Thursday, January 24, 2019

रिक्शावाला कहां से आता है और कहां जाता है?



कौशलेंद्र प्रपन्न
उसने बातों ही बातों में बताया कि आपको छोड़कर मैं वापस चला जाउंगा। कहां जाएगा? कहां से आया था? ये सवाल हमारे सरोकारों से बाहर ही खड़ा रहता है। हम जानना भी नहीं चाहते और हमारी कोई दिलचस्पी भी नहीं होती कि जो आपको अपने पांव और ज़िगर से खींच कर दफ्तर, बाज़ार पहुंचाया करता है। वह हमारे लिए सिर्फ व्यक्ति होता है जिससे बातें करना, उसके बारे में जानने हमारा लक्ष्य नहीं होता। वह किन मुश्किलों से गुज़रता हैं, इसके बारे में हम आंखें मूंद लिया करते हैं। हमारे लिए वह रिक्शावाला सिर्फ रिक्शावाला होता है। हम लोग दस या बीस रुपए देकर उतर जाया करते हैं। आज उसने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के बागपत के किसी गांव से दिल्ली रिक्शा खींचने आया करता है। मेरी रूचि जगी और पूछा कब आते हो? उसने बताया सुबह हमारे गांव से एक आदमी अपने कैब में हमें लाता है और सात बजे दिल्ली गगन सिनेमा हॉल के पास छोड़ देता है। शाम में सात बजे हमें उठा लेता है। दोनों फेरे का अस्सी रुपये लेता है। सुबह खा कर आता हूं और दिन में तीन बार खाता हूं। वरना बीमार पड़ा जाउंगा।
वहीं एक और रिक्शावाला जिसके साथ रोज़ जाया करता था वह कल मिला। उसके हाथ में ई रिक्शा की हैंडल थी। मैंने पूछा, पुराना रिक्शा कहां गया? उसने बताया बाबूजी मेरी उम्र हो गई है। मैं तेजी से खींच नहीं पाता। इसलिए लोग मेरी सेवा नहीं लेते थे। सभी को जल्दी पहुंचना होता है। सो मैंने पिछले माह ई रिक्शा किराये पर लिया। बुढ़े रिक्शे वाले के साथ कोई भी जाना नहीं चाहता। धीरे चलते हैं। समय ज्यादा लगता है। अनुमान लगा सकते हैं कि किस तरह से पुराने और वृद्ध रिक्शाचालकों का क्या हुआ होगा।
एक नज़र रिक्शें के इतिहास पर डालते हैं। हमारे भारत में पहली बार शंघई से 1874 में 1000 रिक्शे आए थे। जो कि जापान से आए थे। आगे चल कर इनकी संख्या 1914 में 9,718 हजार हो गई। अगर अनुमान लगाएं तो पाएंगे कि रिक्शा खींचने वाले कितने हैं जानकर ताज्जुब होगा 100,000 रिक्शेवाले वाले 1940 रिक्शा खींचते थे। वहीं 1920 के आप-पास 62,000 रिक्शखींचने वाले थे। हाथ रिक्शेवाले के सामने ई रिक्शा ने नई चुनौती दी। तेज और जल्दी चलने वाली। 2010 में लगभग एक लाख ई रिक्शे रोड़ पर आए। हालांकि कई अभी तक दर्ज नहीं हैं। दिल्ली में 2013 के अप्रैल तक 29,123 ई रिक्शा दर्ज हैं। अब हाथ रिक्शा और ई रिक्शा के बीच द्वंद्व शुरू हो चुका है।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...