Monday, April 30, 2018

नदी सी थी तुम-



याद है मुझे,
धीरे धीरे किनारों से टकराती,
बहती रही न जाने किन किन कंदराओं,उपत्यकाओं से गुज़रती रही,
बिन कुछ कहे।
धार में तेरे,
निमग्न होती रही पीढ़ी,
बहती रही हमारी उम्र से आगे,
निकल गई।
हम तुम्हें छोड़ बस गए नगर नगर,
शहर दर शहर,
ल्ेकिन तुम संग रही,
हमेशा ही रगों में दौड़ती रही।
त्ुम नदी थी तुम्हें समंदर में जाना ही था,
मिलना ही था सागर में,
तुम्हें ख़ुद को खोना नहीं था।

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