Wednesday, January 16, 2019

सवाल बहादुर



कौशलेंद्र प्रपन्न
हाल ही में एक शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला में अनुभव हुआ। साहब सवाल पर सवाल दागें जा रहे थे। सवालां की प्रकृति का जब विश्लेषण किया तो मालूम चला दरअसल वो सवालों के मार्फत मेरी इल्म और ज्ञान का थाह लगाना चाह रहे हैं। साथ ही यह स्थापित करना चाह रहे हैं कि वो सब कुछ जानते हैंं। और जो बताया जा रहा है कि वह ग़लत और उनके स्तर का नहीं है। इसे साबित करने में पूरी ताकत झांक रहे थे। बीच बीच में अपनी नकारात्मक मुंडी भी संचालित कर रहे थे। उन्हें स्थापित करना था कि उन्हें सब कुछ आता है। और बेहतर आता है। जो भी बताया जा रहा है वह तुच्छ है। उन्हें तो आता ही है और अच्छे से आता हैं।
उन्होंने सत्र को न चलने देने का प्रण ले रखा था। बार बार कहते कि आप ऐसा क्यों बता रहे हैं, कैसे बता रहे हैं, यह तो ऐसे होता है। वैसे होते है आदि आदि। उन्होंने उस कार्यशाला में अन्य सहभागी को भी अपने इस अभियान में शामिल किया। और लिख और बोलकर किसी भी सूरत में सत्र को आगे कैसे नहीं चलने देना है इसमें अपनी पूरी क्षमता लगा रहे थे।
मैंने उन्हें सम्मान देते हुए सत्र में खड़ा किया आप जो कॉपी पर लिख और बोल रहे हैं अपनी राय यहां सब के सामने रखें तो सबको समझने में आसानी होगी। जनाब बोर्ड़ के समक्ष आए और पूर्व ज्ञान के आधार पर लिखने लगे। बोलने लगे और अपने ज्ञान को स्थापित करने लगे। सत्र में शामिल अन्य लोग या तो अरूचि के शिकार होने लगे या फिर उन्हें लगने लगा वो जो पढ़ा रहे हैं वह सत्यापित है।
मैंने उन्हें लगभग पंद्रह मिनट दिया। लेकिन जब लगने लगा कि ये साहब सिर्फ और सिर्फ आत्मपहचान स्थापित करना चाहते हैं। तब मैंने उन्हें रोका और बोला कि अब और मैं अपने अन्य प्रतिभागियों को खो नहीं सकता। और क्योंकि मैं इस कार्यशाला का जिम्मेदार हूं तो मेरी कुछ योजनाएं हैं जिन्हें मैं बीच रास्ते में दम तोड़ते नहीं देख सकता। सो आप बैठ जाएं और मेरे कंटेंट को आगे बढ़ने दें।
लेकिन वो साहब थे कि अपनी आदत से बाज़ नहीं आ रहे थे।  अंत में कोशिश की कि वो मान जाएं। किन्तु आदतें ऐसे एक दिन में कहां जाती हैं। वो जारी रहे। मैंने में अंत में उन्हें कक्षा से बाहर किया। हालांकि ऐसा करना नहीं चाहता था लेकिन अन्य के हित को ध्यान में रखते हुए उन्हें निवेदन किया और शायद मैं आपकी अपेक्षा और उम्मीद से नीचे हूं सो आप को यदि लगता है कि मेरा कंटेंट आपके स्तर का नहीं है ता आप कक्षा से बाहर जा सकते हैं।
जबकि यह समाधान मुझे अन्य प्रतिभागियों के हित में लेना पड़ा। ऐसे आत्मप्रचार वाले लोग हुआ करते हैं। उनके अनुसार यदि आपने सत्र को बहने दिया तो आपकी योजना और गतिविधियां राह में ही दम तोड़ देती हैं। सवाल पूछना और पूछने के मकसद को को पहचानना चाहिए। और सत्र को हाईजेक होने और आत्मप्रचार से बचाने की आवश्यकता होती है।

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