Tuesday, May 1, 2018

इमोशनली यूज़ होने से बचें



कौशलेंद्र प्रपन्न
हम कई स्तर पर लाइफ में यूज़ हो रहे होते हैं। कई बार हमें एहसास होता है कि हम यूज़ किए जा रहे हैं या यूज़ हो रहे हैं। लेकिन हमें इस यूज़ होने में मजा आ रहा होता है। हम अपने आप को यूज़ होने से मना नहीं कर पाते। क्योंकि उस यूज़ होने में हमें आनंद आता है। उदाहरण क्या बताना आप तो समझते ही हैं जैसे बच्चों द्वारा मा-बाप को यूज़ करना। मां-बाप के द्वारा बच्चों का यूज़ करना। देस्तों के बीच भी यूज़ करने की परिपाटी खूब है। इससे कोई मुंह नहीं मोड़ सकता। वहीं कई रिश्ते ऐसे भी हुआ करते हैं जिसमें हमें मालूम होता है कि हम यूज़ किए जा रहे हैं लेकिन मना करने की हिम्मत नहीं होती। वैसे ही कई बार हम अपने दफ्तर में यूज़ किए जा रहे होते हैं लेकिन इतनी ताकत नहीं होती कि आप यूज़ होने से ख्ु़ाद को बचा लें या पीछे खींच लें। क्योंकि यह आपको भी मालूम है कि यदि आपने यूज़ होने से इंकार किया तो उसका असर दूरगामी हो सकता है। फिर शिकायत मत करना कि हमें क्यों यूज़ नहीं किया। आज तो दफ्तर हो या घर, दोस्त हों या देश हर जगह लोग यूज़ होने के लिए तैयार बैठे हैं। कोई तो यूज़ करे और सफलता, सुख, उपलब्धि की ओर धकेले। ऐसे यूज़ एंड थ्रो के जमाने में स्थायी कुछ भी नहीं होता। यदि आप यूज़ होने के लिए कब से रेडी तैयार बैठे हैं तो फिर क्या कहने। आपही का सिक्का चलेगा। बल्कि बजेगा। इतना बजेगा कि कोई सुनने वाला आपसे जलने लगेगा।
यूज़ एंड थ्रो का बजरीया चलन अब हमारे रिश्तों में भी आ चुका है। जब जिसकी ज़रूरत होती है हम उसके पास उससे चिपक लेते हैं। काम निकाल लेते हैं। जैसे ही काम निकल चुका होता है फिर अपने अपने रास्ते हो लेते हैं। आप कौन और मैं कौन की स्थिति आ जाती है। जब आप अपने ही घर में यूज़ किए गए या हो रहे हों तो इसकी शिकायत किससे करेंगे। कौन नहीं हंसना चाहेगा। हर किसी के लिए आपका यूज़ होना एक रोमांच और मनोरंजन का विषय बनता है। ऐसे में आप किसी से भी अपनी बात, एहसासात साझा नहीं करते। क्योंकि आप इस कदर यूज़ हुए हैं कि किसी को बता नहीं सकते। मन ही मन ख़ुद को कोसते हैं कि काश समय रहते ख़ुद को यूज़ होने से बचा लेता। काश इमोशनल न होता। काश ! समझ पाता कि अचानक रिश्तों में यह गरमाहट क्यां आ रही है। कभी तो वक़्त था कि न चिट्ठी, न फोन, न आना न जाना कुछ भी तो नहीं था। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि प्यार के सोते निकल पड़े आदि आदि।
सच पूछिए तो हम पहले पहल घर में कई स्तरों पर यूज़ हो रहे होते हैं। उसे अगल अलग नामों से जानते हैं। बबुआ है। अपना बच्चा है। भाई है न! मेरी बात नहीं मानेगा? अरे अरे!! अपने बड़ों से ऐसे जवाब लड़ाते हैं आदि आदि। लेकिन यह भी सच है कि कई बार हम इन इमोशनल परिवेश में ठग लिए जाते हैं। छल लिए जाते हैं। बल्कि यूज़ कर लिए जाते हैं। हमें इसका एहसास बहुत बाद में होता है। वो भी तब जब खेत की लिखा पढ़ी हो चुकी होती है। जब पिता के एकाउंट से पैसे निकाल लिए जाते हैं। दूसरा स्तर घर में जो किसी भी स्तर पर यदि कमजोर है तो उसे कौन यूज़ नहीं करता। हर कोई अपने अपने तरीके से कोई खखार कर, कोई दबे पांव, तो कोई प्यार से आपको यूज़ करते हैं। हम जानते समझते हुए भी ख़ुद यूज़ होने से नहीं बचा पाते।
बात सिर्फ घर की नहीं है। बल्कि यह हक़ीकत तो दफ्तर की भी है। इस दफ्तर की कहानी में बस पात्र बदले होते हैं। स्थान बदला होता है। लोगों के स्वार्थ के मायने बदले होते हैं। और कोई बड़ा अंतर आप नहीं देख सकेंगे। कोई आपके स्वभाव का फायदा उठाता है (इसे यूज़ पढ़ें), कोई आपके इतिहास का लाभ उठाते हुए आपको यूज़ करता है। तो कई ऐसे भी मिलेंगे जो आपसे चिकनी चुपड़ी बातें कर आपको आसमान में चढ़ाकर धीरे से अपनी बात, ज़रूरत सरका देते हैं और आप यूज़ होने से रोक नहीं पाते। वहीं आप बॉस से तो हंसते हंसते यूज़ हो जाया करते हैं। बॉस से यूज़ होने में एक अगल किस्म का सुख मिलता है। हमें लगता है काश! और यूज़ हो पाता? कितना अच्छा होता कि हमें यूज़ होने का और मौका मिलता। लेकिन हम कहीं न कहीं अपनी जमीर को धोखा दे रहे होते हैं।
सावधान रहें। चौकन्ने रहें। यूज़ हों लेकिन अपनी शर्तों पर। जानते समझते हुए यूज़ हों। आपको मालूम हो कि आप यूज़ किए जा रहे हैं। लेकिन उसके लिए आपके मन में या कभी भी यह एहसास न हो कि आप ग़लत यूज़ किए गए। आप इमोशनली यूज़ न हों।

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