Wednesday, May 2, 2018

प्राथमिकता, प्रयास और सफलता



कौशलेंद्र प्रपन्न
यह कोई नई बात नहीं की जा रही है बल्कि लंबे समय पर इसपर कई तरह बात की जा चुकी है फिर क्या वजह है आज इस पुराने मुद्दे पर लिखने की आवश्यकता महसूस की गई। वज़ह है मनोविज्ञान में कहा जाता है जब हम किसी भी चीज व आदतें हों, काम हो, विचार हो उसे बार बार दुहराते हैं तब वह हमारी लॉग टर्म मेमोरी का हिस्सा हो जाती हैं। यानी जिस भी विचार, आदत को हम अपने जीवन में जितनी बार दोहराते हैं वह हमारी स्थायी स्मृति का हिस्सा हो जाती हैं। उसे भूलना तकरीबन मुश्किल होता है। यह दोहराव तय करता है कि कौन सा कंटेंट, कौन सा वाकया हम अपने लिए चुनते हैं। कौन सी घटना, कौन सी परिस्थितियों को हम भूलना नहीं चाहते। यह तय करता है हमारे जीवन की प्राथमिकता। प्राथमिकता तय हो जाने के बाद हम उसे सफलता तक पहुंचाने के लिए प्रयास किया करते हैं। जब हम प्राथमिकता तय कर चुके होते हैं तब हमारी कोशिशें, हमारे बरताव, हमारी जीवनचर्या भी उसी के अनुसार निर्धारित होने लगती है। जहां भी जाते हैं, जो कुछ भी सुनते-पढ़ते, देखते हैं उसमें हमारी प्राथमिकता एक अहम भूमिका निभाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी जीवन की प्राथमिकताएं ही जीवन की दिशा भी तय किया करती हैं।
सबसे पहले हमें अपने जीवन से क्या चाहिए यह तय करना होता है। हम जीवन को बने बनाए रास्ते, बनी बनानी मान्यताओं पर ही हांक देना चाहते हैं या कोई और रास्ते का इज़ाद करना चाहते हैं। जब हम यह तय कर लेते हैं तब हम अपने जीवन में प्राथमिकताएं तय किया करते हैं। जो एक सुनियोजित रणनीति और प्लानिंग की मांग करता है। क्योंकि जीवन में करने और खोने को बहुत कुछ है। यदि उन्हीं खाने पाने में उलझे रहे। कौन क्यों आपसे रूस गया? क्यों फलां आपसे अब ठीक से बात नहीं करता। अब वह आपके साथ घूमता नहीं आदि आदि। यह आपकी प्राथमिकता है तो आपकी दूसरी ज़रूरी चीजें जिसे आपने चाहा है। जिसे आप शिद्दत से पाना या होना चाहते हैं वह बाधित होती है। कई बार अर्जुन की दृष्टि हासिल करना बेहतर होता है जिसमें हमें हमारे जीवन में जो पाना चाहते हैं वही दिखाई दे। आस-पास की लुभावनी चीजें बहुत हैं जो बार बार आपको भटकाएंगी। यदि बीच में ही भटक गए। ठहर गए तो आपने जो सपना देखा था वह चकनाचूर तो होना ही है।
उपनिषद् की एक कहानी यहां कहना बेहद मौजू होगा। नचिकेता ने यमराज से कुछ सवाल किए। उन सवालों ने तय किया। उन सवालों की संरचना पर नज़र डालें तो पाएंगे कि वह नचिकेता अपनी प्राथमिकता में कितना स्पष्ट था। उसे मालूम था कि उसे क्या चाहिए। उसने यह भी तय कर रखा था कि उसे यमराज से कितना क्या और कैसे पाना है आदि। बीच बीच में यमराज किसिम किसिम के प्रलोभन देते हैं। राजपाट, आभूषण, धन आदि। यदि नचिकेता अपनी प्राथमिकता से समझौता कर लेता तो उसे जीवन, आत्म आदि के रहस्य जानने की प्राथमिकता पीछे रह जाती। ठीक उसी प्रकार जीवन में भी कई प्रकार के यमराज आया करते हैं। कई तरह के प्रलोभन-पद, पैसे, स्त्री सुख आदि दिया करते हैं। यदि आप अपनी प्राथमिकता से समझौता कर लेते हैं तब आप अपने जीवन के लक्ष्य को पाने में पिछड़ जाते हैं।
इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब हम अपने जीवन के लिए प्राथमिकताएं तय करते हैं तब बहुत सी चीजें हमारी प्राथमिकताओं के निर्धारण में भूमिका निभाती हैं। अभिभावक, दोस्त, परिवेश, संस्कृति आदि। रास्ते, सुझाव हमें कई ओरों से सुनने को मिलती हैं। अंत में हमें ख़ुद तय करना होता है कि हमें इनमें से क्या और कितना चाहिए। हम कैसे अपने लक्ष्य को पा सकते हैं इसके लिए अब प्रयास जिसे एर्फ्ट कहते हैं। एक्शन कहते हैं करना होता है। जब तक एर्फ्ट यानी प्रयास नहीं करेंगे तब तक सफलता की उम्मीद करना बेकार है। जब सफलता नहीं मिलती तो हम अपने प्रयास को जांचने की बजाए परिस्थितियों को कोसने लगते हैं। बजाए कि हमने अपने लक्ष्य को पाने के लिए किस प्रकार के और कितनी शिद्दत से प्रयास किए इसे जांचने, पुनः जांचने, समझने के हम अपने लक्ष्य और प्राथमिकताएं बदलने लगते हैं। हम अपने लक्ष्य और प्राथमिकताओं से समझौता करने लगते हैं।
यदि प्राथमिकता तय की है तो हमें प्रयास और प्रयास के स्तर क्या होंगे इसे भी निर्धारित करना बेहद ज़रूरी है। जब हम प्रयास और दिशा भी तय कर चुके होते हैं तब हमें उस लक्ष्य को पाने के लिए क्या क्या और कौन कौन से एप्रोच हो सकते हैं उसे स्पष्टतौर पर तय करने होते हैं। इन्हीं स्पष्ट रणनीतियों, एप्रोचों, प्लांनंग और एक्जीक्यूशन पर हमारा जीवन प्रोजेक्ट, या कोई भी प्रोजेक्ट चला करता है। उक्त तत्वों की स्पष्टता और मानवीय इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है हमने जो शुरू में अपने लिए प्राथमिकताएं तय की थीं क्या वह सफल हो पाईं। वरना तो पूरी उमग्र पड़ी है कोसने की उसने, इसने, ऐसे, परिस्थितियों आदि ने साथ नहीं दिया वरना हम भी काम के ही थे।

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