Tuesday, April 10, 2018

उनके आने से पहले...


कौशलेंद्र प्रपन्न
घर में कोई आने वाला हो तो मंज़र देखने लायक होता है। घर का कोना कोना साफ हो जाता है। घर के सभी लोग सफाई अभियान में लग जाते हैं। घर का कोना कोना वाह से आह!!! करने लगता है। बच्चे तो बच्चे बड़े भी साफ सफाई करते नज़र आते हैं। डाइनिंग टेबल पर लंबे समय से लेटे किताबें, दवाई की डिबिया, अख़बार सब के दिन बिहुर जाते हैं। सब अपनी अपनी जगहों पर शोभने लगते हैं।
कई तरह की ऐसी भी चीजें हाथ लग जाती हैं जो कई बार की ढूंढीया पसारने के बाद भी गुम थे। वो भी आंखें फाड़े नजर आने लगते हैंं। सफाई का एक लाभ तो यह होता ही है कि ऐसी फाइलें, किताबें, कागज पतर सब मिल जाया करते हैं। काश कि हर हप्ते कोई न कोई आए।
लेकिन कहां संभव है रोज़ और हर हप्ते किसी की ख़ातिरदारी करने की। ख़ातिरदारी से ज़्यादा सामानों की लिस्ट बनाने दस बार बाज़ार जाने के बाद भी कुछ सामान रह ही जाते हैं उनके लिए डांट खाओं और डांट से पेट भर जाए तो उसपर कॉफी के रूप में यह मिलता है कि कितना अच्छा लगा रहा है। तुम्हें तो ऐसे ही गंध कबाड़े में रहने की आदत सी हो गई है।
कभी तो कहा करते थे मुझे गंदे में रहा नहीं जाता और अब यह आलम है कि जब तक कोई घर में आने वाला न हो तो जो चीजे दस दिन पहले जहां थी वहीं पड़ी रहती है। कितनी बार कहा फला बैग कई दिनों से तुम्हारी राइटिंग टेबल के नीचे सुस्ता नहीं है उसे उपरी आलमारी में रख दो मगर सुनना कहां है। हां अख़बार पूछो, पत्रिका पूछो या पूछ लो किताब तो इनकी सारी जगहें पूरी शिद्दत से बता दोगो। बोलो याद है कि नहीं।
ठीक इसी तर्ज़ पर जब किसी संस्थान में या फिर आफिस में कोई अधिकारी आने वाले होते हैं तब भी घर जैसा ही अफरा तफरी मच जाया करती है। इसे सजाओ, इस बोर्ड को उेकोरेट करो, फला फाईल वहां होनी चाहिए। इस चेयर का एंगल चेंज करे आदि आदि। देखते ही देखते पूरा संस्थान चमक जाया करता है।
साहब के आने से पहले पूरे संस्थान पर सब एक टांग पर खड़े भाग रहे होते हैं। बॉस की सांसें भी टंगी रहती हैं। पता नहीं कौन सा कोना संस्थान की हक़ीकत बता दे। किस बात पर सुनना पड़ जाए। जैसे ही उनका जाना होता है सब की सांसें सामान्य चलने लगती हैं। यह तो दस्तूर है प्यारे किसी के आने से पहले और जाने बाद स्थितियां सामान्य ढर्रे पर आने लगती हैं।
कितना अच्छा हो कि किसी के आने पर ही हमारी प्रेजेटेबल स्थिति को क्यां ठीक की जाए। क्यां न इसे हम अपनी आदतों शामिल कर लें। फिर चाहे कोई भी आए चाहे मोहतरमा हों या फिर मोहतरम। चीजें अपनी जगहों पर ही फबा करती हैं। अब आप ही बताएं किताबें, अख़बार, चाय की प्याली यूंह र जगह पर पड़ी, बिखरी अच्छी लगती हैं भला? एक बार व्यवहार में शामिल हो जाए तो फिर संस्थान में कोई आए या घर में अफरा तफरी नहीं मचती।

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