Friday, April 27, 2018

भूल गया, भूल कैसे जाते हैं हम



कौशलेंद्र प्रपन्न
हमें अकसर सुनने को मिलता है कि यार भूल गया बताना। कैसे भूल सकता है कोई? क्यों हम भूल जाते हैं? भूलने के बाद डांट खाते हैं। लेकिन जो नुकसान होना था वह हो गया। यदि आपको बजट बनाकर अपने बॉस को भेजना था जिसे आपका बॉस किसी और के सामने पेश करने वाला था, अब उसकी स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। वह डांट कर भी क्या कर लेगा। आनन फानन में उसे बजट व प्लांनिंग शीट प्रेजेंट करनी पड़ेगी। आपने तो सहजता से कह दिया शॅारी फाईल अटैव करना भूल गया। दरअसल आपने तो अपनी जिम्मदारी का प्रमाण दे दिया कि आपके अपने काम के प्रति कितने चौकन्न और जिम्मेदार हैं। आगे से आप पर विश्वास करने से पहले या काम देने से पहले कोई हज़ार बार सोचेगा। यानी आपने अपने लिए एक संभावना के दरवाजे बंद कर दिए। दूसरी बात हम भूलते तब हैं जब हमें उस काम या सूचना में कोई दिलचस्पी नहीं होती। हम उस काम में रूचि ही नहीं लेते। क्योंकि यदि हमारी रूचि होती। यदि हम अपनी जिम्मदारी व लावबदेही समझते तो भूलते ही नहीं। यह कोई मैनेजमेंंट का फंडा नहीं बल्कि आम जीवन की कहानी है। लेकिन जब सिस्टम में काम करते हैं तो सूचना, ख़बर आदि को तत्काल या सही समय परख् सही व्यक्ति तक पहुंचाना बेहद ज़रूरी होता है। इसलिए भूलें नहीं बल्कि जो बात, ख़बर जिसे देनी हैं उसे उसी समय पर, उसकी आवश्यकता के अनुरूप दे देनी चाहिए।
कोई ख़बर है तो उसे सही तरीके से बिना किसी पूर्वग्रह के पाठकों तक पहुंचाना सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। पत्रकार अपने इस काम में बेहद चौकन्ना और जिम्मेदार होता है। मान लीजिए पत्रकार के पास कोई ख़बर आई, किसी प्रकार की सूचना उसे मिली जिससे बेहतर ख़बर बन सकती है वह उस ख़बर को अपने पास रख ले। या फिर तय समय सीमा में स्टोरी में तब्दील न कर देर से दे तो वह ख़बर मर जाएगी। वह ख़बर पुरानी हो जाएगी। अगले दिन हो सकता है उस ख़बर को फॉलोअप करना पड़े। लेकिन पत्रकार ने अपनी लापरवाही या गै़रजिम्मेदाराना रवैए से एक ख़बर की हत्या कर दी। उसी प्रकार हम सबके पास कहने और सुनाने को बहुत सी ख़बरें होती हैं। यदि हम उन्हें सही समय पर और सही तरीके से पाठक या श्रोता तक नहीं पहुंचाएं तो यह प्रकारांतर से ख़बर के साथ न्याय नहीं होगा।
यह तो बात पत्रकारिता की हुई। उसी प्रकार यदि किसी प्रोजेक्ट की बात करें तो कई सारी सूचनाएं, ख़बर, जानकारी ऐसी होती हैं जिसपर तत्काल कदम उठाने होते हैं वरना प्रोजेक्ट की डेड लाइन प्रभावित हो सकती है। ऐसे में प्रोजेक्ट मैनेजर अपने रिपोटिंग व्यक्ति पर काफी हद तक निर्भर रहता है। जैसे ही कोई ऐसी सूचना आई जिसे बिना देरी किए प्रोजेक्ट मैनेजर या प्रोग्राम मैनेजर को मालूम होनी चाहिए उसे उस खबर से अपडेट होना होगा। ऐसे में मानवीय भूलें या भूल भी काफी मायने रखती हैं। कई बार व्यक्ति अनुमान लगा लेता है कि उन्हें तो पता ही होगा। उन्हें कल बता दूंगा। कल नहीं तो मिल कर बता दूंगा आदि। उस