 2015

बच्चों से बिछुड़ने का दर्द


शिक्षकों से बातचीत करते हुए एक ऐसी तार झंकृत हो गई। जिसकी चर्चा करने के लोभ से खुद को नहीं रोक पा रहा हूं। प्राथमिक कक्षाओं मंे पढ़ाने वाले तकरीबन बीच शिक्षक/शिक्षिकाओं के समूह में बातचीत के दौरान यह निकल कर आया कि हमंे एक कक्षा यानी बच्चों को पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक लेकर जाना होता है। कई बार लगता है बच्चों को हमारी हर चालें, आदतें और शैली से परिचय मिल जाता है। वे जानने लगते हैं कि शिक्षक की क्या प्रक्रिया किस घटना पर क्या होगी। सर कैसे रिएक्ट करेंगे आदि। ठीक वैसे ही हमंे भी हर बच्चे की व्यक्तिगत और व्यावहारिक कमियों के बारे में भी बखूबी समझ बन जाती है।
कई बार कोफ़्त होती है कि क्या बला है? एक ही कक्षा को पांच साल तक आगे ले जाना होता है। कोई नया नहीं। कोई उत्साह नहीं। लेकिन दूसरे समूह की शिक्षिकाओं ने इस प्रतिक्रिया विरोध किया। एक शिक्षिका ने कहा हमंे चैथी कक्षा से ही एक डर और चिंता सताने लगती है कि बच्चे एक साल के बाद जाने कहां चले जाएंगे। न जाने कौन इन्हें पढ़ाएंगा। मैं तो इन बच्चांे को अच्छे से समझती हूं लेकिन जिनके पास ये जाएंगे क्या वे हमारी ही लगाव से इन्हें पढ़ाएंगे? आदि। जब पांचवीं कक्षा के छः माह गुजर जाते हैं फिर इनकी विदाई की ंिचता मुझे सताने लगती है। इसपर अमूमन शिक्षकों की सहमति बनी। कई शिक्षकों ने कहा यह तो अच्छा अवसर मिलता है कि एक बच्चे को पांच सालों मंे बेहतर इंसान बना सकते हैं। लेकिन कई बार गैर सरकारी कामों का बोझ इतना होता है कि हम पढ़ा भी नहीं पाते।

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