Wednesday, December 2, 2015

शिक्षक कहते कहते रोने लगे




जब शिक्षक विभिन्न तरह के सर्वेक्षण के दौरान घर घर जाते हैं तब उनके साथ कैसे पेश आते हैं उन घटनाओं को याद शिक्षक रोने लगे। अवसर था हिन्दी में कहानी शिक्षण कार्यशाला का। श्री पंकज चतुर्वेदी पत्रकार,लेखक एवं संपादक इस सत्र में विशिष्ट वक्ता थे। उन्होंने बड़ी ही शिद्दत से शिक्षकों के बीच कहानी पढ़ाने के तौर तरीकों पर बातचीत की।
कहानी कैसी हो? कहानी कहने का तरीका कैसा हो? आदि सवालों को उन्होंने गतिविधियों के जरिए जवाब दिया। एक कहानी में क्या क्या हों? संवाद हो। रोचकता हो। उत्सुकता हो और एक गति की वकालत पंकज ने अपने सत्र में कहा।
दूसरा कालांश था अपने जीवन की ऐसी घटना सुनाएं जिसने आपको प्रभावित किया हो। तब शिक्षकों ने बताया कि जब सर्वे के लिए घरों मंे जाते हैं तब उनके साथ जैसा बर्ताव होता है कई बार लगता है कि वे भीख मांगने आए हैं। कोई भी उनसे इज्जत से बात नहीं करता। दुरदुरा कर आगे जाने को कह दिया जाता है।
शिक्षकों ने बताया कि कहानी तो ठीक है मगर हम स्वयं कहानी बन कर रह गए हैं। बच्चे पास हो कर चले जाते हैं जब कभी इच्छा हुई और आ कर मिलते हैं और कहते हैं मैम आने पढ़ाया था आज मैं फलां फलां जगह हूं। तब लगता है कि हमारा ही बच्चा पास हुआ है।
शिक्षक दरअसल एक अविश्वास के दौर से गुजर रहे हैं। सबसे ज्यादा अविश्वास शिक्षकों पर किया जा रहा है। बोलने में भी कहा जाता है कि इतनी सैलरी लेते हैं और पढ़ाते कुछ नहीं हैं। तब शिक्षकों को झेप का सामना करना पड़ता है। क्योंकि एक दो शिक्षकों की वजह से बाकी मेहनती शिक्षकों को भी इस तोहमत का शिकार होना पड़ता है।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...