Thursday, May 3, 2018

वायदे का तारीख़ बना जाना



कौशलेंद्र प्रपन्न
वायदे कई स्तरों पर कई लोगों, संस्थानों, सरकारों की ओर किए जाते हैं। कुछ वायदे पूरे होते हैं। कुछ बीच राह में ही दम तोड़ देते हैं। कुछ तो ऐसे भुला दिए जाते हैं गोया कभी किए ही न गए हों। जो वायदे याद रह जाती हैं उसका फॉलोअम किया जाता है। जो भूल जाते हैं वे तारीख़ों में दर्ज़ हो जाते हैं। वायदों का भी अपना इतिहास हुआ करता है। उन इतिहासों में जाना इस लेख का मकसद नहीं है। लेकिन इतनी अपेक्षा तो ज़रूर की ता सकती है कि हम किन वायदों को भूल जाते हैं और किन्हें हमेशा हमेशा याद रखते हैं।
सरकारी वायदे व घोषणा कह लें सबसे ज़्यादा की और भुलाई जाती हैं। ही सरकार सत्ता में आने से पहले नागरिकों से किया करती है। सत्ता में आने के बाद उनमें से कुछ को भी मुकम्मल अंजाम तक पहुंचा पाते हैं। बाकी के वायदे इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाते हैं। जिन्हें गाहे ब गाहे जनता याद कराया करती है तब हम तरह तरह के बहानों, परिस्थितियों का हवाला देकर नागरिक को बरगलाते रहते हैं। घोषणा और वायदे में न तो सरकार पीछे रहती है और न हम। हम भी कई बार अपने वर्कस्टेशन पर, आफिस में, आफिस के लोगों को वायदे करते हैं। हम यह कर देंगे। वह कर देंगे। यह काम पूरा कर लेंगे। कुछ वायदे जॉब में आने से पहले इन्टरव्यू में किया करते हैं। जब जॉब में आ जाते हैं तब काफी वायदे इतिहास हो जाया करती हैं। बार बार याद दिलाने पर उन वायदों में से कुछ को पूरा कर देते हैं।
रिश्तों में भी तो हम वायदे किया करते हैं। दूसरे शब्दां में घोषणाएं किया करते हैं। शादी से पहले कुछ वायदे होते हैं और शादी के बाद जब चेक लिस्ट बनती है किन किन वायदों को पूरा किया गया तब रिजल्ट कुछ और ही निकलता है। इसे ऐसे भी समझें कि कुछ वायदे शादी के पहले मनुभावन, लोकलुभावन ही होते हैं। यह कहने वाले और सुनने वाले दोनों ही समझते हैं लेकिन मन है कि मानने से इंकार नहीं करता। दूसरे वायदे शादी के बाद की होती हैं। ये घोषणाएं जांची और समय समय पर इत्तला की कराई जाती हैं कि तुमने तो यह कहा था। तुमने तो यह भी कहा था लेकिन तुमने तो पूरा नहीं किया। अब आप यह तो नहीं कह सकते कि वह तो यूं ही कह या था। ठीक उसी तरह किसी भी रिश्ते में इसे जांचा और परखा जा सकता है। दोस्त ही कम हैं क्या जांचने के लिए। हम अपने दोस्तों के बीच भी वायदे किया करते हैं। लेकिन वे वायदे कितने पूरे होते हैं यह तो वास्तविकता की जांच में मालूम होता है कि काफी वायदे खाली के खाली अब भी वहीं पड़े हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वायदे उन्हीं चीजों, मदद की करनी चाहिए जो हम पूरा करने के सामर्थ्य रखते हों। जिन्हें हम पूरा नहीं कर सकते उसके बारे में इंकार करना ज़्यादा बेहतर है बजाए कि किसी भी अपेक्षा को बढ़ा दिया जाए। जब अपेक्षाएं व उम्मीद टूटती है तब इसकी आवाज़ बाहर तो सुनाई देती लेकिन व्यक्ति अंदर टूट जाता है।
हम अपनी जिं़दगी में झांक कर देखें कितने की वायदे किया करते हैं। कई बार ख़ुदी से वायदे करते हैं और कई बार औरों से। ख़ुद से किए गए वायदे का हालांकि कोई पूछनहार नहीं होता। ऐसे में सावधानियों का घटना, भूल जाना आदि की संभावनाएं ज़्यादा होती हैं। वायदे पूरे न होने पर हम भिन्न तरह के बहानों से ख्ुद को बहला लेते हैं। लेकिन कभी हम अकेले में ख़ुद से पूछते हैं कि जो वायदे हमने पूरे नहीं किए उसका ख़मियाज़ा कौन भुगतता है। हमें ही अपने वायदों के परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं। इसलिए यदि हम ख़ुद से भी वायदे कर रहे हैं जो चौकन्ना रहना चाहिए। वायदे पूरे होंगे या फेल होंगे यह निर्भर करता है कि हम उन्हें पूरी करने के लिए कितने सजग और जागरूक हैं। वरना वायदे तो होते ही हैं फेल होने के लिए। फिल्म का गाना भी तो है- ‘‘वायदे हैं वायदे का क्या...’’ दूसरा एक और मौजू गाना प्रासंगिक है-‘‘मिलने की तुम कोशिश करना वादा कभी न करना, वादा तो टूट जाता है।’’सो ख़ुद से भी झूठे वायदे करने से बचें। जो वायदें करें उसके प्रति जवाबदेही तो रखनी बनती है।

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