Wednesday, January 2, 2019

रूचि लेकर पढ़ें, पढ़ाएं साहित्य


कौशलेंद्र प्रपन्न
साहित्य शिक्षण और पठन में हमारा मुख्य मकसद क्या उन्हें कविता, कहानी पढ़ाना है या फिर साहित्य पढ़ाते वक़्त उन्हें समाज और संवेदनशील बनाना है। जब बच्चा एक मां की बेबसी या फिर बच्चे काम पर जा रहे हैं, पढ़ता है तो कहीं न कहीं बच्चा न केवल आनंद हासिल करेगा बल्कि अपने परिवेश और समाज के प्रति सजग होगा। कविता को पढ़ाते वक़्त अकसर लोग सवाल उठाते हैं व मानते हैं कि कविता पढ़ाने-पढ़ने का मकसद आनंद प्रदान करना है। क्या कविता महज आनंद प्रदान करना है? क्या कविताएं सिर्फ कवि का क्या आशय है आदि के जवाब तक महदूद करना है आदि। दरअसल आज जिस तदाद में कविता कहानियां लिखी जा रही हैं, उन्हें पढ़ने और समझने वाले ख़ासा कम हैं। जो पढ़ते हैं वो या तो पत्रकार हैं, कवि हैं, समीक्षक हैं आदि। लेकिन शुद्ध व सिर्फ पढ़कर आनंद लेने के उद्देश्य से कम लोग पढ़ा करते हैं।
प्राथमिक स्तर पर व कहे लें आरम्भिक तालीम में पढ़ने और पढ़ाने की क्षमता व स्वरूप एकदम भिन्न पाया जाता है। हमारे अधिकांश शिक्षक व शिक्षिकाएं कहानी, कविता पढ़ाने के दौरान सिर्फ पाठ्यपुस्तकों तक सीमित रह जाते हैं। हमारी कोशिश शायद यह होनी चाहिए जो कहीं न कहीं बच्चों में साहित्य पढ़ने के प्रति ललक पैदा करें। यदि बच्चे आनंद व रूचि लेकर पढ़ना सीख लेंगे तब हमें इस बात की वाकलत करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी कि साहित्य पढ़ना चाहिए। हमें भाषायी संस्कार मिलता है, हमारी भाषायी संपदा में बढ़ोत्तरी होती है। बच्चा एक बार पढ़नें में रूचि लेने लगेगा तब हमें ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
बेंजामिन फैं्रक्लीन विश्व के ख़्यात लेखक का मानना है कि वो प्रकृतितः लेखक नहीं थे बल्कि उन्होंने लिखना सश्रम सीखा। शुरू में वो अपने पसंदीदा पत्रिका के अपने प्रिय लेखक के आलेख को पढ़ते थे। पढ़ने के बाद दुबारा उसे लिखा करते थे। लिखने के बाद मूल रचना से मिलान किया करते थे। कहां किस प्रकार की चूक रह गई उसे गोला लगाते थे। तीन चार बार भी लिखा करते थे। और दिन, माह, वर्षों उन्होंने अभ्यास किया। इसी का परिणाम है कि आज उनका नाम, उनकी रचना को ससम्मान हम पढ़ा करते हैं। नए व जो लेखक बनना चाहते हैं व लेखन करना चाहते हैं वो इतनी शिद्दत से अभ्यास से बचते हैं। यही कारण है कि वो अपने क्षेत्र में दोयमदर्ज़े के लेखक ही बन पाते हैं।
हमारे बच्चे कैसे लिखना शुरू करें, कैसे अपनी कविता, कहानी, लेख को मॉजें, और परिष्कृत करें यह ख़ासा महत्वपूर्ण है। हमें नई पौध तैयार करनी करनी है तो उन्हें मागदर्शन भी करना होगा। स्वयं उन्हें पढ़ते हुए, लिखते हुए दिखाना भी चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि शिक्षक स्वयं भी लिखें, पढ़ें, कुछ वक़्त किताब के साथ बिताता हुआ नज़र भी आए। यहीं से बच्चों में भी रूचि लेकर लिखने, पढ़ने की आदत संक्रमित हो सकती है।

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