Monday, December 14, 2015

कविता ऐसे पढ़ाएं


कविता को पढ़ाने का अपना अलग तौर तरीका होता है। जो औजार कहानी और भाषा पढ़ाने में इस्तमाल की जा सकती है वही औजार कविता मंे अप्रासंगिक हो सकती है। कविता पढ़ाने के दौरान शिक्षकों से अपेक्षा होती है कि शिक्षक को स्वयं कविता आनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि शिक्षक को कविता याद हो। जो कविता कक्षा में पढ़ाना है वह उन्हें याद हो। ताकि शिक्षण के दौरान किताब न देखनी पड़े। क्योंकि जैसे ही नजरें किताब मंे होती हैं कविता का एक प्रमुख अंग भाव भंगिमा अधूरी रह जाती है। कविता को शिक्षक केवल उच्चारण भर कर देने से नहीं पढ़ा सकता। बल्कि कविता पढ़ाते वक्त पूरी मौखिक मुद्राएं प्रयोग में आनी चाहिए। हालांकि यहां यह सवाल उठ सकता है कि क्या सभी कविताओं के वाचन में भाव भंगिमाएं जरूरी हैं? क्या हर कविता को गायी ही जाए? क्या हर कविता को पढ़ाते वक्त नाटकीयता जरूरी है आदि। इस सवाल का जवाब यही होगा कि नहीं हर कविता शिक्षण मंे जरूरी नहीं है किन्तु कविता शिक्षण मंे भावभंगिमा का खासा महत्व है। वरना शब्द और कविताएं अकाल मौत के शिकार हो जाती हैं। संभावना इस बात की भी होती है कि कवित अपनी पूरी यष्टि के साथ श्रोता तक न पहुंच पाए।
कविता शिक्षण में वाचन शैली और अभिनय शैली का बड़ा महत्व है। शब्दों और वाक्यांे का वाचन किस स्वर और घात-बलाघात के साथ करना है इसको ध्यान में रखना चाहिए। यदि वीर रस की कविता है तो उसके हर शब्द में एक हुंकार और ओज लाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी कविताओं मंे शब्दों का उच्चारण उच्च होता है। जैसे ‘ख्ूाब लड़ी मर्दानी वो तो झंासी वाली रानी थी।’ इसे पढ़ाते वक्त शिक्षक के हाथ, भावी मुद्रा आक्रामक और तेज हों। वहीं हवा हूं हवा मैं बसंती हवा हूं कविता पढ़ानी हो तो यहां शब्द कोमल है नरम हैं इसे ख्याल रखते हुए वाचन करना और करना चाहिए।
कविता जिस रस की है उसे उसी रसानुसार पढ़ाने से कविता बच्चों तक पहुंच सकती है। वरना वह कविता महज वाचन ही हो कर रह जाएगी। पाया गया है कि कइ्र बार शिक्षक स्वयं कविता के वाचन में दक्ष नहीं होते इसलिए कक्षा में वे मौन वाचन किया करते हैं। ऐसे में शिक्षकों को स्वयं सीखने की आवश्यकता है कि कविता को कैसे पढ़ें और शब्दों का उच्चारण स्पष्ट कैसे करें।

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