Sunday, January 20, 2019

मुश्किल में कौन साथ है पहचान ज़रूरी



कौशलेंद्र प्रपन्न
संस्कृत साहित्य में एक मंत्र है ‘‘संकट में तीन लोगों की पहचान होती है पत्नी, दोस्त’’ और तीसरी मुझे याद नहीं आ रहा है। यह बात काफी हद तक जायद भी है। सचमुच मुश्किल घड़ी में ही इन लोगों की पहचान होती है। पत्नी और दोस्त की। यदि कोई संकट की घड़ी आए तो ऐसी स्थिति में पत्नी और दोस्तों की पहचान होती है। यदि कोई मुश्किल स्थिति आती है और यदि ये लोग साथ नहीं देते तो दोस्तों की पहचान हो जाती है। इसमें न केवल दोस्तों की बल्कि पत्नी की भी पहचान होती है।
जीवन ही है। इसी जीवन में हर बार एक ही स्थिति नहीं होती। बल्कि कभी भी ऐसी स्थिति आ सकती है। जब आप होस्पीटल में होते हैं तब कौन आपके साथ खड़ा है? यह पहचान आपकी होनी चाहिए। पत्नी क्योंकि आपकी है तो वो तो होस्पीटल में होगी ही। किन्तु दोस्तों में से कौन अस्पताल में आता है इसकी पहचान करनी होगी। जो लोग फोन पर पूछते हैं कि ‘‘कोई मदद की ज़रूरत हो तो बताना।’’ लेकिन वो कहने के लिए कह रहे हैं इसे समझिए।
यदि रात में रूकना हो तो शायद उन दोस्तों और परिचितों में से काफी लोग पीछे हट सकते हैं। इन्हीं वक़्तों में पहचान होती है। जब आपके दोस्त या परिवार के लोग आपके साथ अस्पताल में नहीं रूकते  तभी आपको लगता है आप, बिल्कुल अकेले हैं। आपके साथ कोई नहीं है। आप निपट अकेले हैं। कोई आपके साथ नहीं है। पत्नी है तो उसकी अपनी सीमाएं हैं। मगर जो लोग दोस्त होने का दंभ भरते हैं उन्हें पहचानने की जरूरत है।
जब भी हम संकट में होते हैं हमें कई सारे लोग याद आते हैं। हमें लगता है ये सारे लोग हमारे साथ हैं। लेकिन हक़ीकतन ऐसा नहीं होता। हर कोई बस फूल फल लेकर आते हैं। लेकिन जब वास्तव में डिस्चार्ज के वक़्त ज़रूरत पड़ती है तब हम अकेला होते हैं। यह स्थिति बड़ी भयावह है। मुझे याद आता है, मेरे पड़ोस के चचा जी आए और कहा मैंन स्टेशन छोड़ने चलूंगा। और उन्होंने इसे निभाया। उनकी उम्र नब्बे पार की है। तब लगा हम कैसे समय में जी रहे हैं।

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