Wednesday, January 23, 2019

उद्देश्य का ताकत



कौशलेंद्र प्रपन्न
‘‘कारणं बिना न कार्यंयूज्यते।’’ न्याय दर्शन के इन सूत्र को समझने की कोशिश करें तो देख और समझ सकते हैं कि बिना किया कारण यानी उद्देश्य के कोई भी काम नहीं होता। यानी बिना कारण के हम कुछ भी नहीं करते। न हम सांस लेते हैं, कोई काम करते हैं और न ही हम किसी पर हंसते ही हैं। कोई न कोई कारण या प्रयोजन और उद्देश्य होता है जिससे हमारा व्यवहार संचालित होता है। हमारा हर वक्तव्य, गति और व्यवहार हमारे उद्देश्य की पूर्ति से प्रभावित और असर के घेरे में होते हैंं। बिना मकसद और औचित्य के हम कुछ भी नहीं किया करते हैं।
हमारे जीवन की असफलता का राज़ ही यही है कि हम अपने रोज़ के जीवन में कई सारे काम बिना उद्देश्य किया करते हैं। यदि उद्देश्य हो तो शायद हम कई सारे कामों को न करने की सूची में डाल दें। लेकिन दिक्कत यहीं आती है कि हम कई बार यह तय नहीं कर पाते कि कौन सा काम और कौन सा कदम हमारे लिए ज़रूरी है और कौन सा काम जिसे हम नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। हम अपने उद्देश्य के निर्धारण में इतने उतावले और अधीर होते हैं कि तात्कालिक उद्ेश्य को पाने में अपनी पूरी ताकत लगा दिया करते हैं। होता यह है कि जिसमें हमें पूरी क्षमता लगानी थी वह अधूरी रह गई। और असफलता हमारे हाथ आती है और शुरू होता है शिकायतों और आरोपों का खेल।
हमारे उद्देश्य कई बार हम नहीं बल्कि हमारे अग्रज तय किया करते हैं। मां-बाप, यार दोस्त और कई बार हमारे गुरू। होता यह है कि यदि कोई पूछ बैठे कि क्यों कर रहे हो? क्यों बीएउ कर रहे हो? क्यों डॉक्टर बनना चाहते हो आदि तो हमारा जवाब होता है क्योंकि पिता चाहते थे। क्योंकि चाचा या बुआ ने बताया था। या फिर सारे दोस्तों ने उसी कोर्स के लिए फार्म भरे थे सो मैं ने भी भर दिया। यानी एक बात स्पष्ट है कि आपके उद्देश्य कोई और तय कर रहे थे। आप तो उस ओर जाना ही नहीं चाहते थे। क्योंकि औरों ने बताया और देखा तो उस राह पर चल पड़े। वर्षां गुजारने के बाद महसूस होता है कि मैंने तो यह बनना ही नहीं चाहता था। यह तो उनकी इच्छा थी। उनकी चाहत थी कि मैं इस क्षेत्र में आउं। तो आप क्या चाहते थे यह सवाल आपको परेशान करनी चाहिए।
एक शोध हुआ था जिसमें मनोवैज्ञानिक ने विश्व के तकरीबन 4000 ऐसे लोगों से साक्षात्कार किया जो अपने जीवन और कार्य में सफल माने गए। भारत से गांधी जी को शामिल किया गया था। इस शोध में खिलाड़ी, संगीतकार, कलाकार, पत्रकार, मजदूर आदि शामिल थे। कोशिश यह की गई थी कि समाज के सभी क्षेत्रो के प्रतिनिधियों को इस अध्ययन का हिस्सा बनाया जाए। लेखिका व शोधकर्त्री ने बताया कि अधिकांश लोगों ने बताया कि उनकी लाईफ के पर्पस यानी मकसद किसी और ने तय किए थे लेकिन अपने जीवन और क्षमता को पहचान कर उन लोगों ने अपने लक्ष्य और उद्देश्य को दुबारा लिखा और जीया। एक बडत्र संगीतकार, गिटारवादक जो आगे चल कर एक रसोईया बना और उस काम में उसे प्रसिद्ध ऐेसी मिली कि अमरिका के उच्च सदन में उसे सम्मानित किया गया। उसने बताया कि हम अपनी रूचि और ताकत को पहचाने बगैर पूरी ज़िंदगी दूसरों के उद्देश्यों पूरा करने मे लगा देते हैं। मैंने एक दिन महसूस किया मुझे खाना बनाने में आनंद आता है। रूचि भी जगी और संगीत गिटार छोड़कर कूक में आ गया। ऐसे में हमारे जीवन में कई उदाहरण मिलेंगे जो पूरी जिं़दगी जिस काम में गुजार देते हैं उनके पूछ लीजिए क्या कहते हैं जो उनका कहना होता है मैं तो करना कुछ चाहता था। लेकिन पूरी ज़िदगी गलत क्षेत्र में रहा। काश उस क्षेत्र में रहता तो ज़्यादा आगे बढ़ पाता।
हमारे जीवन की कथा ही यही है कि जाना कहीं और चाहते हैं किन्तु रेलगाड़ी किसी दूसरी दिशा की पकड़ लेते हैं। उस तुर्रा यह कि गुमान कितना बड़ा होता। तोहमत किसी और पर मढ़ा करते हैं। अपनी गलती को दोषी किसी और और परिस्थितियों को ठहराया करते हैंं। यदि हमारा उद्दश्य स्पष्ट होता तो कोई वज़ह नहीं कि हम सफल नहीं होते। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं जब हमारे जीवन का लक्ष्य और उद्देरू किसी और के प्रभाव और आकर्षण से निर्धारित होते हैं तो ऐसे में शायद हम अपने लक्ष्य और उद्देश्य से मुहब्बत भी नहीं कर पाते। बिना रूचि और उत्साह के जिस काम को कर रहे हैं उसमें सफलता कितनी हासिल होगी इसमें संदेह हमेशा ही रहेगा।
मैंनेजमेंट गुरू की मानें तो कोई भी सफल व्यक्ति और प्रोजेक्ट तभी सफल और मुकम्मल होता है जब हम शुरू में अनुमानित संकटों और अवरोधों का आकलन कर उससे निपटने की योजना भी बना लेते हैं। हमेशा बल्कि समय समय पर उद्देश्य हासिल करने के रास्ते और रणनीति का मूल्यांकन और पुनर्मूल्याकन करते रहते हैं। यदि हमारा रास्ता ही गलत है तो वह योजना व प्रोजेक्ट को विफल होना ही हैं। अपने जिस लक्ष्य व उद्देश्य को पाना चाहते हैं उसके अनुरूप हमें रणनीति और कार्ययोजना निर्माण बेहद ज़रूरी है। इसके बगैर हम अपने लक्ष्य व उद्देश्य से काफी दूर रहेंगे। हमेशा ही हमें अपने जीवन से शिकायत रहेंगी। दरअसल हम अपने जीवन में कई सारे काम सिर्फ दूसरों को दिखाने और खुश करने के लिए किया करते हैं। इसमें बॉस, अभिभावक, परिवेश सभी शामिल हैं। इसमें हमारी खुद की खुशी और इच्छा कहीं पीछे छूट जाती है। और शिकायत किया करते हैं हमने अपने जीवन में तो यह चाहा था वह चाहा था आदि। हमें अपने जीवन और कार्यक्षेत्र से क्या उद्देश्य है? क्या चाहते हैं यह यदि स्पष्ट हो तो काफी मसले खुद ब खुद हल हो जाते हैं।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...