Friday, December 11, 2015

रिश्तों के पायदान पर

गठबंधन
इन दिनांे लगा हूं समझने में
रिश्तों का समीकरण
रिश्तों की फुसफुसाहट
गठबंधन संबंधों का।
धीमे कदमों से चलता हूं
रिश्तों के पायदान पर
फिर कुछ आहटें
कुछ सिसकन
आ ही जाती है पावों तले।
बहुत तेजी से सिमट रही है दुनिया रिश्तों की
अमरिका और ताकतवर पड़ोसियेां की बीच के फासले पतली हो रही है
एक ही धरती पर खड़े हो रहे हैं शक्तिमान देश
मेरे परदेसी।
घर में ही बन रहा है टापू
नव खे कर मिलते हैं
पूछते हैं कैसे हो
चल रही है कैसी जिंदगी?
पूछ नहीं रहे
बता रहे हैं अंतर को समझ रहा हूं इन दिनों।
कितनी रफ्तार है
बदलते रिश्ते के मायने का पकड़ना मुश्किल लगता है
एक सूत्र पकड़ता हूं तो दूसरा
छिटक जाता है
जब तक पहली गुत्थी सुलझता हूं
कि तब तलक दूसरा उलाहने देने लगता है।
घर समाज से बाहर नजर नहीं आता
व्ही सारी चालें
तिकड़में
देख रहा हूं
आंगन में
उसे मनाओ
तो दूसरा रूस जाता है।
इन दिनों रिश्तों की बंदिशें सुन रहा हूं
सुन रहा हूं दबे पांव
कुचली जाती संवेदना
चिटकती उष्मा
जो लगाई थी मां
हम सब की मतारी
वह चूल्हा बुझ सा रहा है
कहने को आंगन खुशगवार है
कहने को नन्हीं पायल आज भी बज रहा है
लेकिन कान बदल गए।
इन दिनों रिश्तों के संतुलन को बनाने में लगा हूं
लगा हूं ताकत को तौलने में
कब कौन गठबंधन आकार ले ले
किसका पलड़ा भारी हो जाए
कौन किसे अपने खेमे से बेदखल कर दे।

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