व्यक्ति को उस सूचना की गंभीरता नहीं मालूम कि उस ख़बर से प्रोजेक्ट पर ख़राब असर पड़ सकता है। इसलिए कई बार प्रोजेक्ट मैनेजर को आने तई फॉलोअप करना होता है। बार बार पूछना होता है उस प्रोजेक्ट का क्या हुआ? कल की प्लानिंग के अनुसार सार चीजों की तैयारी हो गई या कोई अड़चने आ रही है? आदि। कायदे यह काम रिपोटिंग व्यक्ति की है। क्यों प्रोजेक्ट मैनेजर को फॉलोअप करना पड़ रहा है। यदि व्यक्ति अपडेट लगातार देता रहे तो फॉलोअप करने की आवश्यकता ही नहीं होगी।
मैनेजमेंट में या कहे लें कॉम्यूनिकेशन के क्षेत्र में ख़बर, सूचना को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं जाती हैं। संप्रेषण सही समय पर, समुचित व्यक्ति को, सही तरीके से दी जानी चाहिए। किसी कितनी सूचना की आवश्यकता है, कब ज़रूरत है, क्यों ज़रूरत है? क्या वह सूचना उसी के लिए है या किसी और को भी दी जात सकती है आदि को ध्यान रखना होता है। क्योंकि कई बार हम अपनी जिम्मदारी से बचते हुए सही व्यक्ति को ख़बर करने की बजाए किसी और को सूचित कर अपनी जिम्मेदारी बच जाते हैं। जबकि हर ख़बर, सूचना का एक अधिकारी होता है। उसे किसी भी सूरत में वह ख़बर मिलनी ही चाहिए।
एक्टिव कम्यूनिकेशन, प्रो एक्टिव कम्यूनिकेशन, जिसे सक्रिय, निष्क्रिय, तत्पर, आदि के नाम से पुकार सकते हैं। यानी कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो ख़बर व सूचना को तत्परता और तत्काल सही व्यक्ति तक सूचना पहुंचा देता है। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो थोड़ी सुस्ती बरतते हुए ख़बर पहुंचाया करते हैं। वहीं ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें ख़बर को दबाकर बैठने में आनंद आता है। कई बार ऐसे भी व्यक्ति मिलेंगे जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी लापरवाही ख़मियाज़ा कई बार पूरी कंपनी, मीडिया हाउस को भुगतना पड़े।
आम जीवन में ही देखें। हमारे पास रोज़दिन विभिन्न सेशल मीडिया के ज़रिए हज़ारों की संख्या में सूचनाएं, जानकारियां हमारे हाथख् आंखों में ठूंसा जाता है। उन खबरों, सूचनाओं के साथ हमारा क्या बरताव होता है? हम किस तरह से पेश आते हैं ख़ासकर फोन पर मिलने सूचनाओं के साथ? कुछ ख़बरें, नज़रअंदाज़ की जाती हैं, कुछ से बेहद परेशान हो चुके होते हैं, कुछ को तो ओपन भी नहीं करते। वहीं कुछ ऐसी ख़बरें होती हैं जिन्हें पढ़कर आपको एहसास होता है कि अच्छा! तो यह हो रहा है आदि। इस प्लेटफाम पर दो किस्म के लोग मिलेंगे। पहला, आपकी सूचनाओं, संदेशों का आनंद तो लेते हैं किन्तु कभी अपनी राय, इच्छा अनिच्छा, पसंदी नापसंदगी आदि से वाकिफ नहीं कराते। उनके लिए सूचना का आना न आना कोई मायने नहीं रखता। इसे ही निष्क्रिय संदेश प्राप्त कर्ता कह सकते हैं। जो पढ़ तो लेते हैं लेकिन कोई राय नहीं देते। अपनी पंसदगी से परिचित नहीं कराते। ऐसे में व्यक्ति एक समय के बाद संदेश भेजना बंद कर देता है। यहीं से शुरू होती है कम्यूनिकेशन गैप, संवाद हीनता।

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