Tuesday, January 8, 2019

असफलता के डर से आगे


कौशलेंद्र प्रपन्न
निवेश सिर्फ रुपए पैसों का ही नहीं होता। और न केवल जमीन जायदाद का। बल्कि डर भी निवेश करने योग्य ऐसी भाव दशा है जिसपर खुल कर और समझकर निवेश किया जा सकता है। मौत से कौन नहीं डरता। सभी को मरने से डर लगता है। यही वजह है कि मरने को कैसे टाला जा सकता है कुछ देर के लिए ही सही पूरा का पूरा बाजार इसे साकार करने में लगा है। पहले डर को बढ़ाएं और इतना बढ़ाएं कि लोग उस डर से छूटकारा पाने के लिए आपके पास आएं। शिक्षा और परीक्षा को पहले डरवानी साबित किया जाए और फिर एक्जाम डर से कैसे बचें आपके बच्चे इसके लिए वर्कशॉप उपलब्ध कराने वाली दुकानें खुली हुई हैं। जो परीक्षा के भय से कैसे बचा जाए इसके मंत्र सीखाया करते हैं। ठीक उसी तरह कई तरह के डर हमें हमेशा अपनी गिरफ्त में लेने के लिए तैयार बैठें हैं। कभी जीवन में आगे बढ़ने का डर। कभी न बोल पाने का डर। तो कभी जॉब पर जाने का डर। आदि।
डर का समाज शास्त्र और दर्शन को समझे ंतो पाएंगे कि कई बार डर अच्छा भी होता है। अगर जीवन में असफल होने व फेल होने का डर खत्म हो जाए तो संभव है हम प्रयास करना छोड़ दें। हम सावधान न रहें। शायद वेद में निर्भय होना कहा गया है। लेकिन निर्भय होना कई बार हमें असावधान और लापरवाह बना देता है। जैसे ही लापरवाही हुई नहीं कि दुर्घटना घटती है। अगर चौकन्ने हुए और असफल होने से डरे तो हम सावधान भी रहेंगे। शेर और खरगोश की कहानी में यही तो हुआ। शेर के जीवन और दिल से डर खत्म हो गया था। उसे इतना ज्यादा आत्मविश्वास हो गया था कि वह अपने ही अहम में मारा गया। ठीक उसी प्रकार जब हमारे अंदर भय खत्म हो जाता है और स्थिर होकर मंथन नहीं कर सकते तभी हम हारा करते हैं।
आज कई प्रकार का डर हमारे सामने है। जॉब का डर। बीमारी का डर। और आगे बढ़ने का डर। जब रास्ते में व्यवधान आता है तब हम उस डर का कदम नहीं उठाते। हम अपने सुरक्षित जगह पर ही बने रहना चाहते हैं। यही वो डर है जिसकी वजह से हम आगे नहीं बढ़ पाते। हालांकि संस्कृत साहित्य में स्पष्टतौर पर कहा गया है जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित की ओर भागता है वह उचित नहीं। कम से कम निश्चित को तो बनाए रखना चाहिए। लेकिन कई बार यही निश्चितता हमें आगे बढ़ने से रोकती भी है। अनिश्चित सही है कि अंधेरे में है। असफलता संभाव्य है लेकिन यदि संतुष्ट होकर बैठ गए और निश्चित को पकड़कर बैठे रहे तो हमारी प्रगति कहीं न कहीं प्रभावित होती है।
दुनिया में जो भी डर से मुक्त हो सका है उसके जीवन में प्रगति की लव जली हैं। वह आगे ही बढ़ा है। जो डर कर बैठ गया वह वहीं स्थिर रह जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो असफलता से डर गया वह क्या ख़ाक आगे बढ़ेगा।

3 comments:

Amar Mishra said...

Wonderful

Unknown said...

महत्वपूर्ण लेख है। साधुवाद

BOLO TO SAHI... said...

Shukriya aapka

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

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