Friday, December 18, 2015

कहानी तुम बढ़ती रहना


कहानी क्या है? कैसे लिखी जाती है कहानियां? क्या मैं कहानी लिख सकता हूं/लिख सकती हूं? ऐसे सवाल अकसर पूछे जाते हैं। और इसका जवाब भी तकरबन एक सा ही हुआ करता है। हां क्यों नहीं। कभी कहानी लिखी है? क्या आपने कहानियां पढ़ी हैं आदि। उसपर जवाब आता है हां पढ़ी तो है लेकिन लिख नहीं पाता। पढ़ना अलग चीज है और अपनी आपबीती लिखना और उस पर पाठकों को पसंद आए यह एक चुनौती है। लेकिन हर कोई कहानी तो कहता ही है। बच्चा हो या बड़ा अपने जीवन में कहानियां तो जरूर बुनी होंगी। कहानी बुनने में बच्चों की कोई सानी नहीं। बच्चों को यदि अवसर दी जाए तो बच्चे बेहतरीन कहानियां बनाते है। बस उन्हें इसके लिए समय दिया जाए। बड़े भी कहानियां बनाते हैं लेकिन इनकी कहानियों मंे वो ताजापन और टटकापन नहीं होता। वे पढ़ी हुई या इस दुनिया की चालाकियों भरी कहानियां लिख दिया करते हैं। सच्चे अर्थाें में पूछा जाए तो कहानियां लिखी नहीं जातीं बल्कि कहानियां तो बैठ कर सुनने और सुनाने की चीज होती है। कहानियां कहना भी अपने आप मंे अनूठा कौशल है। जो इस कौश मंे दक्ष है उनसे कहानी सुनने का आनंद ही कुछ और है। किस्सागो की अपनी जमात है जो घूम घूम कर कहानियां सुनाया करती हैं।
भारत में भी कहानियां सुनने और सुनानेवालों की एक लंबी कड़ी है। गांव देहात मंे आज भी लंबी लंब कहानियां सुनाने वाले मिल जाएंगे। जो शाम ढलते ही दलान में हुक्का और चाय के साथ कहानियों का दौर चलाते हैं। किसान दिन भर की थकन को कहानियों मंे घोलकर थकान उतारते हैं। यह अलग बात है कि अब की कहानियां और उन कहानियों के कथानक में बहुत तेजी से बदलाव देखे जा सकते है। अब की कहानियां नए तेवर के साथ लिखी और सुनाई जा रही हैं। हाल ही में बिहार के दूर दराज़ इलाके के एक सज्जन ने कहा कि अरे यार कहां रहते हो। चिट्ठी पतरी छोड़ो वाट्सएप पर फोटो भेजो। किस जामने में रहते हो। स्मार्ट फोन नहीं है तो उधार ले लो। कहानी यहां से शुरू होती है। आज गांव गांव के बच्चे भी फोटो शेयर, फेसबुक पर फोटो डालने लगे हैं।
कभी चचा हुआ करते थे जो चिट्ठी लिखा करते थे। पूरे दिन डाकिए का इंतजार किया करते थे। लेकिन अब डाकिया भी कभी कभार ही नजर आया करता है। सो इंटरनेट सेंटरनेट पर अपने लिए अपनी कहानी खुद ही गढ़नी पड़ती है। रेाज दिन नई कहानी, नए पात्रों को जगाना होता है। नई कहानी लिखनी होती है।
आज की कहानियां संदर्भों को बदल चुकी हैं। कहानियों की भूमि भी तब्दील हो चुकी है। नए जामने के नए कथानकों वाले कथाकार हैं। जो लप्रेक लिखा करते हैं। यानी लघु प्रेम कथाएं। प्रेम भला लघु हुआ करती हैं। प्रेम की आयु तो दीर्घ होती है। लेकिन वक्त किसके पास है जो लंबी कहानी पढ़े और सुने। सेा कहानियों की काया भी सिमट कर एकहरी हो गई है। सामाजिक टूटन, बिछोह, सन्नाटा और संत्रास ज्यादा है। इसलिए कई बार मोहन राकेश लिखित आधे अधूरे नाटक के पात्र साफ नजर आते हैं। हर कोई जुनेजा, तनेजा,वर्मा में अपनी पूर्ण तमन्ना देखा करता है।

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