Wednesday, May 30, 2018

इंटरनेट में खोते चैन




यह बात साबित हो चुकी है कि क्या वयस्क और क्या बच्चे सभी अपनी लाइफ से एक बड़ा हिस्सा इंटरनेट पर जाया किया करते हैं। कभी लाइक्स को देख कर इतने खुश हो जाते हैं गोया और कोई दुनिया में हमसे ज़्यादा खुश है ही नहीं। वहीं कम लाइक्स मिलने या न मिलने पर इतनी मायूस हो जामे हैं जैसे दुनिया में कोई प्यार करने वाला बचा ही नहीं। यह इंटरनेटी लव और केयर ऐसी बीमारी बन चुकी है कि हम वास्तविक जीवन में खुशियों की तलाश की बजाए आकाशीय सुख में खुश हो जाया करते हैं। 
हमारे आस-पास हज़ारों लाखों गेगा बाइट्स में सूचनाएं बह रही हैं। उनमें से कौन सी सूचना सचमुच हमारे लिए हैं इसका निर्णय नहीं कर पाते। हम तो यह भी तय नहीं कर पाते कि इन सूचनाओं में से कितने को अपनी ज़िंदगी में तवज्जो देनी है। 
थोड़ी थोड़ी बात पर जैसे कभी औज़ार निकाल लिया करते थे। वैसे ही आज हम थोड़ी सी कोई बात हुई नहीं कि सीधे इंटरनेट के पेट में गुदगुदी करने लगते हैं। जो भी सूचना इंटरनेट उगल पाता है उसे ब्रह्मत वाक्य की तरह मानने लगते हैं। 
यदि पेट दर्द हुआ, यदि सीने में दर्द हो रहा है तो इंटरनेट हजारों किस्म की बीमारियों के लक्षणों में आपको उलझा देगा। अब आप तनाव में आ जाते हैं अरे ये क्या हुआ? अब तो मेरी जिं़दगी ख़तरे में हैं आदि। जबकि हम विवेक और वैज्ञानिक चिंतन की बजाए उन्हें ही सच मानने लगते हैं। रातों की नींद ख़राब करने लगते हैं। 
इंटरनेट किसी वयैक्तिक ज़रूरतों को ध्यान में रखकर सूचनाएं संग्रहीत नहीं करता। बल्कि वह वैश्विक स्तर पर ज्ञान और सूचनाओं का सरलीकरण करता है। हर सूचना का अधिकारी वयैक्तिक और सामूहिक दोनों ही स्तरों के हो सकते हैं। यहां ध्यान देने की बात इतनी सी है कि हमें इंटरनेटी सूचना व ज्ञान को हासिल करते वक़्त इतना ख़्याल ज़रूर रखना चाहिए कि कौन सी सूचना व ज्ञान मेरे मकूल और कौन सी त्याज्य है। 
सूचना के विक्रेताओं और बाजार की नज़र ये देखें और डेटा मैनेजर के तौर पर समझने की कोशिश करें तो पाएंगे कि हर सूचना और ग्राहक की ज़रूरतों के अनुसार गढ़ा और बिकाउ बनाया जाता है। जो सूचना बाजार के अनुसार नहीं है उसे बाजार की शर्तां और मांग के अनुसार तैयार किया जाता है। 
आज की तारीख़ में दुनिया गोया डेटा में सिमट कर मुट्ठी में आ चुकी है। दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी कोने में हम एक दूसरे की ख़बर ले और दे सकते हैं। यह तो एक काम हुआ। इंटरनेट महज हाल समाचार जानने और देने का माध्यम भर नहीं है बल्कि इसका इस्माल हमें व्यापकतौर पर करना सीखना होगा। मसलन सोशल मीडिया व प्लेटफॉम का प्रयोग क्या हम सिर्फ फोटो, जीपीएस लोकेशन शेयर के लिए ही करें या फिर इसका प्रयोग कुछ और सकारात्मक तौर पर भी हो सकता है इसओर भी हमें ध्यान देने की आवश्यकता है। 
हमारे बच्चे और वयस्क दोनों ही वर्ग सूचनाओं और डेटा का इस्तमाल अपनी जीवन शैली को बेहतर बनाने के लिए कर रहे हैं। लेकिन हम भूल जाते हैं कि जो भी सूचनाएं व जानकारी हम सोशल मीडिया व प्लेटफॉम पर फेंकते हैं वह फिर हमारी निजी नहीं रह जाती। वे तमाम सूचनाएं सबकी हो जाती है। हाल ही में एक सोशल साइट विवादों में रहा। इसके पीछे सवाल निजता का ही उठा। हम बिना सोचे समझे सोशल साइट्स पर अपनी तमाम कदमों, सांसों की धड़कनों को दर्ज़ कर खुश हो रहे होते हैं कि देखों देखों मैं आज यहां हूं। मैं यह कर रहा हूं। मैं यूं भी हूं आदि आदि। कई बार कोफ्त सी होती है कि क्यों हम अपनी निजी क्षणों को सरेआम करते हैं। क्यों हमें दूसरों को दिखाने व खुश करने में आनंद आता है। 
सूचनाओं और डेटा ने हमारी निजता का जिस कदर प्रभावित किया है उसका अंदाज़ा शायद हम अभी नहीं लगा सकते। लेकिन वह दिन दूर नहीं है जब हम सोशल मीडिया व प्लेटफॉम पर ही मिला करेंगे। हमारी तमाम निजताएं खत्म हो चुकी हांगी। हमारी ज़िंदगी एक डेटा में तब्दील हो जाएंगी। 
डेटा और सूचनाएं ज़रूरत के हिसाब से देनी और मिलनी चाहिए। जिसकों जितनी ज़रूरत हो उतनी ही सूचना देना बेहतर होता है। यदि आप पात्र के अनुसार सूचना नहीं देते तो वह ओवर फ्लो होने लगेगा। फिर हमें डेटा मैनेजर की आवश्यकता पड़ेगी। सूचनाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना ऐसा हमें अपने आप से वायदा करना होगा। तब शायद हम अपनी जिं़दगी बेहतर ढंग से जी सकते हैं। जीवन की हर कड़ी और हर गांठें खोलने के लिए नहीं होतीं। कुछ तो ऐसे कोने होते हैं जो किसी ख़ास के साथ ही खोले जा सकते हैं। उन्हें सरेआम करना कहीं की भी समझदारी नहीं होती। 

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